लखनऊ

मूर्ति भी रखे और हमें कब्रिस्तान में नहीं जाने दे रहे हैं

दिगंबर अखाड़े के महंत आचार्य रामचंद्र दास ने दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के तहत मामला दायर कर दिया कि विवादित स्थान हिंदू धर्मस्थान है। उसे हिंदुओं को सौंप दिया जाए…। उपायुक्त ने अदालत से आग्रह किया कि विवादित स्थल पर भारी भीड़ न हो और कोई नया निर्माण न किया जाए।

लखनऊOct 16, 2023 / 07:43 am

Markandey Pandey

गोपाल सिंह विशारद के मामले में फैसला हो जाने के बाद फैजाबाद न्यायालय को आशंका होने लगी कि विवादित स्थल पर हिंदुओं की अधिक भीड़ जमा हुई तो साम्प्रदायिक सौहाद्र बिगड़ सकता है।

Ram Mandir Katha: गोपाल सिंह विशारद की याचिका पर फैजाबाद हाईकोर्ट और हाईकोर्ट इलाहाबाद ने फैसला लगभग हिंदुओं के पक्ष में दे दिया था। जिससे बाद 21 फरवरी 1950 को प्रतिवादी पक्ष ने लिखित बयान पेश करके उक्त विवादित स्थल पर मस्जिद होने का दावा पेश किया। जबाव में दिगंबर अखाड़े के महंत आचार्य परमहंस रामचंद्र दास ने भी दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के अंर्तगत 5 दिसंबर 1950 को मुकदमा दायर कर दिया कि विवादित परिसर हिंदुओं का धर्मस्थान है उसे हिंदुओं का सौंप दिया जाए।
इसी साल जनवरी में गोपाल सिंह विशारद के मामले में फैसला हो जाने के बाद फैजाबाद न्यायालय को आशंका होने लगी कि विवादित स्थल पर हिंदुओं की अधिक भीड़ जमा हुई तो साम्प्रदायिक सौहाद्र बिगड़ सकता है। इसलिए फैजाबाद के उपायुक्त ने अदालत ने याचना किया कि अपने फैसले में यह भी अंतरित आदेश देने की कृपा करें कि आदेश की आड़ में वर्ग विशेष के लोग विवादित स्थल पर भीड़ जमा न करें, ना ही कोई नया निर्माण करें।
1950 के सभी मुकदमों की प्रकृति एक समान होने के कारण सिविल जज ने मुकदमों को एक साथ सुनने का आदेश दिया। मामला सिविल न्यायालय में चल रहा था इसलिए नगर दंडनायक ने 30 जुलाई 1953 को भारतीय दंड संहिता की धारा 145 के अंर्तगत पहले की गई कुर्की की कार्रवाई और रिसीवर नियुक्त करने को निरस्त कर दिया लेकिन इस पर स्टे आ गया। 17 दिसंबर 1959 को निर्मोही अखाड़ा भी मैदान में आ गया।

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अखाड़े के महंत रामेश्वर दास ने मुसलमानों, रिसीवर और सरकार के खिलाफ मुकदमा ठोक दिया। महंत ने कहा कि वह लंबे समय से श्रीरामजन्म भूमि का प्रबंधक और पुजारी रहा है, इसलिए उक्त मंदिर का काम उसे या उसके प्रतिनिधि को सौंपा जाना चाहिए। इस नए किरदार को भी सिविल जज ने अन्य मुकदमों के साथ नत्थी कर दिया।
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड आया मैदान में

