नवाबी शहर लखनऊ पूरी दुनिया में अपनी तहजीब और विरासत के कारण अलग पहचान रखता है। लखनऊ की शाम पूरी दुनिया में मशहूर है। लोग यहां नवाबों की विरासत को देखने दूर-दूर से आते हैं। उनकी रोमांचक कहानियों के जीवंत दस्तावेज देखकर एक अलग अनुभव संजोते हैं। बात सिर्फ यहीं नहीं रूकती। भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण की राजधानी रहा यह शहर अपने आप में आज़ादी से जुडी कई स्मृतियों को समेटे हुए है।
बड़ा इमामबाड़ा , छोटा इमामबाड़ा, भूलभुलैया, घंटाघर, रेजीडेंसी, पिक्चर गैलरी, सतखंडा पैलेस, दादा मियां की दरगाह और जामा मस्जिद जैसी नवाबी दौर की तमाम इमारतें आज भी मुस्कराकर पर्यटकों का स्वागत कर रही हैं। ऐतिसाहिक इमारतों के अलावा चौक और अमीनाबाद की तमाम संकरी गलियां अपनी अलग कहानी कहती हैं। चूड़ी वाली गली से लेकर कंघे वाली गली, बताशे वाली गली, फूल वाली गली और बानवाली गली जैसी कई मशहूर गलियां हैं, जो अपने नाम और सामान से आज भी जानी जाती हैं। गड़बड़झाला बाजार है। जहां एकबारिगी गुम हो जाने का अहसास होता है।
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दुनिया में फेमस है शाम-ए-अवध
गोमती रिवर फ्रंट की खूबसूरत शाम अवध की शाम का नया नजारा पेश करती है, तो सुबह रूमी गेट से उगते सूरज को निहारना और अस्त होते सूरज के बीच हजरतगंज की गंजिंग ऐतिहासिकता का बोध कराती है। लखनऊ मेट्रो हो या फिर या फिर एशिया का सबसे बड़ा जनेश्वर मिश्र पार्क। आधुनिक सुविधाओं से लैस गोमतीनगर का इकॉना स्पोर्ट्स स्टेडियम हो या फिर ज्ञान-विज्ञान की सैर कराती एनबीआरआई, सीडीआरआई, सीमैप ये सब के सब दुनिया की सबसे तेज विकसित होती सिटी का अहसास कराते हैं।
जायके का जवाब नहीं
जायके का जवाब नहीं लखनवी चिकनकारी और जायके का तो कोई जवाब ही नहीं। चौक की लस्सी, अमीनाबाद की कुल्फी, टुंडे का कबाब, शाही कोरमा, शीरमाल जैसे व्यंजनों का नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता है। लखनऊ चिकनकारी देसी-विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद है। आप लखनऊ आएं और चिकन के कपड़े न ले जाएं, यह हो ही नहीं सकता।
जायके का जवाब नहीं लखनवी चिकनकारी और जायके का तो कोई जवाब ही नहीं। चौक की लस्सी, अमीनाबाद की कुल्फी, टुंडे का कबाब, शाही कोरमा, शीरमाल जैसे व्यंजनों का नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता है। लखनऊ चिकनकारी देसी-विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद है। आप लखनऊ आएं और चिकन के कपड़े न ले जाएं, यह हो ही नहीं सकता।
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सुनाई पड़ती है घुंघरुओं की रुनझुन
लखनऊ कथक नृत्य की भी जननी है। प्रसिद्ध कलाकर लच्छू महाराज, बिरजू महाराज, अच्छन महाराज और शंभू महाराज ने लखनऊ की शान बढ़ाई है। आज भी भातखंडे और पुराने लखनऊ में कथक के घुंघुरूओं की रुनझुन सुनी जा सकती है। लखनऊ की सरजमी ने नौशाद, मजरूह सुलतानपुरी, कैफी आजमी, जावेद अख्तर , अली रजा, भगवती चरण वर्मा, डॉ. कुमुद नागर, डॉ. अचला नागर , वजाहत मिर्जा, अमृतलाल नागर, अली सरदार जाफरी व व्यंग्यकार के.पी. सक्सेना (‘लगान के लेखक) जैसे फनकार भी दिए हैं।