ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत कब
कोरोना पीड़ित मरीज का जब ऑक्सीजन लेवल 90 के नीचे पहुंच जाता है तब उसे क्रिटिकल स्टेज में माना जाता है। ऐसे में मरीज को तुरंत ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत होती है।
कोरोना पीड़ित मरीज का जब ऑक्सीजन लेवल 90 के नीचे पहुंच जाता है तब उसे क्रिटिकल स्टेज में माना जाता है। ऐसे में मरीज को तुरंत ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत होती है।
तीन मिनट की ऑक्सीजन रहती है दिमाग में
विशेषज्ञों के अनुसार, वेंटीलेटर पर पहुंचे मरीज के दिमाग में तीन मिनट की ऑक्सीजन रहती है। अगर वेंटीलेटर से मरीज को 100 फीसदी ऑक्सीजन दी जाए तो दिमाग सात से आठ मिनट तक बिना ऑक्सीजन के रह सकता है। इसके बाद दिमाग को ऑक्सीजन न मिले तो मरीज की मृत्यु हो सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, वेंटीलेटर पर पहुंचे मरीज के दिमाग में तीन मिनट की ऑक्सीजन रहती है। अगर वेंटीलेटर से मरीज को 100 फीसदी ऑक्सीजन दी जाए तो दिमाग सात से आठ मिनट तक बिना ऑक्सीजन के रह सकता है। इसके बाद दिमाग को ऑक्सीजन न मिले तो मरीज की मृत्यु हो सकती है।
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पोर्टेबल ऑक्सीजन सिंलेडर की कीमत कितनी
पोर्टेबल ऑक्सीजन छोटे आकार का सिलेंडर होता है। इसकी कीमत 5000 रुपए तक होती है। सिलेंडर के साथ वॉल्व, रेगुलेटर और मेडिकल ऑक्सीजन से भरा मास्क होता है। सिलेंडर की कीमत पंप काउंट और वॉल्यूम पर निर्भर करती है।
कितना चलता है पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलेंडर
2.7 किग्रा-2 घंटा 4 मिनट
3.4 किग्रा-3 घंटा 27 मिनट
4.9 किग्रा-5 घंटा 41 मिनट
13.5 किग्रा-14 घंटे 21 मिनट
कैसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन
ऑक्सीजन सिलेंडर में भरी जाने वाली गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस से बनती है। इस प्रॉसेस में हवा को फिल्टर किया जाता है, ताकि धूल-मिट्टी को हटाया जा सके। यानी हवा में मौजूद विभिन्न गैसों को अलग-अलग करके ऑक्सीजन निकालते हैं। फिर कई चरणों में हवा को कंप्रेस यानी भारी दबाव डाला जाता है। फिर कंप्रेस हवा को मॉलीक्यूलर छलनी एडजॉर्बर से ट्रीट करते हैं। इससे हवा में मौजूद पानी के कण, कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन अलग हो जाते हैं।
2.7 किग्रा-2 घंटा 4 मिनट
3.4 किग्रा-3 घंटा 27 मिनट
4.9 किग्रा-5 घंटा 41 मिनट
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कैसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन
ऑक्सीजन सिलेंडर में भरी जाने वाली गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस से बनती है। इस प्रॉसेस में हवा को फिल्टर किया जाता है, ताकि धूल-मिट्टी को हटाया जा सके। यानी हवा में मौजूद विभिन्न गैसों को अलग-अलग करके ऑक्सीजन निकालते हैं। फिर कई चरणों में हवा को कंप्रेस यानी भारी दबाव डाला जाता है। फिर कंप्रेस हवा को मॉलीक्यूलर छलनी एडजॉर्बर से ट्रीट करते हैं। इससे हवा में मौजूद पानी के कण, कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन अलग हो जाते हैं।
…और फिर भर लिया जाता सिलेंडर में
इस पूरी प्रक्रिया से तैयार ऑक्सीजन को सिलेंडर में भरकर कंपनियां मार्केट में उतारती हैं। इसका उपयोग सांस के मरीजों के लिए या फिर जिन्हें हार्ट अटैक, ब्रेन हैब्रेज हुआ है या कोई बड़ी दुर्घटना के चपेट में आ गए हैं या फिर ऑपरेशन होते समय किया जाता है। इसके अलावा स्टील, पेट्रोलियम आदि उद्योगों में भी इसकी जरूरत पड़ती है।
इस पूरी प्रक्रिया से तैयार ऑक्सीजन को सिलेंडर में भरकर कंपनियां मार्केट में उतारती हैं। इसका उपयोग सांस के मरीजों के लिए या फिर जिन्हें हार्ट अटैक, ब्रेन हैब्रेज हुआ है या कोई बड़ी दुर्घटना के चपेट में आ गए हैं या फिर ऑपरेशन होते समय किया जाता है। इसके अलावा स्टील, पेट्रोलियम आदि उद्योगों में भी इसकी जरूरत पड़ती है।
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भेंट करें ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर
मेडिकल ऑक्सीजन की कमी को फौरी तौर पर पूरा करने के लिए अस्थायी तौर पर ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर मशीन लगायी जा सकती है। यह करीब 45 सें 60 हजार रुपए में आती है। हवा से यह जरूरत भर की ऑक्सीजन बना लेती है। ऐसे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर भेंट करना चाहिए। ऑक्सीजन की कितनी उत्पादन क्षमता
भारत में 7000 मीट्रिक टन से अधिक मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन होता है। जबकि, 12 अप्रेल को भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की खपत 3842 मीट्रिक टन थी।
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