दीपावली पूजन का मुख्यकाल है प्रदोष काल कानपुर के प्रमुख पंडित आचार्य सत्येंद्र अग्निहोत्री ने बताया कि यूं तो दीपावली का पूजन प्रदोष काल में किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रदोष काल में स्थिल लग्न की प्रधानता होती है। इस मुहूर्त में पूजन करने से जिंदगी का भटकाल खत्म होता है। इस बरस प्रदोष काल और निशीथ काल के संधि समय में पूजन करने से परिवार पर ऐश्वर्य की बारिश होना तय है। उन्होंने बताया कि दीवाली के दिन यानी 19 अक्टूबर को शाम में 5.38 बजे से 8.14 बजे तक प्रदोष काल रहेगा। इसके बाद निशीथ काल शुरू होगा। ऐसे में शाम 7.15 बजे से रात 9.10 बजे तक वृष लग्न में पूजा करना विशेष शुभप्रद होगा।
आफिस में दोपहर 2.38 से 4.09 बजे तक पूजन आचार्यों के मुताबिक, आफिस, दुकान, फर्म आदि में दोपहर 2.38 बजे से शाम 4.09 बजे तक कुंभ लग्न में पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा। किसी कारणवश इस समय पूजन नहीं कर पाएं तो शाम 8.14 बजे के बाद निशीथ काल में वाणिज्यिक परिसर में पूजन करना होगा। आचार्य भरत राम तिवारी के अनुसार अमावस्या तिथि 18 अक्टूबर 2017 को रात्रि 12.10 बजे लगेगी जोकि 19 अक्टूबर 2017 को रात 12.32 बजे तक रहेगी। दीपावली पूजन में अमावस्या तिथि, प्रदोष, निशीथ और महानिशीथ काल का विशेष महत्व होता है। आचार्य डॉ.सुशांत राज के अनुसार जो लोग प्रदोष काल में पूजन नहीं कर सकते, वह निशीथ एवं महानिशीथ काल में पूजा कर सकते हैं।
तिजोरी भरन के लिए यूं कीजिए महालक्ष्मी की आराधना दीपावली की रात्रि पूजन करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है, लेकिन कुछ ध्यान रखना होगा। अव्वल अपनी क्षमता के मुताबिक, चांदी, तांबा या स्टील के पात्र में लाल रंग का कपड़ा बिछाकर इत्र का छिडक़ाव कीजिए। इसके बाद पात्र में पात्र की धातु के ग्यारह सिक्के रख दीजिए। यूं समझिए कि चांदी का पात्र है चांदी के सिक्के और तांबे का पात्र है तांबे के सिक्के। स्टील के पात्र में प्रचलित सिक्के रखिए। दीपावली के पूजन के समय इस पात्र का भी पूजन कीजिए। इसके बाद उसे तिजोरी अथवा अलमारी के अंदर दक्षिण दिशा में स्थापित कर दीजिए। यकीन कीजिए संपूर्ण वर्ष आपके परिवार में धन-वर्षा होती रहेगी।
कुबेर की पूजा कीजिए, गणेश जी की सूंड देखिए दीपावली पूजन पर कुबेर और उल्लू की प्रतिमा भी पूजास्थल पर होनी चाहिए। इसके साथ ही ध्यान रखना होगा कि गणेशजी का स्थान लक्ष्मी मैया के बायें होना चाहिए। यानी लक्ष्मीजी गणेश भगवान के दायीं ओर बैठेंगी। इसके अतिरिक्त मूर्ति खरीदने समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि विधि व्यवस्था के अनुसार गणेश-लक्ष्मी की स्थापना करने पर भगवान की सूड़ का छिद्र लक्ष्मीजी की तरफ नहीं होना चाहिए। पूजन के समय लक्ष्मी माया को लाल वस्त्र, लाल फूल और लाल अनार भेंट करना चाहिए, जबकि गणेशजी को पीले वस्त्र, मोदक, पीले मिष्ठान और केला अर्पित करना चाहिए।
पूजन की विधि भी जानना जरूरी है आचार्य सूर्यनारायण शुक्ल के मुताबिक, घर के मंदिर अथवा पूजास्थल में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्तियों को स्थापित कीजिए। इसके बाद दायीं ओर एक घी का दिया जलाएं। सबसे पहले स्वास्तिवाचन कीजिए, इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान लगाकर चौकी के पास ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में कलश स्थापना कीजिए। अब नवग्रह की पूजा करनी है। इसके बाद लक्ष्मीजी और फिर कुबेरदेव की पूजा कीजिए। अंत में सभी परिजन मिलकर आरती करेंगे।