Friendship Day 2019 : स्वार्थ के चलते परवान चढ़ती हैं राजनेताओं की दोस्ती, साथ आये तो बना इतिहास और अलग हुए तो…
Friendship Day 2019 : यूपी में चुनाव से पहले नेताओं की बनती-बिगड़ती हैं जोड़ियांराजनीतिक हितों के चलते टूटती रही हैं राजनीतिक दलों की दोस्तीFriendship Day Special : दोस्ती के रिश्तों पर भारी राजनीतिक व निजी स्वार्थ
स्वार्थ के चलते परवान चढ़ती हैं राजनेताओं की दोस्ती, साथ आये तो बना इतिहास और अलग हुए तो…
लखनऊ. उत्तर प्रदेश के राजनेताओं की दोस्ती (Friendship Day 2019) समय के साथ टूटती और परवान चढ़ती रही है। वह फिर चाहे मायावती (Mayawati) और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की दोस्ती हो या फिर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की। इससे पहले भाजपा और बसपा भी साथ-साथ चलने की कोशिश कर चुके हैं, अफसोस राजनीतिक हितों के चलते इन दलों की दोस्ती भी परवान नहीं चढ़ सकी। सियासत में दोस्ती राजनीतिक नफा-नुकसान के लिए ही बनती और टूटती है। हाल ही में टूटी अखिलेश-मायावती की दोस्ती इसका सटीक उदाहरण है। दोनों धुर-विरोधी दल इतिहास बनाते हुए 25 साल पुरानी अदावत भुलाकर साथ-साथ आ तो गये, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद दोनों अलग-अलग हो गये। वरिष्ठ राजनीति विश्लेषक हीरेश पांडेय कहते हैं कि राजनीतिक दलों गठबंधन सही मायने अवसरवादिता की दोस्ती है, जिसका ताना-बाना राजनीतिक स्वार्थ के इर्द-गिर्द ही बुना होता है।
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले सपा-बसपा का गठबंधन हुआ, जो चुनाव परिणाम आते ही धराशायी हो गया। यह बात दीगर है कि गठबंधन के वक्त अखिलेश और मायावती दोनों का दी दावा था कि यह दोस्ती लंबी चलेगी। राजनीतिक स्वार्थ के चलते बसपा सुप्रीमो मायावती ने अलग होने की घोषणा कर दी, पीछे-पीछे अखिलेश भी उसी राह चल पड़े। करीब दो साल पहले एक और राजनीतिक दोस्ती परवान चढ़ी थी। अच्छे लड़कों की दोस्ती। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘अपनों’ के विरोध की परवाह न करते हुए साइकिल पर सवार हो गये। यहां भी चुनाव परिणाम दोस्ती के बीच विलेन बन गये और साथ-साथ प्रेसवार्ता करने वाले दोनों जिगरी दोस्त अलग-अलग हो गये।
लोकसभा चुनाव से पहले एक दोस्ती और टूटी। वह थी सत्तारूढ़ दल बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की। 2017 के विधानसभा में मिलकर चुनाव लड़े सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर योगी मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे। राजनीतिक स्वार्थ के चलते आम चुनाव से पहले दोनों दल न केवल अलग हुए, बल्कि एक-दूसरे पर तीखे व्यंग्य बाण भी छोड़े। चुनाव से पहले राजभैया सपा से अलग हुए तो निषाद पार्टी बीजेपी के साथ आ गई। अपना दल अनुप्रिया पटेल गुट बीजेपी के साथ है तो कृष्णा पटेल गुट कांग्रेस के साथ हो लिया। यूपी की राजनीति में दर्जनों ऐसे नेता हैं, जो राजनीतिक स्वार्थ के चलते अलग होते रहे हैं।