लोक संस्कृति के संवर्धन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रही संस्था सोनचिरैया की सचिव और वरिष्ठ गायिका मालिनी अवस्थी ने अपनी मां निर्मला देवी की स्मृति में उनकी जयंती पर यह अनूठी परंपरा शुरू की है। इस अवसर पर संस्था की सचिव के रूप में मालिनी अवस्थी ने यह इच्छा भी जाहिर की कि अगले साल से युवाओं को लोक कला के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने के लिए स्कॉरशिप भी दी जाएगी।
मुख्य मंत्री आवास पर मुख्यमंत्री ने कालबेलिया नृत्य के मशहूर कलाकार गौतम परमार और आल्हा गायक शीलू सिंह राजपूत को भी स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर कैलाश, मनहरण सार्वा, मेनका परधी, पद्मश्री मालिनी अवस्थी, विद्याबिन्दु सिंह, पुष्कर, जगमोहन रावत, राहुल चौधरी मौजूद रहे।
तीजनबाई ने पंडवानी गायन के तहत दुशासन अंत का लोकप्रिय प्रसंग सुनाया। यह प्रसंग नारी सम्मान, प्रतिशोध और वीरता की त्रिवेणी पेश करने वाला रहा। इसमें कुरुक्षेत्र में युद्ध के दौरान भीमसेन ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए द्रौपदी का चीरहरण करने वाले दु:शासन के हाथों को उखाड़ फेंका। माथें पर टीका, कमर पर कमर पेटी, बांह में बाजूबंद पहने तीजनबाई के हाथ में मोरपंख लगे रंगीन फुंदनों वाला तंबूरा कभी गदा तो कभी रथ बना। रागियों के द्वारा बोले गए फिर, एच्छा, अरे, जैसे संवादों ने प्रस्तुति का आकर्षण बढ़ाया। हारमोरियम पर चैतराम साहू, सह-गायन में रामचन्द्र निषाद, तबले पर केवल देशमुख, ढोलक पर नरोत्तम नेताम, बैंजो पर डालेश्वर निर्मलकार, ढपली पर मनहरन सार्वा ने बेहतरीन सामंजस्य बैठकर वाहवाही लूटी।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों की कड़ी में राजस्थान का पारपंरिक कालबेलिया नृत्य मशहूर कलाकार गौतम परमार ने पेश किया। उन्होंने केसरिया बालम और गोरबंद के बाद कालबेलिया नृत्य पेश किया। दमादम से उन्होंने प्रस्तुति को विराम दिया। सम्मान समारोह की अंतिम, जोशीली प्रस्तुति शीलू सिंह राजपूत का आल्हा गायन रहा। उसमें उन्होंने सिरसागढ़ की लड़ाई पेश की। उसमें पृथ्वीराज चौहान धोखे से वीर मलखान को मरवाते हैं। आयोजन स्थल को पूरी तरह ग्रामीण परिवेश में विकसित किया गया था। कहीं गौशाला तो कहीं हाट का दृश्य दिखा। मोर कबूतर और भित्ती चित्रण भी आकर्षण का केन्द्र बने।