scriptमुस्लिमों में द्विविवाह के कानूनी मान्यता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, शून्य विवाह का हवाला देकर याचिकाकर्ता ने दी ये दलील | legal recognition of bigamy among Muslims matter challenged in SC | Patrika News
लखनऊ

मुस्लिमों में द्विविवाह के कानूनी मान्यता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, शून्य विवाह का हवाला देकर याचिकाकर्ता ने दी ये दलील

कोर्ट का कहना है कि धार्मिक समूह द्वारा अपनाई जाने वाली प्रथा को ऐसे व्यक्ति को दंडात्मक कार्रवाई के दायरे से बाहर करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है जो कि दूसरों के लिए दंडनीय है।

लखनऊDec 04, 2020 / 03:29 pm

Karishma Lalwani

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लखनऊ. मुस्लिमों में द्विविवाह को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर दायर एक याचिका में द्विविवाह को सभी धर्मों के लिए असंवैधानिक घोषित करने की बात कही है। कोर्ट का कहना है कि धार्मिक समूह द्वारा अपनाई जाने वाली प्रथा को ऐसे व्यक्ति को दंडात्मक कार्रवाई के दायरे से बाहर करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है जो कि दूसरों के लिए दंडनीय है। दरअसल, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 494 को रद्द करने की प्रार्थना करते हुए यह दलील दी गई है कि धारा 2 मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 में मुस्लिम समुदाय में प्रचलित द्विविवाह की प्रणाली को मान्यता देता है जबकि किसी भी मामले में ‘ऐसी शादी शून्य (Void Marriage) है’ से संबंधित है। द्विविवाह मसले पर मुस्लिमों को संबंधित दंड से बाहर रखा गया है जबकि अन्य नागरिकों को ऐसे एक ही कार्य के लिए सजा दी जा सकती है।
दलील में यह कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह घोषणा करने के लिए याचिका दायर की गई है कि अब तक मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 द्वारा भारत में इसे लागू किया गया है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 13 (1) के आधार पर शून्य और गैर-आस्तित्व वाला हो गया है। इस आधार पर दलील में ये कहा गया है कि राज्य सरकार ऐसा कानून नहीं बना सकता जिसमें कुछ लोगों के लिए द्विविवाह सुखद और दूसरों के लिए दंडनीय हो।
शून्य विवाह पर आजीवन कारवास की सजा

याचिकाकर्ता का कहना है कि आईपीसी की धारा 494 में यह प्रावधान है कि जिसका कोई भी पति या पत्नी जीवित है, वह पति या पत्नी के जीवित रहने के दौरान, किसी भी मामले में अन्य विवाह करता है और उसके विवाह के कारण विवाह शून्य है, तो उसे कारावास की सजा दी जाएगी। इस सजा का सात साल तक विस्तार किया जा सकता है और संबंधित व्यक्ति जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

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