लोकसभा चुनाव 2019 से पहले सपा-बसपा का गठबंधन हुआ, जो चुनाव परिणाम आते ही धराशायी हो गया। यह बात दीगर है कि गठबंधन के वक्त अखिलेश और मायावती दोनों का दी दावा था कि यह दोस्ती लंबी चलेगी। राजनीतिक स्वार्थ के चलते बसपा सुप्रीमो मायावती ने अलग होने की घोषणा कर दी, पीछे-पीछे अखिलेश भी उसी राह चल पड़े। करीब दो साल पहले एक और राजनीतिक दोस्ती परवान चढ़ी थी। अच्छे लड़कों की दोस्ती। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘अपनों’ के विरोध की परवाह न करते हुए साइकिल पर सवार हो गये। यहां भी चुनाव परिणाम दोस्ती के बीच विलेन बन गये और साथ-साथ प्रेसवार्ता करने वाले दोनों जिगरी दोस्त अलग-अलग हो गये।
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लोकसभा चुनाव से पहले एक दोस्ती और टूटी। वह थी सत्तारूढ़ दल बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की। 2017 के विधानसभा में मिलकर चुनाव लड़े सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर योगी मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे। राजनीतिक स्वार्थ के चलते आम चुनाव से पहले दोनों दल न केवल अलग हुए, बल्कि एक-दूसरे पर तीखे व्यंग्य बाण भी छोड़े। चुनाव से पहले राजभैया सपा से अलग हुए तो निषाद पार्टी बीजेपी के साथ आ गई। अपना दल अनुप्रिया पटेल गुट बीजेपी के साथ है तो कृष्णा पटेल गुट कांग्रेस के साथ हो लिया। यूपी की राजनीति में दर्जनों ऐसे नेता हैं, जो राजनीतिक स्वार्थ के चलते अलग होते रहे हैं। यह भी पढ़ें