संघमित्रा मौर्य 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से पहली बार सांसद बनी थीं। इस चुनाव में स्वामी ने उन्हें जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन 2022 के चुनाव में अचानक स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा छोड़कर सपा में चले गए और भाजपा के खिलाफ कुशीनगर से चुनाव लड़े। उस समय संघमित्रा ने अपनी पार्टी भाजपा का साथ न देकर पिता के पक्ष में प्रचार किया था। इसका स्थानीय स्तर पर काफी विरोध देखने को मिला।
इसके बावजूद संघमित्रा मौर्य को बीजेपी से नहीं निकाला गया। वह अभी भाजपा में खूब सक्रिय नजर आ रही हैं। राजनीतिक जानकर बताते हैं कि सपा ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को टिकट देकर स्वामी के सामने दुविधा पैदा कर दी है कि वे अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाएं या पार्टी धर्म का पालन करें।
संघमित्रा और धर्मेंद्र यादव होंगे आमने-सामने
अब सवाल ये उठ रहा है अगर बीजेपी संघमित्रा मौर्य को बदायूं से टिकट देती है, तो संघमित्रा और धर्मेंद्र आमने- सामने होंगे। ऐसे में ये देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी बेटी का साथ देंते हैं या पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा साबित किया। अगर पार्टी की तरफ स्वामी प्रसाद मौर्य जाते हैं तो धर्मेंद्र यादव के पक्ष में प्रचार करेंगे।
अब सवाल ये उठ रहा है अगर बीजेपी संघमित्रा मौर्य को बदायूं से टिकट देती है, तो संघमित्रा और धर्मेंद्र आमने- सामने होंगे। ऐसे में ये देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी बेटी का साथ देंते हैं या पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा साबित किया। अगर पार्टी की तरफ स्वामी प्रसाद मौर्य जाते हैं तो धर्मेंद्र यादव के पक्ष में प्रचार करेंगे।
स्वामी प्रसाद मौर्य का संघमित्रा मौर्य ने दिया साथ
स्वामी प्रसाद और उनकी बेटी संघमित्रा की राजनीति बड़ी ही दुविधा है। इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं खुद स्वामी प्रसाद ही हैं। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी में थे। लेकिन चुनावी डंका बजते ही उन्होंने भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए। लेकिन उनकी बेटी बीजेपी में ही बनी रही। सपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य को टिकट दिया। वहीं, उनकी बेटी पार्टी का प्रचार करने के बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ दिया। वो अपनी पार्टी छोड़ सपा कार्यकर्ता बन गई थीं। वहां तक तो फिर ठीक था, लेकिन बाद में उन्होंने सनातन के खिलाफ जो बयानबाजी शुरू की, वह उनके लिए और भी घातक होती जा रही है। ये बयानबाजी अब संघमित्रा के राजनीति को अंधेरे में डाल दिया है।
स्वामी प्रसाद और उनकी बेटी संघमित्रा की राजनीति बड़ी ही दुविधा है। इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं खुद स्वामी प्रसाद ही हैं। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी में थे। लेकिन चुनावी डंका बजते ही उन्होंने भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए। लेकिन उनकी बेटी बीजेपी में ही बनी रही। सपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य को टिकट दिया। वहीं, उनकी बेटी पार्टी का प्रचार करने के बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ दिया। वो अपनी पार्टी छोड़ सपा कार्यकर्ता बन गई थीं। वहां तक तो फिर ठीक था, लेकिन बाद में उन्होंने सनातन के खिलाफ जो बयानबाजी शुरू की, वह उनके लिए और भी घातक होती जा रही है। ये बयानबाजी अब संघमित्रा के राजनीति को अंधेरे में डाल दिया है।