मान्यता है कि प्रभु श्रीराम जब 14 वर्ष का वनवास काटने के लिए अयोध्या छोड़ने लगे, तब उनकी प्रजा और किन्नर समुदाय भी उनके पीछे-पीछे चलने लगे थे। तब श्रीराम ने उन्हें वापस अयोध्या लौटने को कहा। लंका विजय के पश्चात जब श्रीराम 14 साल वापस अयोध्या लौटे तो उन्होंने देखा बाकी लोग तो चले गए थे, लेकिन किन्नर वहीं पर उनका इंतजार कर रहे थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने किन्नरों को वरदान दिया कि उनका आशीर्वाद हमेशा फलित होगा। तब से बच्चे के जन्म और विवाह आदि मांगलिक कार्यों में वे लोगों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं ।
यह भी पढ़ें
यूपी में आत्महत्या का डरावना सच, क्यों 1631 गृहणियों ने मौत को गले लगा लिया?
तांत्रिक साधना में, किन्नर समाज के साधक विशेष मंत्र, यंत्र, और मुद्राएं का उपयोग करते हैं जो उन्हें आत्मा के साथ एकाग्र करने में मदद करते हैं। यह साधना उन्हें अपनी अद्वितीय स्वभाव के साथ मिलकर अध्यात्मिक सुधार की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करती है। यह भी पढ़ें- रात को सोते समय कर लें यह उपाय, अयोध्या के ज्योतिषी ने बताया हर समस्या होगी दूर तांत्रिक साधना का एक और पहलुओं में इस समाज की महत्वपूर्णता है विशेष रूप से स्त्री किन्नरों के बीच। उन्हें अपनी शक्ति को जागरूक करने और अपने सभी प्राकृतिक यह साधना उन्हें अपनी अद्वितीय स्वभाव के साथ मिलकर अध्यात्मिक सुधार की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करती है। तांत्रिक साधना का एक और पहलुओं में इस समाज की महत्वपूर्णता है, विशेष रूप से स्त्री किन्नरों के बीच। उन्हें अपनी शक्ति को जागरूक करने और अपने सभी प्राकृतिक गुणों के लिए तांत्रिक साधना का आदान-प्रदान है।इस तरीके से, किन्नर समाज के तांत्रिक रहस्य साधकों को अपने आत्मा के साथ संवाद करने और अपनी अनूठी सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने का एक अद्वितीय और अद्वितीय तरीका प्रदान करते हैं।
बहुचरा देवी किन्नर समाज के कुलदेवी मानी जाती है। बुहचरा देवी को मुर्गे वाली माता के नाम भी जाना जाता है। किन्नर समाज के लोग बुहचरा माता को अर्धनारीश्वर के रूप में पूजते हैं। किन्नर समाज में बहुचरा देवी का मंदिर भारत में कई स्थानों पर हैं। लेकिन सबसे प्रसिद्ध मंदिर गुजरात के मेहसाणा के पास स्थित है। यहां पर बहुचरा देवी मुर्गे पर विराजमान हैं। इस मंदिर का निर्माण वडोदरा के राजा मानाजीराव गायकवाड़ ने किया था।
किसी नए सदस्य को शामिल करने के भी नियम है। मसलन किन्नरों के समूह में नए सदस्य को शामिल करने से पहले नाच-गाना और सामूहिक भोज होता है। वहीं आम लोगों की तरह किन्नर समाज भी वैवाहिक बंधनों में बंधते हैं। किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से विवाह करते हैं,लेकिन इनका विवाह मात्र एक दिन के लिए होता है। मान्यता है कि शादी के अगले दिन किन्नरों के अरावन देवता की मृत्यु के साथ ही इनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है।