स्वयं सेवी संस्था समृद्धि प्रसाद ग्रोथ सेंटर की पूनम शर्मा ने बताया कि कुम्भ में श्रद्धालुओं के लिए 14 जनवरी को पड़ने वाले पहले पर्व स्नान पर ब्रह्म कुंड का जल भरकर श्रद्धालुओं को भेजा जाएगा। गंगाजल के साथ एक किट भी दी जाएगी। इसमें रुद्राक्ष की माला, मां मनसा देवी व मां चंडी देवी के आशीर्वाद स्वरूप सुहागिन महिलाओं के लिए सिंदूर, बिंदी, हरकी पैड़ी पर कुंभ स्नान करते संत-महात्माओं की तस्वीर, पंचमहाभोग प्रसाद, इलायची दाना तथा मुरमुरे का प्रसाद शामिल हैं। उन्होंने बताया कि डाक खर्च सहित अमृत प्रसाद की कीमत 151 रुपये, 501 रुपए और 1100 रुपए रखने पर विचार किया जा रहा है।
शाही स्नान और प्रमुख स्नान
कुंभ का पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि के दिन 11 मार्च को और अंतिम शाही स्नान 27 अप्रैल (चैत्र माह की पूर्णिमा) को होगा। 12 अप्रैल (सोमवती अमावस्या) और 14 अप्रैल (मेष संक्रांति और वैशाखी) को भी शाही स्नान होना। इसके अलावा प्रमुख स्नान की तारीखें भी निश्चित कर दी गई हैं। इनमें 14 जनवरी 2021 मकर संक्रांति, 11 फरवरी मौनी अमावस्या, 16 फरवरी बसंत पंचमी, 27 फरवरी माघ पूर्णिमा, 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (हिन्दी नववर्ष) और 21 अप्रैल राम नवमी हैं।
कुंभ का पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि के दिन 11 मार्च को और अंतिम शाही स्नान 27 अप्रैल (चैत्र माह की पूर्णिमा) को होगा। 12 अप्रैल (सोमवती अमावस्या) और 14 अप्रैल (मेष संक्रांति और वैशाखी) को भी शाही स्नान होना। इसके अलावा प्रमुख स्नान की तारीखें भी निश्चित कर दी गई हैं। इनमें 14 जनवरी 2021 मकर संक्रांति, 11 फरवरी मौनी अमावस्या, 16 फरवरी बसंत पंचमी, 27 फरवरी माघ पूर्णिमा, 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (हिन्दी नववर्ष) और 21 अप्रैल राम नवमी हैं।
चार स्थानों पर लगता है कुम्भ
कुम्भ के बारे में कथा प्रचलित है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत को पीने के लिए देवताओं और राक्षसों में भीषण युद्ध हुआ था। इस दौरान अमृत कलश की बूंदे चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। अमृत के लिए 12 वर्षों तक देवासुर संग्राम हुआ था, इसीलिए इन चार स्थानों पर प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार कुम्भ का मेला लगता है। कुम्भ में सभी अखाड़ों के साधु-संत और श्रद्धालु यहां की पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मान्यता है कि कुम्भ के दौरान स्नान से जहां सभी पाप नष्ट हो जाते हैं वहीं, शरीर स्वस्थ और निरोग होता है।
कुम्भ के बारे में कथा प्रचलित है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत को पीने के लिए देवताओं और राक्षसों में भीषण युद्ध हुआ था। इस दौरान अमृत कलश की बूंदे चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। अमृत के लिए 12 वर्षों तक देवासुर संग्राम हुआ था, इसीलिए इन चार स्थानों पर प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार कुम्भ का मेला लगता है। कुम्भ में सभी अखाड़ों के साधु-संत और श्रद्धालु यहां की पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मान्यता है कि कुम्भ के दौरान स्नान से जहां सभी पाप नष्ट हो जाते हैं वहीं, शरीर स्वस्थ और निरोग होता है।