लखनऊ

अनूठी परंपरा:एक माह के लिए घी की गुफा में साधनारत हुए भगवान जागेश्वर

देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में भगवान का वास है। भगवान शिव की साधना के लिए यहां के प्राचीन मंदिरों में तमाम अनूठी परंपराएं सदियों से निभाई जा रही है। इन्हीं में जागेश्वर धाम में भगवान शिव का घृत कमल पूजन भी खुद में विशिष्ट पहचान रखता है।

लखनऊJan 15, 2024 / 03:01 pm

Naveen Bhatt

मकर सं​क्राति पर जागेश्वर महादेव घी की गुफा में विराजमान हुए

उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थित श्री जागेश्वर धाम में मकर संक्रांति पर घृत कमल पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। सोमवार को वैदिक मंत्रोच्चार के बीच गाय के करीब दो कुंतल घी से जागेश्वर मंदिर में घी की गुुफा (घृत कमल) निर्माण किया गया गया। उसके बाद ज्योतिर्लिंग मंदिर में विधि विधान से भगवान शिव का पूजन कर भगवान जागेश्वर जी को घी की गुुफा में विराजमान किया गया। इससे समूचे क्षेत्र का माहौल भक्ति और आस्था से सराबोर हो गया।
फाल्गुन एक गते को खुलेगा घृत कमल
जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति के पुजारी प्रतिनिधि पंडित नवीन चंद्र भट्ट ने बताया कि
यहां पर घृत कमल पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। बताया कि हर साल मकर संक्राति पर भगवान शिव के लिए घी की गुफा तैयार की जाती है। उसके बाद भगवान उस गुफा में एक माह के लिए साधरनारत हो जाते हैं। फाल्गुन एक गते को पूर्ण विधि विधान के साथ घृत कमल को उतारा जाएगा।
खौलते पानी में धोया जाता है घी

मान्यता के अनुसार घृत कमल निर्माण के लिए पहले गर्म और फिर ठंडे पानी से घी को रगड़-रगड़ कर धोया जाता है। खोलते पानी में घी पिघल जाता है। मंदिर परिसर में तापमान माइनस सात-आठ डिग्री होने के कारण गर्म पानी में धोने के बाद भी घी तत्काल बर्फ की तरह ठोस आकार ले लेता है। उसके बाद वेदमंत्रों के उच्चारण के साथ ही घृत कमल तैयार किया जाता है।
एक माह बाद होंगे असल स्वरूप के दर्शन
घृत कमल से आच्छिांदित होने के बाद शिव के गुफानुमान आवारण के ही दर्शन भक्तजन कर पाएंगे। ठीक एक माह बाद यानी फाल्गुन की संक्रांति को भगवान शिव को घृत कमल से बाहर निकाला जाएगा।
प्रसाद के रूप में बांटा जाएगा घी
एक माह बाद घृत कमल के घी के छोटे टुकड़े कर उसे भक्तों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। लेकिन घृत कमल का प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता है। अमृत प्रसाद मानकर घी को सिरोधार्य किया जाता है।

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