अगले 72 घंटे बेहद अहम
राणा की बेटी और सपा नेता सुमैया राणा ने बताया कि उनके पिता की तबीयत पिछले दो-तीन दिनों से खराब चल रही थी। डायलिसिस के दौरान उनके पेट में दर्द था , जिसके चलते डॉक्टर ने उन्हें एडमिट कर लिया। सीटी स्कैन में आया कि उनके गॉल ब्लैडर में कुछ दिक्कत है , जिसके चलते उसकी सर्जरी की गई।
राणा की बेटी और सपा नेता सुमैया राणा ने बताया कि उनके पिता की तबीयत पिछले दो-तीन दिनों से खराब चल रही थी। डायलिसिस के दौरान उनके पेट में दर्द था , जिसके चलते डॉक्टर ने उन्हें एडमिट कर लिया। सीटी स्कैन में आया कि उनके गॉल ब्लैडर में कुछ दिक्कत है , जिसके चलते उसकी सर्जरी की गई।
मिली जानकारी के मुताबिक, तबीयत में सुधार नहीं हुआ तो अब डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रख दिया है। हालांकि डॉक्टर उनके स्वास्थ्य पर लगातार निगरानी रखे हुए हैं और इन्फेक्शन को कम कम करने की कोशिश की जा रही है। डाक्टरों ने राणा के लिए अगले 72 घंटे काफी क्रिटिकल बताए हैं।
काफी समय से चल रहे हैं बीमार
पिछले साल भी उनकी तबीयत बिगड़ गई थी जिसके बाद उन्हें लखनऊ के एसजीपीजीआई (SGPGI) में एडमिट कराया गया था। राणा किडनी की परेशानी की वजह से डायलिसिस पर चल रहे हैं।
पिछले साल भी उनकी तबीयत बिगड़ गई थी जिसके बाद उन्हें लखनऊ के एसजीपीजीआई (SGPGI) में एडमिट कराया गया था। राणा किडनी की परेशानी की वजह से डायलिसिस पर चल रहे हैं।
कौन हैं राणा
मुनव्वर राणा प्रसिद्ध शायर और कवि हैं, उर्दू के अलावा हिंदी और अवधी भाषाओं में लिखते हैं। मुनव्वर ने कई अलग शैलियों में अपनी गजलें प्रकाशित की हैं। उनको उर्दू साहित्य के लिए 2014 का साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) और 2012 में शहीद शोध संस्थान द्वारा माटी रतन सम्मान से सम्मानित किया गया था। उन्होंने लगभग एक साल बाद अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था। साथ ही बढ़ती असहिष्णुता के कारण कभी भी सरकारी पुरस्कार स्वीकार नहीं करने की कसम खाई थी।
मुनव्वर राणा प्रसिद्ध शायर और कवि हैं, उर्दू के अलावा हिंदी और अवधी भाषाओं में लिखते हैं। मुनव्वर ने कई अलग शैलियों में अपनी गजलें प्रकाशित की हैं। उनको उर्दू साहित्य के लिए 2014 का साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) और 2012 में शहीद शोध संस्थान द्वारा माटी रतन सम्मान से सम्मानित किया गया था। उन्होंने लगभग एक साल बाद अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था। साथ ही बढ़ती असहिष्णुता के कारण कभी भी सरकारी पुरस्कार स्वीकार नहीं करने की कसम खाई थी।