दलील में यह कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह घोषणा करने के लिए याचिका दायर की गई है कि अब तक मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 द्वारा भारत में इसे लागू किया गया है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 13 (1) के आधार पर शून्य और गैर-आस्तित्व वाला हो गया है। इस आधार पर दलील में ये कहा गया है कि राज्य सरकार ऐसा कानून नहीं बना सकता जिसमें कुछ लोगों के लिए द्विविवाह सुखद और दूसरों के लिए दंडनीय हो।
शून्य विवाह पर आजीवन कारवास की सजा याचिकाकर्ता का कहना है कि आईपीसी की धारा 494 में यह प्रावधान है कि जिसका कोई भी पति या पत्नी जीवित है, वह पति या पत्नी के जीवित रहने के दौरान, किसी भी मामले में अन्य विवाह करता है और उसके विवाह के कारण विवाह शून्य है, तो उसे कारावास की सजा दी जाएगी। इस सजा का सात साल तक विस्तार किया जा सकता है और संबंधित व्यक्ति जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।