अबुल फजल लिखता है कि ‘अल्लाहताला ने पहले आदम को बनाया और जब उन्होंने शैतान के बहकाने से गेहूं खा लिया तो फिरदौस (जन्नत) से गिरा दिए गए तो लंका द्वीप में गिरे जहां पर्वत पर उनका तीन गज लंबा चरण चिंंह अबतक दिखाया जाता है। इससे अंदाजा किया जा सकता है कि आदम किस डीलडौल के थे। आदम हज करने मक्के को जाया करते थे। उनके दो बेटे अयूब और शीश की कब्रें अयोध्या में बताई जाती हैं।’
बात साफ हो गई कि अबूल फजल किसी भी बात के लिए खुद ही निश्चिंत नहीं है और लिखता है कि ‘उनकी दो कब्रें अयोध्या में बताई जाती हैं।’ वास्तव में अयोध्या में मुसलमानों का आना-जाना 11 वीं शताब्दी में हो गया था।
यह वक्त वहीं रहा होगा जब गजनी गुजरात के सोमनाथ पर हमला कर रहा था। अफगानिस्तान में काबुल और कांधार के बीच का इलाको खुरासान और बुखारा कहा जाता था। यहीं पास में गजनी थी एक जगह थी, जहां का शासक अलप्तगीन हुआ करता था। उसने अपने दास सुबुक्तगीन की प्रतिभा से प्रभावित होकर उसे अपना दामाद बना लिया और बाद में गजनी की गद्दी सौंप दी थी और अमीर उल उमरा की उपाधि से उसे नवाजा।
सुबुक्तगीन का बेटा महमूद गजनी हुआ जिसने प्रभासपट्टम गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया था। सुबुक्तगीन पहला मुगल आक्रांता जिसने भारत पर आक्रमण किया। ठीक, उसी समय परिहार वंश का राजा राज्यपाल कन्नौज पर राज्य कर रहा था। माना जाता है कि सुबुक्तगीन ने जयपाल से युद्ध किया। राज्यपाल का फारसी में जयपाल होना सुगम है। इस लड़ाई में जयपाल की पराजय हुई और उसने सुबुक्तगीन को कर देना स्वीकार किया।
विंसेट स्मिथ लिखते हैं कि ‘हिंदुओं की हार का कारण था आक्रमणकारी बर्बर थे, कोई नियम वह नहीं मानते थे। धर्मांध लड़ाके मांसाहारी थे।’ सुबुक्तगीन के बाद उसका बेटा महमूद गजनी बादशाह बना। उसने भारत वर्ष पर अपने हमलों का सिलसिला जारी कर दिया। गुजरात में सोमनाथ मंदिर समेत हजारों मंदिर तोड़ डाले गए।
अयोध्या की तरफ मुगलों का अभियान गजनी का भांजा सैयद सालार मसउद गाजी जो गाजी मियां और बाले मिया के नाम से जाना जाता है। वह भारत आया और मारकाट करते, लूटपाट और रक्तपात करते वह बाराबंकी तक पहुंच गया। बाराबंकी के पास उस समय सत्रिख बड़ा समृद्ध नगर था। उसने यहां डेरा डाल दिया और हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए अपने सेना नायक सैफदउद्दीन और मिया रज्जब को बहराइच की ओर भेजा। मलिक फजल को काशी अजीजउद्दीन को गोपामऊ रवाना किया।
बहराईच पहुंचे मुगल तो टूटा सूर्यनारायण मंदिर ईस्वी सन् 1032 में बहराइच मुगल पहुंच गए। जहां भगवान सूर्य नारायण का विश्व प्रसिद्ध मंदिर हुआ करता था। इसके अलावा यहां पर एक तालाब भी था। माना जाता है कि यह मंदिर अयोध्या के सूर्यवंशी सम्राटों ने निर्माण कराया था। बहरहाल, इतिहास के अनुसार यही पर कौशल्या नदी थी जिसे कोडिय़ाला कहा जाता था जिसके किनारे भयंकर युद्ध हुआ।
साल 1033 में मसउद की सारी सेना काट डाली गई और मसउद भी मारा गया। यह कथा प्रचलित है कि मसउद ने सूर्य मंदिर (वालार्क) देखकर कहा था कि ‘हम युद्ध जीते और यह क्षेत्र हमारे पास आया तो मौत के बाद यही अपनी मजार बनाएंगे।’ करीब दो सौ साल के बाद जब मुस्लिम राज आया तो सूर्यमंदिर को तोडक़र मसउद की मजार बना दी गई। अवध गजेटियर में लिखा है कि कब्र में मसउद का सर सूर्यनारायण मंदिर पर रखा हुआ है।
