scriptअवध की सरजमीं में आज भी जिंदा है गुरुकुल प्रथा  | Gurukul tradition is still alive in soil of Awadh | Patrika News
लखनऊ

अवध की सरजमीं में आज भी जिंदा है गुरुकुल प्रथा 

गरीब बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने वाले चंद्र भूषण बताते हैं कि आज के दौर शिक्षा और शिक्षण दोनों के मायने बदल गए हैं।

लखनऊSep 02, 2015 / 12:39 pm

इन्द्रेश गुप्ता

gurukul

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रुचि शर्मा
लखनऊ। विकास के पथ पर फर्राटा भरते भारत में शिक्षा पर बाजारीकरण की छाया ऐसी हावी हुई कि प्राचीनकाल से प्रचलित गुरुकुल प्रथा ही विलुप्त होती चली गई। लेकिन नवाबों की नगरी लखनऊ में एक शख्स ऐसा भी है जिसने इस दौर में भी गुरुकुल प्रथा को जिंदा कर रखा है। वह न केवल गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देते हैं बल्कि भोजन व कपड़े भी उपलब्ध कराते हैं।

जिस दौर में शिक्षण कार्य व्यवसाय में तब्दील हो गया और शिक्षा महज आरामदायक जीवन यापन का जरिया भर बन कर रह गई है उस दौर में राजधानी के शारदानगर निवासी आचार्य चंद्र भूषण तिवारी ने गरीब व असहाय बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के कार्य को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है। गरीब बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने वाले चंद्र भूषण बताते हैं कि आज के दौर शिक्षा और शिक्षण दोनों के मायने बदल गए हैं।


वे कहते हैं कि गुरु ही वह होता है जो शिष्यों को समाज में रहने योग्य बनाता है, सही मार्ग में चलने के लिए प्रेरित करता है लेकिन असलियत में अब ऐसा नहीं रह गया है। शिक्षा और शिक्षण दोनों धन पर आ टिके हैं। पूंजीपति के बच्चों को तो अच्छी शिक्षा मिल जाती है लेकिन गरीब के बच्चे को नहीं। श्री तिवारी कहते हैं कि हमारे देश में शिक्षा व्यवस्था बहुत बुरे दौर से गुजर रही हैं जहां एक तबका ऐसा है जो अच्छी शिक्षा से महरूम है और इसकी वजह सिर्फ इतनी सी है कि वह स्कूलों व शिक्षकों की भारी-भरकम फीस नहीं चुका सकता।


श्री तिवारी कहते हैं कि गरीबों को शिक्षा से दूर जाते देख उन्होंने उन्हें शिक्षित करने की ठानी और अपनी सामर्थ के अनुसार उन्हें शिक्षा, भोजन व कपड़े आदि उपलब्ध करवाने लगे। उन्होंने बताया कि उन्होंने झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के साथ-साथ प्रकृति को हरा भरा बनाने का भी संकल्प लिया है। पौध दान ही है गुरु दक्षिणा श्री तिवारी बताते हैं कि वह गुरु दक्षिणा के रूप मे सिर्फ एक पौधे का दान देने को कहते हैं साथ ही अपने शिष्य से ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने का वचन लेते हैं।


वह कहते हैं कि यदि फलदार वृक्ष पर्याप्त संख्या में होंगे तो गरीब लोगों को भूखे नहीं सोना पड़ेगा। साथ ही धरती का वतावरण भी अच्छा रहेगा। वे कहते हैं कि उन्होंने शिक्षा के साथ- साथ प्रकृति को बचाने का भी संकल्प लिया है। अभी तक वे एक लाख पेड़ लगा चुके हैं। आगे 1० लाख पेड़ लगाने की ठानी है। श्री तिवारी का कहना है कि फलदार पेड़ों की सहायता से गरीब भूखा नहीं सोयेगा । भारतीय संस्कृति में वृक्षों का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। जल की तरह पेड़- पौधें भी हमारे जीवन का अविभाज्य अंग हैं।

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