विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम् ।
रनीचादप्युत्तमां विद्यांस्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि ।। इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने बताया है कि मनुष्य को जहर से भी अमृत निकाल लेना चाहिए। इसी प्रकार से यदि सोना गंदगी में भी पड़ा हो तो उसे उठा लेना चाहिए। इसमें थोड़ा भी संकोच नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही यदि किसी कमजोर कुल मे जन्म लेने वाले से भी सर्वोत्तम ज्ञान मिल सकता है, उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इसमें कोई दोष नहीं है। चाणक्य कहते हैं कि यदि कोई बदनाम घर की कन्या भी महान गुणों से युक्त है और आपको कोई सीख देती है तो इसे भी अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए।
रनीचादप्युत्तमां विद्यांस्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि ।। इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने बताया है कि मनुष्य को जहर से भी अमृत निकाल लेना चाहिए। इसी प्रकार से यदि सोना गंदगी में भी पड़ा हो तो उसे उठा लेना चाहिए। इसमें थोड़ा भी संकोच नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही यदि किसी कमजोर कुल मे जन्म लेने वाले से भी सर्वोत्तम ज्ञान मिल सकता है, उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इसमें कोई दोष नहीं है। चाणक्य कहते हैं कि यदि कोई बदनाम घर की कन्या भी महान गुणों से युक्त है और आपको कोई सीख देती है तो इसे भी अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए।
यह भी पढ़े – अगर आपके घर में भी घट रहीं ये पांच घटनाएं तो आने वाला है ये बड़ा संकट सत्कुले योजयेत्कन्यां पुत्रं विद्यासु योजतेत् ।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ।।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ।।
आचार्य चाणक्य इस श्लोक माध्यम से बताना चाहते हैं कि कन्या का विवाह अच्छे खानदान मे करना चाहिए। पुत्र को श्रेष्ठ शिक्षा देनी चाहिए, शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए, और मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए। जो ऐसा करते वे सफलता प्राप्त करते हैं। इन बातों को जो ध्यान रखता है और अमल करता है, उसे कष्ट नहीं उठाने पड़ता हैं। इससे जीवन कुशलपूर्वक चलता है।