पंडित माधव प्रसाद शुक्ल सुदर्शन पत्र में लिखते हैं कि मुसलमान राज में अयोध्या मुसलमानों के मुर्दो के लिए करबला हुई। मंदिरों की जगह पर मस्जिदों और मकबरों का अधिकार हुआ। अयोध्या का बिलकुल स्वरुप ही बदल दिया। ऐसी आख्यायिका और मस्नवी गढ़ी जिनसे यह सिद्ध हो कि मुसलमान औलिये फकीरों का यहां कदीमी अधिकार है…। (1932 में प्रकाशित अयोध्या का इतिहास, अवधवासी लाला सिताराम) सफदरजंग के बाद उसका बेटा शुजाउदौला बादशाह बना। उसने अयोध्या से तीन मील दूरी पर फैजाबाद शहर बसाया, कहा जाता है कि फैजाबाद को इतनी खूबसूरती से उसने बनवाया कि बाद में अंग्रेज भी चकित हो जाते थे। हांलाकि अंग्रेजों का आगमन औरंगजेब के पहले से ही शुरू हो चुका था। छिटपुट उदाहरण जहांगीर के समय से मिलते हैं लेकिन शुजाउदौला के शासन काल तक आते-आते अंग्रेजों की स्थिति देश में काफी मजबूत हो चुकी थी।
हालात यह थे कि शुजाउदौला को अंग्रेजों से संधि करनी पड़ी थी। इसी के समय में फैजाबाद में तिरपौलिया आदि इमारते और अनेक बाग बनाए गए। जैसे लाल बाग, ऐशबाग, बुलंद बाग, अंगूरी बाग, राजा झाउलाल का बाग आदि जो आज भी लखनऊ में आधुनिक मुहल्लों की शक्ल में मौजद हैं। जवाहिर बाग में शुजाउदौला की मलिका बहू बेगम का मकबरा है। हयात बक्श और फरहत बक्श दो बाग अयोध्या में बनाए गए।
शुजाउदौला की मौत के बाद फैजाबाद उसकी विधवा बहू बेगम की जागीर में रहा और उसके बेटे असफदौला ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाया। बहू बेगम का नगर में बड़ा आतंक था। जब उसकी सवारी निकलती तो अयोध्या और फैजाबाद में घरों के दरवाजे बंद हो जाते थे। इतना ही नहीं, रास्ते में कोई माथे पर तिलक लगाए मिल जाता तो उसे कठोर दंड दिया जाता। उसी समय का एक दोहा प्रसिद्ध है कि
अवध बसन को मन चहै, पै बसिये केहि ओर। तीन दुष्ट एहि मेें रहें, वानर, बेगम और चोर।। हमने बताया कि देश में धीरे-धीरे अंग्रेज काफी मजबूत स्थिति में आ चुके थे और वारेन हेस्टिंग्स गर्वनर जनरल ने बहू बेगम और उसकी सास को नाना प्रकार का दुख दिया और उनसे एक करोड़ बीस लाख रुपया ले लिया। बहू बेगम फैजाबाद में 1816 में मरी और जिस मकबरें में वह गड़ी है उसे बेहद खूबसूरत बनाया गया है। उसके चारों तरफ सुंदर बाग और उसके रखरखाव के लिए माफी लगाई गई है।
शाही दरबार लखनऊ से उठ जाने के बाद अयोध्या में कोई विशेष घटना नहीं हुई। बादशाहों के कार्यकाल में दर्शन सिंह और उनके दरबारियों ने अनेक मंदिर बनवाए जो आज भी मौजूद हैं। अयोध्या का इतिहास में लाला सीताराम लिखते हैं कि –
‘अंतिम बादशाह वाजिदअली के समय एक दुर्घटना हुई जिसका वर्णन बहू बेगम के दरबारी दराबअली खां के खानदान के एक व्यक्ति के हवाले से लाला सीताराम लिखते हैं कि-
गुलाम हुसैन नाम का सुन्नी फकीर हनुमान गढ़ी के महंतों के यहां पलता था। वह एक दिन अफवाह फैलाना शुरू किया कि औरंगजेब ने गढ़ी में एक मस्जिद बनवा दी थी उसे बैरागियों ने गिरा दिया है। इस पर सुन्नी मुसलमानों ने जिहाद की घोषणा कर दी और हनुमान गढ़ी पर धावा बोल दिया। लेकिन हिंदुओं ने उन्हें मार भगाया और वे भागकर रामजन्मभूमि स्थित बाबरी ढांचे में छिप गए। कप्तान आर, मिस्टर हरसे और कोतवाल मिरजा मुनीम बेग ने यह झगड़ा निपटाया। बादशाही सेना खड़ी थी लेकिन उनको आदेश था कि बीच में न पड़े। हिंदुओं ने फाटक खोल दिया और युद्ध में 11 हिंदू और 75 मुसलमान मारे गए। दूसरे दिन नासिर हुसैन नायब कोतवाल ने मुसलमानों को एक बड़ी कब्र में दफना दिया जिसे गंजशहीदां कहते हैं। इसके पीछे मुसलमानों ने वाजिदअली शाह को अर्जी भेजी कि हिंदुओं ने मसजिद गिरा दी है। इसके अलावा भी कुछ मुसलमानों ने अर्जी भेज दी कि यह झूठी खबर है। बादशाह ने एक अर्जी का जबाव दिया कि – हम इश्क के बंदे हैं, मजहब से नहीं वाकिफ। गर काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या।। हांलाकि मुसलमान संतुष्ट नहीं हुए। लखनऊ जिले के अमेठी के मौलवी अमीर अली ने हनुमान गढ़ी पर दूसरा धावा बोलने का प्रबंध शुरू कर दिया। लेकिन वह रुदौली के पास शुजागंज में मारा गया। इसके बाद बादशाह तख्त से उतार दिए गए और नवाबी का अंत हो गया।