मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र ने मंडल के दर्जनभर स्कूलों के 200 स्कूली बच्चों के रैंडम सर्वे में पाया कि उनमें 70 का वजन सामान्य से अधिक है। इनसे संवाद के दौरान यह बात सामने आई कि वे जब तनाव में रहते हैं तो कुछ न कुछ खाते रहते हैं। इनमें कुछ अधिक पानी या कोल्ड ड्रिंक पीने वाले भी थे। इनमें ज्यादातर छात्र वह थे जो घर में पढ़ाई के दौरान ऐसा करते हैं। स्कूल भी खाने की ऐसी सामग्री लाकर बीच-बीच खाते रहते हैं।
यह भी पढ़े –
यूपी के ये 23 CBSE ICSE स्कूल हो सकते हैं बंद, थमाया गया नोटिस, Admission से पहले देंखे लिस्ट क्या होती है स्ट्रेस ईटिंग बच्चे खाली बैठे हों या पढ़ाई कर रहे हों, वे कुछ न कुछ खाते रहते हैं। वे ज्यादातर ऐसी चीजें खाते हैं जो फास्ट फूड की श्रेणी में आती हैं। यदि उनके सामने खाने के लिए कुछ न हो तो वह घर में तलाश कर या बाजार से लाकर खाने लगते हैं। दरअसल बच्चे मानसिक तनाव में रहते हैं और इसे दूर करने के लिए खाते रहते हैं। इसे स्ट्रेस ईटिंग कहा जाता है।
ऐसे कर सकते हैं बचाव -बच्चे स्ट्रेस का शिकार हैं तो उनके सामने फल रखें -ऐसे फल जिसे खाने में समय लगे तो अच्छा रहेगा -बच्चे में योगा अथवा व्यायाम करने की आदत डालें
-बच्चे यदि फास्ट फूड की डिमांड करें तो रोज न दें -बच्चों के साथ संवाद करें, उनकी रुचि पर ध्यान दें -अभिभावक बच्चों के सामने सीमित मोबाइल यूज करें -बच्चों को मोबाइल के सीमित उपयोग की अनुमति दें
-पढ़ने के समय उनके पास खानपान की चीजें न रखें बड़ों को भी हो सकती है ये बीमारी मंडलीय मनोवैज्ञानिक डॉ.नरेश चंद्र के अनुसार स्ट्रेस ईटिंग केवल बच्चों में नहीं पाई जाती। यह बड़ों में भी संभव है। बच्चों में इसकी आदत इसलिए बढ़ी क्योंकि कोविड काल में वे घर पर बैठ कर घंटों ऑनलाइन आदि पढ़ाई करते हैं। तनाव बढ़ने और इस दौरान बिना रोकटोक कुछ न कुछ खाने को मिलते रहने से समस्या बढ़ गई।