इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद
इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया। वो तुझे याद करे जिसने भुलाया हो कभी
हमने तुझ को न भुलाया न कभी याद किया।
ये खूबसूरत शेर कहने वाले शब्बीर अहमद हसन खां का आज जन्मदिन है। 5 दिसंबर, 1898 को पैदा हुए शब्बीर अहमद हसन खां को ही दुनिया शायर जोश मलीहाबादी के नाम से जानती है। जोश उनका तखल्लुस था और दशहरी आम के लिए मशहूर यूपी के मलीहाबाद में वो पैदा हुए थे। ऐसे में नाम जोश के साथ मलीहाबाद जुड़ा और नाम मिला जोश मलीहाबादी। जोश 20वीं सदी के उन शायरों में शुमार हैं, जिनकी पंडित नेहरू से दोस्ती थी और फिराक गोरखपुरी जिनको गुरु मानते थे।
इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया। वो तुझे याद करे जिसने भुलाया हो कभी
हमने तुझ को न भुलाया न कभी याद किया।
ये खूबसूरत शेर कहने वाले शब्बीर अहमद हसन खां का आज जन्मदिन है। 5 दिसंबर, 1898 को पैदा हुए शब्बीर अहमद हसन खां को ही दुनिया शायर जोश मलीहाबादी के नाम से जानती है। जोश उनका तखल्लुस था और दशहरी आम के लिए मशहूर यूपी के मलीहाबाद में वो पैदा हुए थे। ऐसे में नाम जोश के साथ मलीहाबाद जुड़ा और नाम मिला जोश मलीहाबादी। जोश 20वीं सदी के उन शायरों में शुमार हैं, जिनकी पंडित नेहरू से दोस्ती थी और फिराक गोरखपुरी जिनको गुरु मानते थे।
जोश मलीहाबादी एक ऐसे परिवार में पैदा हुए थे, जहां शायरी का सबक उनको बचपन में ही मिल गया। पिता और दादा दोनों शेर लिखने के शौकीन थे। ऐसे में जोश भी बचपन से ही शेर कहने लगे। धीरे-धीरे उनके शेर मशहूर होने लगे और कम उम्र में ही उन्होंने अच्छी शोहरत हासिल कर ली।
मुस्कुरा कर इस तरह आया ना कीजे सामने
किस कदर कमजोर हूं, मैं मेरी सूरत देखिए।
जैसे शेर लिखने वाले जोश मलीहाबादी के शेर तो मशहूर हुए ही, उनके महंगी शराब के शौकीन होने की कहानियां, पान खाने के किस्से और बड़े-बड़े नेताओं की उर्दू में कमी निकालने की आदत ने भी उनको खूब शोहरत दी।
किस कदर कमजोर हूं, मैं मेरी सूरत देखिए।
जैसे शेर लिखने वाले जोश मलीहाबादी के शेर तो मशहूर हुए ही, उनके महंगी शराब के शौकीन होने की कहानियां, पान खाने के किस्से और बड़े-बड़े नेताओं की उर्दू में कमी निकालने की आदत ने भी उनको खूब शोहरत दी।
पाक राष्ट्रपति की उर्दू में निकाल दी थी कमी, कैंसिल हो गया था सीमेंट की एजेंसी का लाइसेंस जोश के पोते फर्रुख जमाल ने उनको लेकर लिखे एक लेख में बताया था, “एक बार पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खां की जोश साब से मुलाकात हुई। अयूब खां बोले- आइए आप तो बहुत बड़े आलम हैं। जोश साब ने जवाब दिया- सही लफ्ज़ बोलिए। सही लफ्ज आलिम है ना कि आलम। अयूब खां ने कहा तो कुछ नहीं लेकिन कुछ दिन बाद सरकार की ओर से जोश साब को दी गई सीमेंट एजेंसी वापस ले ली गई।”
जोश मलीहाबादी गलत उर्दू शब्द सुनकर कितना परेशान होते थे। इसका अंदाज़ा इससे लगा लीजिए कि एक बार मुशायरे में उन्होंने साहिर लुधियानवी को टोक दिया था। साहिर अपनी मशहूर नज्म ‘ताजमहल’ पढ़ रहे थे और उन्होंने किसी शब्द का गलत उच्चारित कर दिया था। इस पर बीच में ही जोश साहब बोल पड़े थे।
इंटरव्यू से पहले खाने लगे थे पान जोश मलीहाबादी ने अपनी आत्मकथा ‘यादों की बारात’ में अपने पान खाने के शौक से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा लिखा है। साल 1948 का वाकया बताते हुए वो कहते हैं, “इस साल मैंने दिल्ली आने का फैसला किया। दिल्ली आते ही मैं पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिलने पहुंच गया। पंडित नेहरू ने मुझे सूचना मंत्रालय के सचिव अजीम हुसैन का पता दे दिया। अजीम हुसैन से बात हुई तो उन्होंने कहा कि ‘आजकल’ पत्रिका के संपादक की नौकरी के लिए इंटरव्यू होगा, कल आ जाइए”
