यह सब अयोध्या में हो रहा था। वही अयोध्या जहां पर भगवान श्रीराम का जन्मस्थान है। वही राम जिन्हें मर्यादा पुरुर्षोत्म राम कहा जाता है।…………………
उस दिन अयोध्या में नारे लग रहे थे कि इतिहास बदलने वाला है। शायद ही इसका अंदाजा कुछ लोगों को नहीं रहा होगा लेकिन भीड़ में मौजूद लोगों के जोश और जूनून को देखकर लग रहा था कि कुछ बड़ा होने वाला है। देखते ही देखते कारसेवकों की भीड़ विवादित जगह पर पहुंच गई। इसी बीच कुछ लोग मस्जिद के गुंबद पर पहुंच गए। उनके हाथों में बल्लभ, छेनी, हथौड़ा थे। इसके अलावा जिनके हाथों में जो था वह बाबरी ढांचा गिराने का हथियार बन गया। महज 2 या 3 घंटों में देखते ही देखते वर्तमान इतिहास में बदल गया। यह सब कुछ उस समय राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के सरकार में हुआ।
पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह की 5 जनवरी यानी आज पुण्यतिथि है। सिंह के जयंती पर उनसे जुड़ा एक रोचक किस्सा बताते हैं। तत्कालीन गृहमंत्री चव्हाण ने किया कल्याण सिंह को फोन 6 दिसंबर 1992 को कारसेवक अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे पर चढ़ चुके थे। खबर दिल्ली तक पहुंची तो तत्कालीन गृह मंत्री एसबी चव्हाण ने तुरंत दोपहर करीब 1 बजे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को फोन लगाया। उन्होंने कहा कि मेरे पास सूचना है कि कारसेवक गुम्बद पर चढ़ गए हैं। आपके पास क्या सूचना है? कल्याण सिंह ने कहा कि मेरे पास थोड़ा सा एक कदम आगे की खबर है… कि कारसेवक गुम्बद पर चढ़ गए हैं और कारसेवकों ने गुम्बद को तोड़ना भी शुरू कर दिया है। चव्हाण साहब इस बात को रिकॉर्ड कर लेना कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा… गोली नहीं चलाऊंगा… गोली नहीं चलाऊंगा।’ हालांकि मस्जिद को बचाने के लिए जो कुछ बनेगा वह प्रयास करूंगा। यह बात कल्याण सिंह ने स्वंय एक जनसभा में कही थी।
केन्द्र सरकार ने बर्खास्त कर दी थी सरकार आखिरकार कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचा को गिरा दिया। इसके कुछ घंटों बाद ही कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उसी दिन केंद्र सरकार ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यूपी सरकार को बर्खास्त कर दिया था।
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद गिराने का पूरी उम्र गर्व रहा। साल 2019 में जब सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर पर फैसला सुनाया तो उन्होंने एक न्यूज चैनल से कहा था, ‘ढांचा ढहाए जाने का मलाल न तो तब था, न अब है। राम मंदिर बनने के फैसले से मैं इतना खुश हूं कि अब मैं चैन से मर पाऊंगा।’
राममंदिर आंदोलन के बड़े नेता थे कल्याण सिंह कल्याण सिंह राममंदिर आंदोलन के बड़े नेताओं में से एक थे। भाजपा में वह इकलौते ऐसे नेताओं में शुमार थे जिन्हें यूपी के हर जिले में कार्यकर्ताओं के नाम और चेहरे याद थे। कल्याण सिंह का जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव मढ़ौली अलीगढ़ जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम तेजपाल लोधी और माता का नाम सीता देवी था।
शिक्षक की नौकरी छोड़कर लड़े विधायकी बाबूजी कल्याण सिंह बचपन से ही पढ़ने के शौकीन रहे हैं। उनकी प्राथमिक पढ़ाई गांव गनियाबली स्थित विद्यालय में हुई। उसके बाद केएमवी इंटर कॉलेज से इंटर तक पढ़ाई पूरी की। इसके बाद अलीगढ़ से एमए करने के बाद वह शिक्षक के रूप में गांव रायपुर मुजफ्फता स्थित केसीए इंटर कॉलेज में शिक्षक के रूप में नियुक्त हो गए। यहां बाबूजी ने कुछ समय तक बच्चों को पढ़ाने के बाद नौकरी छोड़ दी। वह संघ से जुड़े हुए थे। इसके बाद वह राजनीति की ओर भी सक्रिय होते चले गए।
1997 में दूसरी बार बने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने जीवन का पहला चुनाव विधायकी का 1962 में जनसंघ के टिकट पर लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1967 में कल्याण सिंह दोबारा लड़े और जीते। वह विधानसभा क्षेत्र अतरौली के 10 बार विधायक रहे। दो बार बुलंदशहर और एटा के सांसद भी रहे। 1991 सें वह पहली बार भारतीय जनता पार्टी प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। करीब एक साल तक बाबूजी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहे। उसी दौरान बाबरी मस्जिद के ढांचा टूटने पर उन्होंने कुर्सी को छोड़ दिया। इसके बाद बाबू जी दूसरी बार 1997 में मुख्यमंत्री बने। बाबू जी को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने का कोई मलाल नहीं था।
“राम मंदिर के लिए 10 बार सरकार कुर्बान करने को हैं तैयार” उन्होंने एक जनसभा में कहा था, “जब बाबरी मस्जिद का ढाचा ढहाया गया तब मैं उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री था। जो हुआ, उसकी मैं पूरी तरह जिम्मेदारी लेता हूं। मैंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर उसकी कीमत अदा कर दी। अभी और क्या कोई हमारी जान लेगा? राम मंदिर बनाने की खातिर एक क्या 10 बार सरकार कुर्बान करनी पड़ेगी तो हम तैयार हैं।”