भारतीय संविधान में ‘एनकाउंटर’ शब्द का जिक्र ही नहीं है। आईपीसी हो या फिर सीआरपीसी भारतीय कानून में कहीं भी एनकाउंटर को वैध ठहराने का प्रावधान नहीं है। सुरक्षा बल और अपराधियों के बीच हुई मुठभेड़ में जब किसी अपराधी की मौत हो जाती है तो पुलिसिया भाषा में इसे एनकाउंटर कहा जाता है। हालांकि, कुछ नियम-कानून ऐसे जरूर हैं जो पुलिस को यह अधिकार देते हैं कि वो अपराधियों पर हमला कर सकती है और उस दौरान अपराधियों की मौत को सही ठहराया जा सकता है। केवल दो ही ऐसे घटनाक्रम हैं, जिसमें एनकाउंटर की घटनाओं को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। पहला, खुद की रक्षा के लिए किसी को मारा जाये और दूसरा भारतीय दंड संहिता की धारा 46 के तहत पुलिस को बल प्रयोग करने का अधिकार दिया जाता है, जिसमें किसी की मृत्यु भी हो सकती है। हालांकि, यह भी तय है कि एनकाउंटर में मारे जाने वाला गंभीर अपराधी हो, जिसकी सजा मृत्युदंड या फिर आजीवन कारावास हो।
मुकदमे के बाद ही मृत्युदंड
संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। संविधान में जिक्र है कि जब तक अपराध न साबित हो जाये कोई भी आरोपित दोषी नहीं है। पुलिस का काम है कि वह आरोपित को गिरफ्तार कर सुबूतों के आधार पर चार्जशीट दाखिल करे। मुकदमे चलाने से पहले अभियुक्त को उस पर लगे आरोपों के बारे में सूचित करना होगा, फिर खुद का (वकील के माध्यम से) बचाव करने का अवसर देना होगा। दोषी पाये जाने के बाद ही उसे मृत्युदंड दिया जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। संविधान में जिक्र है कि जब तक अपराध न साबित हो जाये कोई भी आरोपित दोषी नहीं है। पुलिस का काम है कि वह आरोपित को गिरफ्तार कर सुबूतों के आधार पर चार्जशीट दाखिल करे। मुकदमे चलाने से पहले अभियुक्त को उस पर लगे आरोपों के बारे में सूचित करना होगा, फिर खुद का (वकील के माध्यम से) बचाव करने का अवसर देना होगा। दोषी पाये जाने के बाद ही उसे मृत्युदंड दिया जा सकता है।
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पुलिस को साबित करना होगा…
आमतौर पर लगभग सभी तरह के एनकाउंटर में पुलिस आत्मरक्षा के दौरान हुई कार्रवाई का जिक्र ही करती है। सीआरपीसी की धारा 46 कहती है कि अगर कोई अपराधी खुद को गिरफ्तार होने से बचाने की कोशिश करता है या पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है या पुलिस पर हमला करता है तो इन हालातों में पुलिस उस अपराधी पर जवाबी हमला कर सकती है। लेकिन, पुलिस को साबित करना होगा कि उन्होंने सेल्फ डिफेंस में गोली चलाई है।
सुप्रीम कोर्ट और एनएचआरसी की गाइडलाइन
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि अगर एनकाउंटर के दौरान पुलिस गोली चलाती है या चलानी पड़ती है तो मौत होने की स्थिति में एफआईआर दर्ज होगी और पूरे घटनाक्रम की एक स्वतंत्र जांच सीआईडी से या दूसरे पुलिस स्टेशन के टीम से करवानी जरूरी है, जिसकी निगरानी एक वरिष्ठ पुलिस अफसर करेगा जो एनकाउंटर में शामिल सबसे उच्च अधिकारी से एक रैंक ऊपर होना चाहिए। वारदात के 48 घंटों के भीतर ही पुलिस को मामले की रिपोर्ट राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजनी होगी वहीं, तीन महीने बाद पुलिस को आयोग के पास एक रिपोर्ट भेजनी होगी जिसमें घटना की पूरी जानकारी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जांच रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट शामिल होनी चाहिए। एनएचआरसी की गाइडलाइन कहती है कि फर्जी एनकाउंटर का शक होने पर जांच होनी जरूरी है। पुलिस अधिकारी के दोषी पाए जाने पर मारे गए लोगों के परिजनों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि अगर एनकाउंटर के दौरान पुलिस गोली चलाती है या चलानी पड़ती है तो मौत होने की स्थिति में एफआईआर दर्ज होगी और पूरे घटनाक्रम की एक स्वतंत्र जांच सीआईडी से या दूसरे पुलिस स्टेशन के टीम से करवानी जरूरी है, जिसकी निगरानी एक वरिष्ठ पुलिस अफसर करेगा जो एनकाउंटर में शामिल सबसे उच्च अधिकारी से एक रैंक ऊपर होना चाहिए। वारदात के 48 घंटों के भीतर ही पुलिस को मामले की रिपोर्ट राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजनी होगी वहीं, तीन महीने बाद पुलिस को आयोग के पास एक रिपोर्ट भेजनी होगी जिसमें घटना की पूरी जानकारी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जांच रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट शामिल होनी चाहिए। एनएचआरसी की गाइडलाइन कहती है कि फर्जी एनकाउंटर का शक होने पर जांच होनी जरूरी है। पुलिस अधिकारी के दोषी पाए जाने पर मारे गए लोगों के परिजनों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए।