यह भी पढ़ेंं- लहरों से संघर्ष की दो कहानियां, जो बताती हैं हौसलों के आगे कैसे हारती है मौत, अद्भुत है इनका जिंदा बचना दहल उठा था इलाका गोलीकांड में रूम नंबर 102 में मौजूद चार युवकों (भानु प्रकाश मिश्रा, उमाशंकर सिंह, रमेश जायसवाल और विवेक शुक्ला) को दर्जनों गोलियां लगीं। मेडिकल कॉलेज में एक युवक (विवेक शुक्ला) की मौत हो गई। बाद में पहुंची पुलिस (Lucknow Police) को घटनास्थल से 134 कारतूस के खोखे मिले और इन खोखों में ज्यादातर AK-47 के थे। जानकारों की मानें तो यूपी में ये पहला शूटआउट था जिसमें AK-47 से गोलियां बरसाई गई थीं। गोलियों की आवाज से पूरा होटल और आसपास का इलाका दहल उठा था।
सपा ने किया था हंगामा आपको बता दें कि दिलीप होटल और यूपी विधानसभा के बीच की दूरी एक किलोमीटर से भी कम है। घटना के वक्त उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी(BSP) की सरकार थी और मायावती(Mayawati) मुख्यमंत्री थीं। उस गोलीकांड के बाद उस वक्त विपक्ष की मुख्य भूमिका निभा रही समाजवादी पार्टी(Samajwadi Party) ने सदन से लेकर सड़क तक खूब हंगामा काटा था।
भानु को लगी थीं 27 गोलियां इस गोलीकांड में घायल चारों लोग गोरखपुर(Gorakhpur) के ही रहने वाले थे। इन्हीं चारों में से एक भानु प्रकाश मिश्रा भी थे। उन्होंने जब यह कहानी बयां की तो एक बारगी किसी को यकीन नहीं हुआ कि हकीकत में भी ऐसा हुआ है। घटना में भानु प्रकाश मिश्रा को 27 गोलियां लगी थीं। करीब तीन साल तक गहन इलाज के बाद ही भानु प्रकाश मिश्रा अस्पताल से घर लौट पाए थे।
STF का पहला टास्क था श्रीप्रकाश 21 सितंबर, 1997 को उत्तर प्रदेश में बीजेपी(BJP) की सरकार बनी और कल्याण सिंह(Kalyan Singh) मुख्यमंत्री बने। जानकार बताते हैं कि श्रीप्रकाश शुक्ला(shri prakash shukla) ने तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ले ली थी। जिसके तुरंत बाद यूपी एसटीएफ(UPSTF) का गठन हुआ। एसटीएफ का पहला टास्क था -आतंक का पर्याय बन चुके श्रीप्रकाश शुक्ला का खात्मा। इसे अंजाम दिया गया 22 सितंबर, 1998 को गाजियाबाद में। एक मुठभेड़ (Encounter) में एसटीएफ ने श्रीप्रकाश शुक्ल को ढेर कर दिया।