वो आगे लिखते हैं, “मैं इंटरव्यू के लिए पहुंचा तो देखा कि दफ्तर में 7-8 लोग वहां बैठे हैं। मैंने बैठते ही सबसे पहला अपना पानदान निकाला और पान लगाने लगा। तभी वहां बैठे एक शख्स ने टोका कि यहां आप पान नहीं खा सकते। मैंने जवाब दिया कि पान खाना मेरे लिए सांस लेने जैसा है। आपको ये मंजूर नहीं तो मैं चला जाता हूं। तभी इंटरव्यू लेने वालों में शामिल अजमल खां ने कहा कि आप इंटरव्यू छोड़िए कोई नज्म सुनाइए। बस इसके बाद इंटरव्यू की बात नहीं हुई और नज्मों का ही दौर चला।”
पाकिस्तान जाने का लिया फैसला जोश मलीहाबादी ने फिरकापरस्ती पर तीखे शेर लिखे। उनके शेरों में एकता की बाते थीं। उनका शेर है- भटक के जो बिछड़ गए है रास्ते पे आएंगे,
लपक के एक दूसरे को फिर गले लगाएंगे।
लपक के एक दूसरे को फिर गले लगाएंगे।
और एक दिन कह लीजिए जो कुछ है दिल में आपके
एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है। ये शेर लिखने वाला ये शायर आजादी के 8 साल बाद पाकिस्तान चला गया।
एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है। ये शेर लिखने वाला ये शायर आजादी के 8 साल बाद पाकिस्तान चला गया।
जोश के पाक जाने का भी दिलचस्प किस्सा है। 1956 में जोश पंडित नेहरू से मिलने पहुंचे। उनसे कहा कि पंडित जी बच्चे पाकिस्तान जाने की जिद कर रहे हैं, मैं क्या करूं? पंडित नेहरु ने कहा मैं आपके निजी मामले में क्या कहूं, फिर भी आप मौलाना आजाद से सलाह लीजिए।
मौलाना आजाद ने कहा- पाक जाओगे तो मुझे मुंह मत दिखाना जोश ने जाकर मौलाना आजाद से पाकिस्तान जाने का जिक्र किया। सुनते ही मौलाना की भौंहें तन गई। उनको ये बात एकदम पसंद नहीं आई। मौलाना आजाद ने यहां तक कह दिया कि चले जाओ लेकिन मेरे जिंदा रहते भारत मत आना। जोश ने किसी की नहीं मानी और पाकिस्तान चले गए। फिर मौलाना आजाद की मौत के बाद 1958 में ही वापस आए। इसके बाद दोबारा आए अपने दोस्त और नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू की मौत पर 1964 में।
इंकलाबी शेरों के लिए हुए मशहूर जोश अपने क्रान्तिकारी शेरों के लिए खूब मशहूर हैं। उन्होंने नेताओं, अफसरों की तरफ इशारा करते हुए लिखा था- शैतान एक रात में इंसान बन गए
जितने नमकहराम थे कप्तान बन गए
जितने नमकहराम थे कप्तान बन गए
उनका एक शेर तो लंबे वक्त तक जलसों और यूनिवर्सिटी में बोला गया और नारा ही बन गया। ये शेर है- काम है मेरा तगय्युर नाम है मेरा शबाब
मेरा नारा इंकलाब ओ इंकलाब ओ इंकलाब।
मेरा नारा इंकलाब ओ इंकलाब ओ इंकलाब।
पाकिस्तान सरकार से अच्छे नहीं रहे रिश्ते जोश जब पाकिस्तान तो गए लेकिन वहां की सरकार से उनकी ज्यादा निभी नहीं। पाक सरकार ने भी उनको बुलाते हुए जो बड़े-बड़े वादे किए थे, उनमें से कई पूरे नहीं किए। पाकिस्तान में उनके विरोध में भी काफी कुछ कहा गया। कभी उनकी शायरी तो कभी उनकी शराब पीने की आदत पर तनकीद की गई।
पाक हुकूमत से आखिरी दिनों में तो उनका रिश्ता इतना तल्ख हुआ कि उनकी सरकारी नौकरी तक छीन ली गई। मलीहाबाद का ये शायर इस्लामाबाद में 22 फरवरी, 1982 को 96 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गया।
नगरी मेरी कब तक यूं ही बरबाद रहेगी
दुनिया यही दुनिया है तो क्या याद रहेगी
जोश को साल 1954 में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ से नवाजा था। उनकी मौत के कई साल बाद साल 2012 में पाकिस्तान की हुकूमत ने उन्हें ‘हिलाल-ए-इम्तियाज’ दिया। जोश ने अपनी जिंदगी में तमाम शानदार गजलें और नज्में लिखीं लेकिन उनकी पसंद जिंदगी का बचपन वाला हिस्सा ही रहा। अपनी जिंदगी को लेकर उन्होंने कहा था-
मेरे रोने का जिसमें किस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है।
दुनिया यही दुनिया है तो क्या याद रहेगी
जोश को साल 1954 में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ से नवाजा था। उनकी मौत के कई साल बाद साल 2012 में पाकिस्तान की हुकूमत ने उन्हें ‘हिलाल-ए-इम्तियाज’ दिया। जोश ने अपनी जिंदगी में तमाम शानदार गजलें और नज्में लिखीं लेकिन उनकी पसंद जिंदगी का बचपन वाला हिस्सा ही रहा। अपनी जिंदगी को लेकर उन्होंने कहा था-
मेरे रोने का जिसमें किस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है।