मुरादाबाद के बाद पीतल के बर्तनों का मुख्य बाजार था सुलतानपुर का बंधुआकला, खरीदारों की लगी रहती थी होड़
पलायन की वजह
पलायन की स्थिति को समझाते हुए वरिष्ठ पत्रकार शकील अली हाशमी कहते हैं कि बुंदेलखंड में पलायन एक क्रमिक प्रक्रिया है, जो दशकों से लगातार चल रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने यहां का पलायन रोकने के लिए कई योजनाएं चलाईं, जो हाथी का दात ही साबित हुईं। कृषि को लेकर कोई नया प्रयोग नहीं दिख रहा है। पानी की समस्या भी बड़ी है। नतीजन, बेरोजगारी और रोजी-रोटी के जुगाड़ में बुंदेलखंड के लोग महानगरों की ओर पलायन करने लगे। इनमें दिल्ली, गुजरात, मुंबई और हरियाणा प्रमुख रूप से शामिल हैं। शकील अली हाशमी कहते हैं कि सरकारी पैकेजों से कृषि का भला नहीं हो सका और न ही रोजगार के स्रोतों की वैकल्पिक व्यवस्था हो सकी। सूखे के अलावा प्राकृतिक आपदा ने लोगों को बाहर जाने को विवव कर दिया।
किसानों के हितों के आवाज उठाने वाले किसान नेता शिवनारायण परिहार कहते हैं कि जब खेती से परिवार का गुजारा चलना संभव नहीं है तो यहां के किसान पलायन को मजबूर हुए। वह बताते हैं कि बुंदेलखंड से पलायन करने वाले लोग दो तरह के हैं। इनमें कुछ मौसमी हैं, जो सिर्फ कुछ महीनों के लिए बाहर जाते हैं और कुछ ऐसे लोग हैं जो परिवार सहित दूसर शहरों में शिफ्ट हो गये हैं।