ये भी पढें: ज्ञानवापी मामले पर VHP प्रवक्ता का बड़ा हमला, सड़क या हवाई जहाज में नमाज अदा करेंगे तो क्या उसे मस्जिद कहेंगे? इसलिए लगी थी रोक दरअसल श्रृंगार गौरी मंदिर में पीढ़ियों से पूजा करने का अधिकार बनारस के ही रहने वाले व्यास परिवार के पास है। व्यास परिवार ने बताया कि यहां पूर्वजों के समय से ये पूजा चली आ रही है। 10-12 पीढ़ियों से ये पूजा चली आ रही है। बता दें कि 1996-97 में हिंदू और मुस्लिम, दोनों धर्मों के त्योहार एक ही दिन पड़ गए थे। जिसके चलते पुलिस प्रशासन ने एहतियातन केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की एक टुकड़ी की तैनाती कर दी जिससे कानून-व्यवस्था बनाए रखी जा सके। अधिकारियों के तबादले हुए और रिजर्व पुलिस के तौर पर की गई सीआरपीएफ की तैनाती वहां स्थायी हो गई। बताते हैं कि गुजरते समय के साथ श्रृंगार गौरी जाने वाले रास्ते को भी पुलिस-प्रशासन ने बंद कर दिया था।
साल में एक दिन पूजा का अधिकार व्यास ने बताया कि श्रृंगार गौरी की पूजा करने के लिए पहले कोई विवाद नहीं था। श्रृंगार गौरी मंडप की पूजा मंदिर विध्वंस के बाद से सदियों से हमारा परिवार करता आया था, लेकिन 1991 में मुयालम सरकार ने मंदिर में रोज पूजा करने पर रोक लगा दी थी और साल में एक बार ही पूजा करने की इजाजत दी गई थी। वहीं एक हिंदूवादी संगठन की अर्जी पर कोर्ट ने वासंतिक नवरात्रि के चौथे दिन दर्शन-पूजन करने का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश के बाद श्रृंगार गौरी की साल में एक दिन वासंतिक नवरात्रि की चतुर्थी को दर्शन-पूजन की अनुमति प्रशासन ने दी।
ये भी पढें: डस्टबिन में 5 महीने का भ्रूण मिलने से हड़कंप, STF को देखकर छुप गया डॉक्टर, जानें पूरा मामला कैसे होती है पूजा व्यास ने बताया कि श्रृंगार गौरी की पूजा के लिए पूरे मंडप को साफ किया जाता है और सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद पश्चिमी दीवार पर मौजूद आकृतियों पर मुखौटा चढ़ाकर पूजा की जाती है। उसे हमारे पूर्वजों की ओर से श्रृंगार गौरी मंडप का अवशेष बताया जाता रहा है। आज यह विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के गेट नंबर 4 से मंदिर की तरफ जाने पर ज्ञानवापी मस्जिद की बैरीकेडिंग दिखाई देती है। इसी के पीछे मस्जिद की पश्चिमी दीवार पर श्रृंगार गौरी मंडप मौजूद है।