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सीएसई की रिपोर्ट : सरकार के वादे झूठे, 2020 तक गंगा नहीं होगी साफ

सीएसई की रिपोर्ट : सरकार के वादे झूठे, 2020 तक गंगा नहीं होगी साफ

लखनऊOct 30, 2018 / 02:19 pm

Ruchi Sharma

सीएसई की रिपोर्ट : सरकार के वादे झूठे, 2020 तक गंगा नहीं होगी साफ

पत्रिका लाइव रिपोर्ट
रुचि शर्मा
लखनऊ. पवित्र नदी गंगा सिर्फ एक नदी नहीं, यह हमारी संस्कृति और मान्याताओं से जुड़ी है। लेकिन, आज गंगा देश की सबसे गंदी नदियों में शुमार है। सरकार 2020 तक गंगा को हर कीमत पर साफ किये जाने को लेकर प्रतिबद्ध है। लेकिन, जमीनी हकीकत कुछ है। एक प्रतिष्ठित पत्रिका की रिपोर्ट की मानें तो दो साल में गंगा कतई साफ नहीं हो सकती । भले ही इसके लिए भारी-भरकम बजट सरकार खर्च कर दे और राजनीतिक बयानबाजी करती रहे।
मंगलवार को राजधानी में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की पत्रिका डाउन टू अर्थ के स्वच्छता गंगा, चुनौतियां वही 2019 के गंगा पर आधारित अंक के विमोचन के दौरान अब तक के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि अभी गंगा साफ नहीं होगी बल्कि यह हमेशा की तरह प्रदूषित बनी रहेगी। रिपोर्ट के मुताबिक चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ गंगा का वादा किया था। बावजूद इसके गंगा नदी प्रदूषित है। नदी के किनारों पर रहने वाले लोग भले ही आंशिक रूप से उपचारित सीवेज का पानी पी सकते हैं, लेकिन गंगाजल नहीं। जबकि, सरकार का दावा था कि गंगा 2019 तक साफ हो जाएगी। अब यह समयसीमा 2020 तक बढ़ा दी गई है।
नमामि गंगे अभियान फेल

पर्यावरणविद् रिचर्ड महापात्रा का कहना था कि नमामि गंगे अभियान के लक्ष्य काफी ऊंचे थे, लेकिन उपलब्धि कुछ खास नहीं है। 31 अगस्त 2018 तक अभियान के तहत स्वीकृत परियोजनाओं में से सिर्फ एक चौथाई ही पूरे हो सके हैं। गंगा नदी कि किनारे स्थापित 70 निगरानी स्टेशनों में से केवल पांच का ही पानी पीने के लिए उपयुक्त है। जबकि केवल सात जगहों का पानी स्नान के लायक है। नमामि गंगे के लक्ष्यों के अनुसार दो हजार मिलियन लीटर प्रति दिन क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का पुनर्वास किया जाना है। लेकिन, इसमें से अभी तक केवल 328 एमएलडी ही कवर हो पाया है। इसी तरह 31 अगस्त 2018 तक एसटीपी समेत कुल 236 परियोजनाओं को मंजूरी मिली, जिसमें से 63 ही पूरी हुईं।
पानी का स्तर खतरनाक दर से घटा

विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा नदी में पानी का स्तर खतरनाक दर से नीचे जा रहा है। अगर नदी में प्रवाह को बनाए रखा जाता तो नदी में मौजूद कार्बन प्रदूषण का 60 से 80 प्रतिशत खुद ही दूर कर लेती, लेकिन चिंता इसी बात की है कि भविष्य में जल का प्रवाह और कम हो जाएगा। भागीरथी और अलकनंदा पर स्थापित कई जलविद्युत परियोजनाओं ने गंगा के ऊपरी हिस्सों को परिस्थितिकीय रेगिस्तान में बदल दिया है। इसीलिए 1970 के दशक के मुकाबले 2016 में नदी के बेसफ्लो में 56 प्रतिशत की कमी आई है।
सीवरेज नेटवर्क के लिए 5,794 करोड़ की आवश्यकता

रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में गंगा बेसिन कस्बों में सीवरेज नेटवर्क बनाने के लिए 5,794 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। यह नमामि गंगे के पूरे व्यय से एक चौथाई अधिक है। सफाई कार्यक्रम में देरी से लागत में वृद्धि हो रही है। नेशनल मिशन क्लीन गंगा के अनुसार 22.323 करोड़ रुपए के परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, लेकिन अप्रैल 2018 तक स्वीकृत राशि का केवल 23 प्रतिशत ही उपयोग किया जा सका है।

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