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लखनऊ

कहीं आप Toilet Soap से तो नहीं नहा रहे, TFM वैल्यू देखकर ही खरीदें साबुन

Know About Bathing Soap- आमतौर पर हम अपने साबुन का चुनाव विज्ञापन देखकर करते हैं न कि उसकी टीएफएम वैल्यू देखकर, गुणवत्ता जाने बिना ही हम किसी भी साबुन से नहाने लगाते हैं, यह त्वचा और आंखों के लिए नुकसानदायक है

लखनऊJun 16, 2021 / 02:01 pm

Hariom Dwivedi

Know tfm value and details about your bathing soap

Know tfm value and details about your bathing soap

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. दिल्ली सरकार ने अधोमानक यानी सब स्टैंडर्ड साबुन व डिटर्जेंट की बिक्री पर रोक लगा दी है, ताकि यमुना नदी को प्रदूषण से बचाया जा सके। अब यूपी में भी पर्यावरणविद् मानकों के अनुरूप नहीं पाए जाने वाले साबुनों पर रोक लगाने की मांग उठाने लगे हैं। ऐसे में लोगों में जिज्ञासा उठने लगी है कि अधोमानक साबुन कौन से होते हैं? कहीं हम भी नहाने के लिए Toilet Soap का तो इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। अगर हां तो फिर यह हानिकारक है। ऐसे साबुनों में रसायन की मात्रा अधिक होती है जो त्वचा और आंखों के लिए नुकसानदायक हैं। आमतौर पर हम अपने साबुन का चुनाव विज्ञापन देखकर करते हैं न कि उसका TFM (Total Fatty Material) प्रतिशत देखकर। नतीजन हम नहाने के लिए बाजार से Toilet Soap या फिर Carbolic Soap खरीद लाते हैं। इनमें से ज्यादातर साबुन शौच करने के बाद हाथ धोने के इस्तेमाल किये जाते हैं। कई साबुनों में तो जानवरों की चर्बी भी मिली होती है, जिनसे हम अनभिज्ञ होते हैं।
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साबुन दो प्रकार के होते हैं। रासायनिक और आयुर्वेदिक/हर्बल। हर साबुन के पैकेट पर उसकी TFM वैल्यू लिखी होती है, जिस साबुन में TFM का प्रतिशत जितना अधिक होगा, उस साबुन की गुणवत्ता उतनी ही बेहतर होगी। बाजार में कई साबुन बिकते हैं, जिनके पैकेट पर Toilet Soap लिखा होता है, लेकिन हम बिना पढ़े ही उन्हें नहाने का साबुन समझकर ले आते हैं। भारत में बहुत कम साबुन हैं जिन्हें बाथिंग सोप का दर्जा मिला हुआ है, अधिकतर साबुन टॉयलेट सोप हैं। ध्यान रखें कि नहाने वाले साबुनों पर Toilet Soap नहीं लिखा होता है। ऐसे में नहाने का साबुन खरीदते समय बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है। आज हम आपको बता रहे हैं कि साबुन खरीदते समय क्या-क्या साबुन के पैकेट पर क्या-क्या देखना चाहिए।
ऐसे बनाया जाते हैं साबुन
जानकारी के मुताबिक, साबुन बनाने की प्रक्रिया में वसीय अम्ल, कास्टिक सोडा और पानी का इस्तेमाल होता है। वसीय अम्ल (Fatty Acid) का मुख्य स्रोत नारियल, जैतून या ताड़ के पेड़ होते हैं। जानवरों की चर्बी से भी वसीय अम्ल निकाला जाता है जिसे टैलो (Tallow) कहते हैं। यह बूचड़खाने से मिलता है। Tallow से निकले गए Fatty Acid अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं। वसीय अम्ल से सोडियम लौरेल सल्फेट का निर्माण होता है जो झाग बनाने में प्रयुक्त होता है।
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TFM से पता करें कैसा है आपका साबुन
किसी भी साबुन की गुणवत्ता जानने के लिए TFM यानी Total Fatty Material महत्वपूर्ण है जो साबुन की गुणवत्ता और वर्गीकरण का निर्धारण करता है। आमतौर पर TFM हर साबुन के पैकेट के पीछे लिखा होता है। साबुन का TFM प्रतिशत जितना अधिक होगा, उस साबुन की गुणवत्ता उतनी ही अच्छी होगी।
नहाने के लिए सही है अधिके TFM वाला साबुन
राजधानी के किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के त्वचा रोग विशेषज्ञ मानते हैं कि गुणवत्ता के आधार पर Bathing Soap यानी नहाने वाला साबुन सर्वोत्तम होता है। नहाने के लिए इसका उपयोग किया जाना चाहिए। ऐसे साबुनों में TFM की मात्रा 76 फीसदी से अधिक होती है और इनके इस्तेमाल से त्वचा को कम नुकसान होता है। ऐसे में हमें उस साबुन का ही इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें TFM की मात्रा 76 फीसदी से ज्यादा हो।
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ग्रेड 2 साबुन होते हैं Toilet Soap
गुणवत्ता के आधार पर Toilet Soaps को ग्रेड- 2 की श्रेणी में रखा जाता है। भारत में ज्यादातर लोग इस श्रेणी के साबुनों का उपयोग करते हैं। इन साबुनों में 65 फीसदी से 75 फीसदी तक TFM होता है। आमतौर पर यह साबुन शौच इत्यादि के बाद हाथ धोने के लिए बने होते हैं। कार्बोलिक साबुन की अपेक्षा Toilet Soap के इस्तेमाल से त्वचा को कम नुकसान होता है। ऐसे में खुद भी साबुन खरीदने से पहले रैपर पर लिखी डिटेल जरूर पढ़ लें जरूर लें।
ग्रेड 3 साबुन होते हैं Carbolic Soap
गुणवत्ता के आधार पर Carbolic Soap को ग्रेड 3 की लिस्ट में रखा जाता है। इनमें 50 से 60 फीसदी तक TFM की मात्रा होती है। ऐसे साबुन में फिनायल की मात्रा भी होती है, जिसका उपयोग फर्श या जानवरों के शरीर के कीड़े मारने में किया जाता है। यूरोपीय देशों में इसे एनिमल सोप या जानवरों के नहाने का साबुन भी कहते हैं। सुलतानपुर के मशहूर त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. उमाशंकर भारती। ऐसे साबुन त्वचा के लिए बेहद हानिकारक होते हैं।
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त्वचा और आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं रासायनिक साबुन
झाग (FOG) बनने के लिए साबुन में सोडियम लारेल सल्फेट रसायन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके इस्तेमाल से त्वचा की कोशिकाएं शुष्क हो जाती हैं, जिनके मृत होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। त्वचा पर खुजली और दाद की परेशानी बढ़ जाती है। इसके अलावा रासायनिक साबुन आंखों के लिए काफी नुकसानदायक होते हैं। कई बार नहाते समय आंखों में साबुन चला जाता है तो इसी रसायन के कारण आंखों में तीव्र जलन शुरू हो जाती है। केजीएमयू लखनऊ के त्वचा रोग विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी रासायनिक साबुन त्वचा के लिए लाभदायक नहीं है। अधिकांश साबुनों में रसायन का इस्तेमाल होता है।
पता करें साबुन में जानवरों की चर्बी है या नहीं
कई साबुनों में जानवरों की चर्बी भी शामिल होती है। ऐसे में अगर आप शाकाहारी हैं तो साबुन खरीदते समय उसके रैपर को सावधानी पूर्वक पढ़े। अगर साबुन के पैकेट पर टैलो (Tallow) लिखा है तो इसका मतलब साबुन में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है।

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