पीएम मोदी के शब्द कुछ इस तरह थे, “आपसे मेरी एक शिकायत है। मैं चाहूंगा कि उसे सुधारा जाए। आपने मुझे बार-बार मान्य प्रधानमंत्री कहा। मैं आपके परिवार का सदस्य हूं, कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नहीं।”
बोहरा मुसलमानों के बीच प्रधानमंत्री मोदी लगातार जाते रहे हैं। 2018 में इंदौर में भी पीएम मोदी पहुंचे थे, तो काफी देर ठहरे थे। इस दौरान बोहराओं के धार्मिक कार्यक्रम, दुआ वगैरह में भी वो शामिल रहे थे। पीएम मोदी के मौजूदा दौरे के बाद ये सवाल मन में आना लाजिमी है कि बोहरा मुसलमान कौन हैं, जिनके कार्यक्रमों में पीएम मोदी जाकर उनसे खुद को प्रधानमंत्री के बजाय घर का सदस्य कहने के लिए कहते हैं।
दुनिया के 80% बोहरा मुसलमान भारत में
मुसलमानों के कई पंथों में से एक बोहरा समुदाय है। ये दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में हैं। इनकी कुल आबादी का करीब 80 फीसदी भारत में है। बोहरा की आबादी गुजरात, एमपी और महाराष्ट्र के कई जिलों में काफी अच्छी तादाद में है।
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ये समुदाय राजनीतिक तौर पर या सामाजिक तौर पर चर्चाओं में कम ही रहता है, इसकी बड़ी वजह ये है कि बोहरा समुदाय के ज्यादातर लोग कोराबार से जुड़े हैं। मुसलमानों में सबसे अमीर माने जाने वाले बोहराओं को समाजी तौर पर अपने तक ही सीमित रहने वाला समुदाय भी माना जाता है।
बोहरा भारत कैसे पहुंचे
बोहरा मुसलमानों भारत में 11वीं शताब्दी में धर्म प्रचारक के तौर पर आए। ये लोग कारोबार भी करते थे तो इन्होंने समुंद्र के किनारे वाले गुजरात और मुंबई में अपने ठिकाने बनाए। धीरे-धीरे ये लोग यहीं बस गए। बोहराओं ने अपना धार्मिक मुख्यालय भी मुगलों के समय में मुंबई में बना लिया, जो आज तक है।
धार्मिक नेता की बहुत ज्यादा मान्यता
बोहरा मुसलमानों में एक धार्मिक नेता होता है, जिसे दाई-अल-मुतलक सैयदना कहते हैं। सैयदना को इतनी ताकत होती है कि वो जो कह दें वही आखिरी होता है। इनके आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती है। सैयदना किसी भी सदस्य को अपने समुदाय से निकालने का पूरा अधिकार रखते हैं।
बोहरा समुदाय में हर सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक और व्यवसायिक कामों के लिए सैयदना की इजाजत लोनी होती है। इसके लिए एक तय रकम भी चुकानी होती है। बोहराओं के धार्मिक नेता काफी शानो-शौकत से रहते हैं।
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन और बहिष्कार को लेकर विवादों में भी
बोहरा समुदाय आर्थिक तौर पर काफी बेहतर स्थिति में है लेकिन इनके बीच कुछ ऐसी मान्यताएं भी हैं। जिन पर काफी विवाद रहा है। इसमें एक है लड़कियों के फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन की तो दूसरी है बहिष्कार की।
बराअत यानी समाजी बहिष्कार
बोहराओं के बीच ‘बराअत’ की एक व्यवस्था है। इस व्यवस्था के मुताबिक बोहरा समुदाय का कोई भी इंसान अगर सैयदना के फैसले को नहीं मानता है तो उसके खिलाफ बराअत यानी सामाजिक बहिष्कार का कदम उठाया जाता है। इसके बाद इस शख्स को ना तो मस्जिद में भी एंट्री दी जाती है। ना ही मरने के बाद उसे कब्रिस्तान में भी दफनाने की इजाजत होती है।
महिलाओं का फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन
भारत समेत दुनियाभर में रहने वाले दाऊदी बोहरा समुदाय के बीच महिलाओं की फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन का चलन है। फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन प्रथा में ज्यादातर 10 साल से कम उम्र की बच्चियों की वजाइना से एक हिस्सा, क्लिटोरिस हुड को काटकर अलग कर दिया जाता है। लड़कियों की सेक्शुअल डिजायर को कंट्रोल करने के लिए ऐसा किया जाता है।