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ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स दो प्रकार के होते हैं। एक हैं कंटीन्यूअस फ्लो और दूसरा है पल्स (नाड़ी)। कंटीन्यूअस फ्लो ऑक्सीजन लगातार एक फ्लों में ऑक्सीजन सप्लाई देता रहता है, वो भी तब तक, जब तक इसे बंद न कर दें। वहीं पल्स डोस मरीज के सांस लेने के पैटर्न का आंकलन करता है और जब भी मरीज को ऑक्सीजन की कमी की जरूरत होती है वह उसे सप्लाई करता है। जब्कि ऑक्सीजन सिलेंडर में ऑक्सीजन खत्म होने के बाद इसे फिर से रिफिल करना होगा यानी ऑक्सीजन प्लांट पर ले जाकर सिलेंडर में फिर से ऑक्सीजन भरना होगा।
ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स दो प्रकार के होते हैं। एक हैं कंटीन्यूअस फ्लो और दूसरा है पल्स (नाड़ी)। कंटीन्यूअस फ्लो ऑक्सीजन लगातार एक फ्लों में ऑक्सीजन सप्लाई देता रहता है, वो भी तब तक, जब तक इसे बंद न कर दें। वहीं पल्स डोस मरीज के सांस लेने के पैटर्न का आंकलन करता है और जब भी मरीज को ऑक्सीजन की कमी की जरूरत होती है वह उसे सप्लाई करता है। जब्कि ऑक्सीजन सिलेंडर में ऑक्सीजन खत्म होने के बाद इसे फिर से रिफिल करना होगा यानी ऑक्सीजन प्लांट पर ले जाकर सिलेंडर में फिर से ऑक्सीजन भरना होगा।
ये भी पढ़ें- कोरोना कर्फ्यू के दौरान हो रही थी शूटिंग, पुलिस ने मामला किया दर्ज गंभीर मरीजों के लिए नाकाफी हैं ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर- ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर पोर्टेबल होते हैं और उन्हें आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर उन मरीजों के लिए नाकाफी हैं, जो ज्यादा गंभीर बीमारियों से पीड़ित है, साथ में जिन्हें कोरोना हो गया है। क्योंकि ये कंसन्ट्रेटर्स केवल प्रति मिनट पांच-दस लीटर की ऑक्सीजन ही दे सकते हैं। और ऐसे गंभीर मरीजों को ज्यादा सप्लाई की जरूत होती है।
डाक्टरों की राय है कि जब मरीज का ऑक्सीजन लेवेल 92 प्रतिशत से कम हो जाता है, तब ऑक्सीजन सिलेंडर या ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर के जरिए ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जा सकता है। लेकिन स्थिति ज्यादा खराब होने व ऑक्सीजन सपोर्ट लगाने के बावजूद लेवेल गिरने पर मरीज को अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी है।