अवध गजेटियर, वाल्यूम एक, पेज तीन के अनुसार ‘गाजी मियां के अयोध्या आने की कोई चर्चा इतिहास में नहीं है। केवल एक ग्रंथ दरबिहिश्त में लिखा है कि गाजी मियां अयोध्या आया था।’ अयोध्या की तरफ बढऩे का साहस नहीं कर पाए मुगल
अवध गजेटियर के अनुसार ‘श्रीवास्तव्य राजा थे और अत्यंत शक्तिशाली थे। मसउद की पराजय में श्रीवास्तव्यों का हाथ था।’ हांलाकि इतिहास में यह मान्यता दे दी गई है कि मसउद को पराजित करने वाला राजा सुहेलदेव था। संभव है कि मसउद की सेना जिस तरह गाजर मूली की तरह काट दी गई उसके बाद गाजी मिया की सेना को अयोध्या की तरफ बढऩे का साहस नहीं हुआ हो।
जबकि बाराबंकी के सत्रिख शहर से बहराईच की जगह अयोध्या करीब थी लेकिन मुगल सेनाएं उधर जाने से डरने लगी थी। हांलाकि अयोध्या के कनक भवन को गाजी मियां ने नष्ट किया था ऐसा एक लेख कनक भवन की ओर से छापा गया था। लेकिन इतिहास में गाजी के अयोध्या पहुंंचने की खबर संदेह से भरा है।
गजनी की मौत के बाद क्या हुआ महमूद गजनी की मौत हुई और 1207 में अलाउद्दीनल हुसैन ने गजनी को जमकर लूटा, मारकाट कर गजनी को कब्रिस्तान बना डाला। इसी अलाउद्दीन की मौत के बाद उसका बेटा उत्तराधिकारी बना लेकिन मार डाला गया। मुहम्मद बिन साम गोर का शासक बना। मुहम्मद बिन साम ने भारत की ओर रुख किया और पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई हुई।
गहरवारों से छीन ली अयोध्या उस समय अयोध्या कन्नौज के गहरवारों के अधीन थी और गहरवारों के परास्त होने के बाद अयोध्या मुगलों के अधीन आ गई। यह वक्त करीब 1207 के बाद का रहा है। इसी वक्त मखदूम शाह जूरन गोरी जो अपने भाई सुल्तान मुहम्मद गारी के साथ भारत आया था।
वह एक छोटी सी सेना लेकर अयोध्या पहुंचा। उसने अयोध्या आते ही जैन समुदाय के भगवान आदिनाथ मंदिर को तोड़ डाला। बताया जाता है कि अयोध्या के बकसरिया टोले में अब भी जूरन के वंशज रहते हैं, हांलाकि भगवान आदिनाथ का मंदिर फिर से बन गया है लेकिन मंदिर का चढ़ावा मुसलमान लेते हैं।
कुल 76 हमलों से लहुलुहान होती रही अयोध्या अयोध्या पर हुए हमलों की सिलसिलेवार स्थिति से हम आपको अवगत कराएंगे। कुछ प्रमुख हमले जिसमें अयोध्या को लूटा और तोड़ा गया इसके अलावा भारी रक्त पात हुआ उनमें
गुलाम आब्दगीन के समय एक हमला शाह फीरोज के समय दस हमले मुहम्मद तुगलक के समय दो हमले बाबर के समय चार हमले हूमायूं के समय दस हमले अकबर के समय 16 हमले
औरंगजेब के समय 21 हमले सैयद सालार मसउद गाजी के समय दो हमले नबाव सहादत अली के समय चार हमले सिकंदर लोदी के समय एक हमला नासिरउद्दीन हैदर के समय तीन हमले
अंग्रेजों के समय दो हमले अयोध्या, राम और राममंदिर की कथा में हमने प्राचीन अयोध्या से लेकर त्रेतायुगीन तीर्थो की चर्चा किया। सनातन संस्कृति से लेकर अयोध्या की भौगोलिक सीमाओं का वर्णन किया। पुराणों, धर्मग्रंथों और इतिहास की पुस्तकों के हवाले से हमने अयोध्या के प्राचीन गौरव को रेखांकित किया है। अब आगे बढ़ते हैं, उन घटनाओं की तरफ जिनके कारण अयोध्या में संघर्ष हुए। इतिहास के अनुसार अयोध्या पर सबसे पहले हूण और किरातों ने हमले किए और मूल राममंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया। जिसे बाद में महाराजा विक्रमादित्य ने निर्माण कराया था। इसके बाद अयोध्या और मुगल आक्रमणों की शुरूआती ऐतिहासिक स्थिति को हमने साफ किया। अब आगे हम बाबर की चर्चा को जारी रखेंगे।