12 दिसंबर 1961 को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से मोहम्मद हाशिम अंसारी आए मैदान में और उन्होंने मुकदमा दायर कर दिया। हाशिम अंसारी ने गोपाल सिंह विशारद, सरकार, कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, नगर दंडनायक, अध्यक्ष अखिल भारतीय हिंदू महासभा, महंत रामंचद्रदास, आर्य समाज और सनातन धर्म सभा सभी को प्रतिवादी बनाकर अदालत में कहा कि विवादित परिसर में रामलला की मूर्ति रख दी गई है, और वहां पर स्थित कब्रिस्तान में हमे जाने उक्त प्रतिवादी जाने नहीं दे रहे हैं।
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(नोट-पहले हम चर्चा कर चुके हैं कि जब विक्रमादित्य के बनाए राममंदिर पर हमले हुए तब वहां मौजूद साधु-संतों, वैरागियों की समाधि को भी तोड़ा गया था। उसे कब्रिस्तान का स्वरुप दे दिया गया था। स्रोत-अयोध्या का इतिहास)
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मांग की गई कि विवादित स्थल को मस्जिद घोषित करके सुन्नी वक्फ बोर्ड के कब्जे में दे दिया जाए। अपने दावे के समर्थन में सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से हाशिम अंसारी ने अदालत में नक्शा पेश किया जिसमें बाबरी मस्जिद और गंजे शहीदां दिखाया गया था।
गंजे शहीदां क्या है और यह कब बनाया गया। हनुमान गढ़ी पर रहकर भोजन करने वाले सुन्नी मुस्लिम ने अफवाह फैलाया था कि हिंदुओं ने मस्जिद तोड़ दी है, जिसके बाद हुए दंगे में मारे गए मुसलमानों को जिस कब्र में दफनाया गया उसे ही गंजे शहीदां कहते हैं। यह घटना औरंगजेब काल के बाद की है। इसके बारे में विस्तार से हम पहले बता चुके हैं। हाशिम अंसारी ने अदालत को यह भी बताया कि 1528 से ही मुसलमानों का इस जगह पर कब्जा है।
इसके बाद अदालत ने एक महत्वपूर्ण पहल किया कि सभी मुकदमों को एक साथ कर दिया। गोपाल सिंह विशारद के मामले को भी मुख्य मामला न मानते हुए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को ही मुख्य वादी मानते हुए यह निर्देश दिया कि जो भी फैसला होगा वह सभी वादी-प्रतिवादी को मानना बाध्यकारी होगा।
https://youtu.be/SK7PibQbjSI

हिंदू पक्ष ने दिया कुरान का हवाला

हिंदू वादियों ने अपने मुकदमें में एक पक्ष और जोड़ दिया। हिंदुओं ने अदालत में यह सबूत रखा कि इस्लाम के नियमों के मुताबिक वहां मस्जिद नहीं हो सकती है। कुरान में कहा गया है कि कोई भी मुसलमान विवादित स्थान या जबरदस्ती या धोखे या छल से छीने गए स्थान पर नमाज अदा नहीं करेगा। इसके लिए हिंदुओं ने फतवा ए आलमगिरी खंड 6 पेज संख्या 234 का हवाला दिया। जिसमें लिखा है कि- गैर कानूनी रुप से प्राप्त की गई भूमि पर मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं है।

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भूमि के गैर कानूनी रुप से अधिग्रहण के कई रुप हो सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि कुछ लोग किसी की मकान या जमीन जबरदस्ती कब्जा कर लेते हैं और उस पर मस्जिद या जामा मस्जिद भी बना लेते हैं तो उस मस्जिद में अदा की गई नमाज शरीयत के खिलाफ होगी। हिंदू पक्ष ने यह भी कहा कि मीर बांकी तीन गुंबद तोडक़र उसे बनवा पाने में ही सफल हो पाया था।
चौदह कसौटी के स्तंभों जिन पर हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां हैं, चंदन की लकड़ी का छन्नियों, भवन की बनावट, रामचबूतरा आदि उसके हिंदू मंदिर होने का स्पष्ट प्रमाण है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे में अगर रामचबूतरा के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया गया है तो आखिर किसी मस्जिद में राम चबूतरा होता है? इसके अलावा हिंदू पक्ष ने गंजे शहीदां और बाबरी ढांचे के खसरा नंबर को भी फर्जी साबित कर दिया।

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