scriptVideo: मोनी अमावस्या पर बुन्देलखण्ड में होता है भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा ये अनोखा नृत्य | Bundelkhand Cultural Moniya Dance performance during Diwali | Patrika News
लखनऊ

Video: मोनी अमावस्या पर बुन्देलखण्ड में होता है भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा ये अनोखा नृत्य

मोनिया नृत्य को लेकर बुन्देलखण्ड की अनोखी मान्यता।

लखनऊOct 20, 2017 / 04:12 pm

Dhirendra Singh

Bundelkhand Moniya

Moniya Dance performance

ललितपुर. बुंदेलखंड परंपराओं का गढ़ माना जाता है बुंदेलखंडी परंपराएं देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी अपनी छटा बिखरने में पीछे नहीं है। बुंदेलखंड अपने आप में बहुत से लोकनृत्य और लोकसंगीतों को संजोए हुए है। इन्हीं बुंदेलखंडी लोकगीत एवं लोकनृत्य की प्रसिद्धि विदेशों में भी है। विदेशी मेहमान जब भी भारत आते हैं, और घूमने के उद्देश्य जवाई बुंदेलखंड में आती है, तो यहां के माहौल को देखकर वह गदगद हो जाती है, क्योंकि बुंदेलखंडी माटी में अपनापन प्यार और दुलार छुपा है। यहां के तीज त्यौहार नृत्य एवं बुंदेलखंडी गाने आने वाले सभी पर्यटको का मन मोह लेती हैं।

बुंदेलखंड का ऐसा ही एक नृत्य है मोनिया नृत्य , यह नृत्य जब ढ़ोल नंगाड़ो की थापों पर संगीत के साथ किया जाता है, तो यह देखने वाला का मन मोह लेता है। यह नृत्य शुरू से लेकर अंत तक देखते ही बनता है। अगर किसी ने यह नृत्य शुरू में देख लिया तो वह जब तक खत्म नहीं हो जाता देखता ही रहता है, क्योंकि इसकी छटा ही ऐसी है।

बुंदेलखंडी लोक नृत्य है मोनिया

बुंदेलखंड में दीपावली का त्यौहार पांच दिनों तक मनाया जाता है। यह त्यौहार धनतेरस से शुरु होकर भाई दूज पर खत्म होता है। दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा एवं मोनी अमावस्या मनाई जाती है। इस दिन अन्नकूट का भी आयोजन किया जाता है। यह अन्नकूट का आयोजन विभिन्न मंदिरों में श्रद्धालुओं द्वारा किया जाता है तथा इसके साथ ही मोनी अमावस्या भी मनाई जाती है। अमावस्या पर ग्रामीण अलग-अलग टोलियां बनाकर पीले कपड़ों में घुंघरु बांधकर एवं मोर पंख लेकर हाथों डांडिया के डंडे लेकर नाचते गाते है। इस नृत्य में मनिया की दुनिया पूरे दिन भर मौन व्रत धारण कर अपने साथियों के साथ गांव-गांव घूमने को निकलती है, और जगह-जगह रखकर मोनिया नृत्य कर बुंदेलखंडी छटा बिखेरती रहती है। इसके लिए मोनिया नर्तकों ने कई दिनों पूर्व से ही तैयारियां शुरू कर दी थी। मोनिया टोली का हर सदस्य अपने बदन पर मोर पंखों को बांधकर विशेष आकर्षण पोशाक पहनकर एक साथ पोलियो में निकलती है। मोनिया नृत्य के दौरान उनके पैरों में घुंघरु और विशेष ढोल नगाड़ों का संगीत इस दिन विशेष आकर्षण होता है। मोनी अमावस्या के दिन मो नियो की टोलियां 12 गांव का भ्रमण करती है और इसके बाद वह अपना मौन व्रत तोड़ते है, और मंदिर-मंदिर जाकर भगवान श्रीकृष्णा के दर्शन करते हैं।

लक्खा कुशवाहा

पिछले 12 साल से हर वर्ष दिवाली के अगले दिन धनवाहा गाँव के रहने वाले मौनिया नृतक लक्खा कुशवाहा बताते हैं, “बारह साल से मौनिया नृत्य में ढोलक बजा रहा हूँ। पूरे दिन उमंग व उल्लास रहता है। मंदिर पर माथा टेकने के बाद मौनिया टोली के प्रण के अनुसार 11 या 21 गाँवों में घूमकर मौनिया नृत्य करते हैं।” वे बताते हैं कि प्राचीन मान्यता के अनुसार जब श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे बैठे हुए थे तब उनकी सारी गायें कहीं चली गईं। अपनी गायों को न पाकर भगवान श्रीकृष्ण दु:खी होकर मौन हो गए। इसके बाद भगवान कृष्ण के सभी ग्वाल दोस्त परेशान होने लगे। जब ग्वालों ने सभी गायों को तलाश लिया और उन्हें लेकर लाये, तब कहीं जाकर कृष्ण ने अपना मौन तोड़ा। इसी आधार पर इस परम्परा की शुरुआत हुई। इसीलिए मान्यता के अनुरूप श्रीकृष्ण के भक्त गाँव-गाँव से मौन व्रत रखकर दीपावली के एक दिन बाद मौन परमा के दिन इस नृत्य को करते हुए 12 गाँवों की परिक्रमा लगाते हैं

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