पारिजात का पौराणिक महत्व पारिजात वृक्ष बाराबंकी शहर से करीब 38 किलोमीटर की दूरी पर बसे किंतूर गांव में है। किंतूर गांव का नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर पड़ा। मान जाता है कि पारिजात के सफेद फूलों से कुंती भगवान शिव की पूजा किया करती थीं। यहां पर पांडवों ने माता कुंती के साथ अपना अज्ञातवास बिताया था। कहा जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने से ही सारी थकान मिट जाती है। यह वृक्ष अपने आप में विशाल है। इसकी ऊंचाई 45 फीट और चौड़ाई 50 फीट है।
किंतूर स्थित पारिजात वृक्ष अपनेआप में कई मायनों में अनूठा है। वैसे तो यह अपनी तरह का पूरे भारत में इकलौता वृक्ष है, लेकिन इसकी प्रजातियां सुल्तानपुर के उद्दोग केंद्र परिसर में भी पाई जाती हैं। इसके अलावा लखनऊ के केजीएमयू परिसर, कानपुर, हमीरपुर और इलाहाबाद में दुर्लभ प्रजाति के पारिजात हैं।
बहुपयोगी है पारिजात हिंदू धर्म ग्रंथों में महत्वपूर्ण स्थान से नवाजे गए दुर्लभ प्रजाति का पारिजात औषधीय गुणों की खान है। आयुर्वेद में इस वृक्ष के तने से लेकर शिखा तक में असाध्य रोगों के निदान का उपाय बताया गया है। ह्रदय रोगियों को पारिजात के फूलों के रस का सेवन करना चाहिए। पारिजात की पत्तियों को पीसकर शहद में मिलाकर सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है। वहीं इन्हीं पत्तियों को पीसकर त्वाच पर लगाने से त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं। पारिजात के फल में सफेद बीज होता है।इसे पीस कर पानी में घोल पिया जाता है। विदेश में इसके बीज से एनर्जी ड्रिंक तैयार किए जाते हैं।