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ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज की 2019 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में कैंसर पीड़ितों की संख्या छह लाख से अधिक थी। मगर इसके तेजी से बढ़ने व हर साल 1.9 लाख तक होने की बात कही गई है। इससे पहले इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने 2008 में कैंसर को अधिसूचित करने का सुझाव दिया था।साल 2022 में संसद की स्थायी समिति ने भी इसे अधिसूचित बीमारी घोषित करने की सिफारिश की थी, ताकि कैंसर से होने वाली हर मौत का सरकार को पता चल सके। अभी तमाम मौतों की सरकार को जानकारी ही नहीं हो पाती है। समिति ने कैंसर के मामलों के रजिस्ट्रेशन, वास्तविक समय पर डाटा संग्रह, काउंसलिंग आदि के लिए कोविन की तरह एक पोर्टल बनाने की भी सिफारिश की थी। देश में हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, असम सहित 14 राज्य अब तक कैंसर को अधिसूचित बीमारी घोषित कर चुके हैं।
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डाटाबेस और पॉलिसी बनाना होगा आसानप्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की नोडल एजेंसी सांचीज के साथ मिलकर हाल ही में केजीएमयू के विशेषज्ञों डा. कीर्ति श्रीवास्तव व डा. आनंद मिश्रा ने कैंसर की एक स्टडी रिपोर्ट तैयार की है। इसमें लैंडस्केप ऑफ कैंसर केयर प्रोविजन इन उत्तर प्रदेश नामक इस स्टडी में कैंसर को अधिसूचित बीमारी घोषित करने की जरूरत बताते हुए सरकार से सिफारिश की गई है। डा. कीर्ति श्रीवास्तव व डा. आनंद मिश्रा ने बताया कि इससे न केवल कैंसर रोगियों का डाटा बेस तैयार करने में सहूलियत होगी, बल्कि रोकथाम के लिए पॉलिसी निर्माण में भी सहायता मिलेगी।
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क्या होती हैं अधिसूचित बीमारी?ऐसी कोई भी बीमारी जिसके प्रकाश में आने की सूचना सरकार और सरकारी अधिकारियों को देनी पड़े। उसे अधिसूचित बीमारी कहा जाता है। फिलहाल इसके तहत वह बीमारियां चिह्नित की गई हैं, जिनकी निगरानी की जरूरत है। सभी सरकारी और निजी अस्पताल, क्लीनिक अथवा पैथोलॉजी लैब को इन बीमारियों के लक्षण मिलते ही इसकी प्रारंभिक सूचना शासन को देनी होती है। यानी शासन स्तर से ऐसी बीमारियों पर नजर रखी जाती है। शासन इन्हें नियंत्रित करने के उपायों पर अग्रसर रहता है।
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ये बीमारियां अधिसूचितडा. कीर्ति श्रीवास्तव व डा. आनंद मिश्रा ने बताया कि हैजा, डिप्थीरिया, इंसेफ्लाइटिस, कुष्ठ रोग, मेनिन्जाइटिस, प्लेग, तपेदिक, पर्टुसिस (काली खांसी), एड्स, यलो फीवर, खसरा, हेपेटाइटिस, डेंगू, मलेरिया आदि बीमारियों को केंद्र सरकार अधिसूचित बीमारी घोषित कर चुकी है।