लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे स्ट्रिप-
भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे से भी उड़ान भर सकते हैं। यहां युद्धक विमान कभी भी लैंड या टेक ऑफ कर सकते हैं। मिराज 2000 जैसे फाइटर विमान भी यहां उतर चुके हैं। इसके अलावा सुखोई और मालवाहक विमान सीए 130 जे सुपर हरक्यूलिस तक इस एक्सप्रेस वे पर अपना जौहर दिखा चुके हैं। यह देश का पहला एक्सप्रेस वे है जिस पर इस तरह की सुविधा उपलब्ध है। उन्नाव के नजदीक बांगरमऊ में 14 किमी लंबी एयर स्ट्रिप के तीन किमी हिस्से की रोड सीमेंट से बनी हुई है। यहां पहली बार 2015 में मिराज लड़ाकू विमान उतरे थे। इस समय यहां की सुरक्षा बढ़ा दी गयी है।
भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे से भी उड़ान भर सकते हैं। यहां युद्धक विमान कभी भी लैंड या टेक ऑफ कर सकते हैं। मिराज 2000 जैसे फाइटर विमान भी यहां उतर चुके हैं। इसके अलावा सुखोई और मालवाहक विमान सीए 130 जे सुपर हरक्यूलिस तक इस एक्सप्रेस वे पर अपना जौहर दिखा चुके हैं। यह देश का पहला एक्सप्रेस वे है जिस पर इस तरह की सुविधा उपलब्ध है। उन्नाव के नजदीक बांगरमऊ में 14 किमी लंबी एयर स्ट्रिप के तीन किमी हिस्से की रोड सीमेंट से बनी हुई है। यहां पहली बार 2015 में मिराज लड़ाकू विमान उतरे थे। इस समय यहां की सुरक्षा बढ़ा दी गयी है।
बीकेटी वायुसेना स्टेशन-
लखनऊ में बीकेटी वायुसेना स्टेशन 1966 में स्थापित हुआ था। तब इसे प्राइमरी केयर एंड मेंटेनेंस यूनिट के रूप में बनाया गया था। 1966 में यहां पहली बार डेकोटा ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उतरा। 1975 में पहली बार फाइटर एयरक्राफ्ट जीनैट और फिर 1980 में लड़ाकू विमान मारूत यहां के रनवे पर उतरा। 1983 में यहां मिग 21 की हॉफ स्क्वाड्रन तैनात की गयी। इसे 13 नवंबर 2014 को लड़ाकू विमान वाले वायुसेना स्टेशन का दर्जा मिला। अब यहां से सुखोई जैसे सुपरसोनिक विमानों की लैंडिंग हो सकती है। इसके साथ ही इसे राफेल और ग्लोबमास्टर हरक्यूलिस सी-17 जैसे बड़े विमानों के लिए तैयार कर दिया गया है। इसके अलावा यह आधुनिक एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोलर) से भी जुड़ गया है। छह दिन पहले यहां से दो विमानों ने उड़ान भरी थी।
लखनऊ में बीकेटी वायुसेना स्टेशन 1966 में स्थापित हुआ था। तब इसे प्राइमरी केयर एंड मेंटेनेंस यूनिट के रूप में बनाया गया था। 1966 में यहां पहली बार डेकोटा ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उतरा। 1975 में पहली बार फाइटर एयरक्राफ्ट जीनैट और फिर 1980 में लड़ाकू विमान मारूत यहां के रनवे पर उतरा। 1983 में यहां मिग 21 की हॉफ स्क्वाड्रन तैनात की गयी। इसे 13 नवंबर 2014 को लड़ाकू विमान वाले वायुसेना स्टेशन का दर्जा मिला। अब यहां से सुखोई जैसे सुपरसोनिक विमानों की लैंडिंग हो सकती है। इसके साथ ही इसे राफेल और ग्लोबमास्टर हरक्यूलिस सी-17 जैसे बड़े विमानों के लिए तैयार कर दिया गया है। इसके अलावा यह आधुनिक एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोलर) से भी जुड़ गया है। छह दिन पहले यहां से दो विमानों ने उड़ान भरी थी।
त्रिशूल एयर फोर्स स्टेशन,बरेली-
पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ट्रेनिंग कैंप पर हमला करने की वायुसेना की रणनीति में बरेली के त्रिशूल एयरबेस की भी प्रमुख भूमिका रही। वायुसेना के कुछ फाइटर जेट मिराज 2000 त्रिशूल एयरबेस से भी उड़े। यहां सुखोई विमान भी तैनात हैं। हालांकि एयरफोर्स की ओर से अधिकृत तौर पर इस एयर स्ट्राइक के बारे में कोई बयान जारी नहीं किया गया है। त्रिशूल देश के प्रमुख एयरबेस में शुमार है और यहां सुखोई की सबसे उन्नत एसयू-30 का होम बेस है। फिलहाल आतंकी हमले के बाद त्रिशूल एयरफोर्स स्टेशन किसी भी आकस्मिक स्थिति के लिए तैयार है। यहां सेना की गरुड़ डिविजन और 6 माउंटेन डिविजन के जांबाज भी अलर्ट पर हैं। एयरफोर्स स्टेशन को स्नाइपर्स ने अपने घेरे मेें ले लिया है।
पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ट्रेनिंग कैंप पर हमला करने की वायुसेना की रणनीति में बरेली के त्रिशूल एयरबेस की भी प्रमुख भूमिका रही। वायुसेना के कुछ फाइटर जेट मिराज 2000 त्रिशूल एयरबेस से भी उड़े। यहां सुखोई विमान भी तैनात हैं। हालांकि एयरफोर्स की ओर से अधिकृत तौर पर इस एयर स्ट्राइक के बारे में कोई बयान जारी नहीं किया गया है। त्रिशूल देश के प्रमुख एयरबेस में शुमार है और यहां सुखोई की सबसे उन्नत एसयू-30 का होम बेस है। फिलहाल आतंकी हमले के बाद त्रिशूल एयरफोर्स स्टेशन किसी भी आकस्मिक स्थिति के लिए तैयार है। यहां सेना की गरुड़ डिविजन और 6 माउंटेन डिविजन के जांबाज भी अलर्ट पर हैं। एयरफोर्स स्टेशन को स्नाइपर्स ने अपने घेरे मेें ले लिया है।
एयरबेस आगरा-
देश के प्रमुख एयरबेसों में से एक है आगरा का वायुसेना स्टेशन। यहां से मिराज लड़ाकू विमान उड़ान भर सकते हैं। जैश पर हमला करने के लिए आगरा के एयरबेस से ही 2 मिड-एयर रिफ्यूएलर्स आईएल-78 ने उड़ान भरी थी। यहां भारतीय वायुसेना के फाल्कन जैसे विमान भी तैनात हैं। जो 0दुश्मन के इलाके से जुड़ी जानकारी, कमांड और चेतावनी देने का काम करते हैं। वर्ष 1961-62 में कांगो (जायरे) में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सेनाओं में भी कैनबरा ने आगरा से ही भारतीय वायुसेना का प्रतिनिधित्व किया था। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने पाकिस्तानी सेना के दांत खïट्टे कर दिए थे। एयरफोर्स स्टेशन में एएन-32 सहित अन्य श्रेणी के विमान हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रॉयल एयरफोर्स स्टेशन आगरा का अहम रोल रहा है। इस युद्ध के तुरंत बाद रॉयल इंडियन एयरफोर्स का गठन किया गया था। 15 अगस्त 1947 को आगरा एयरफोर्स स्टेशन की स्थापना हुई थी। जुलाई 1971 में आगरा वायु सेना मध्य कमांड में आ गया। आगरा में एएन-12, एएन-32, आइएल-76, आइएल-78, सी-47 डकोटा, सी-119, एएन-12, कैनबारा विमान हैं। स्टेशन परिसर में पैरा ट्रेनिंग स्कूल है। यह देश का इकलौता ट्रेनिंग स्कूल है।
देश के प्रमुख एयरबेसों में से एक है आगरा का वायुसेना स्टेशन। यहां से मिराज लड़ाकू विमान उड़ान भर सकते हैं। जैश पर हमला करने के लिए आगरा के एयरबेस से ही 2 मिड-एयर रिफ्यूएलर्स आईएल-78 ने उड़ान भरी थी। यहां भारतीय वायुसेना के फाल्कन जैसे विमान भी तैनात हैं। जो 0दुश्मन के इलाके से जुड़ी जानकारी, कमांड और चेतावनी देने का काम करते हैं। वर्ष 1961-62 में कांगो (जायरे) में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सेनाओं में भी कैनबरा ने आगरा से ही भारतीय वायुसेना का प्रतिनिधित्व किया था। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने पाकिस्तानी सेना के दांत खïट्टे कर दिए थे। एयरफोर्स स्टेशन में एएन-32 सहित अन्य श्रेणी के विमान हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रॉयल एयरफोर्स स्टेशन आगरा का अहम रोल रहा है। इस युद्ध के तुरंत बाद रॉयल इंडियन एयरफोर्स का गठन किया गया था। 15 अगस्त 1947 को आगरा एयरफोर्स स्टेशन की स्थापना हुई थी। जुलाई 1971 में आगरा वायु सेना मध्य कमांड में आ गया। आगरा में एएन-12, एएन-32, आइएल-76, आइएल-78, सी-47 डकोटा, सी-119, एएन-12, कैनबारा विमान हैं। स्टेशन परिसर में पैरा ट्रेनिंग स्कूल है। यह देश का इकलौता ट्रेनिंग स्कूल है।
वायुसेना स्टेशन बम्हरौली- प्रयागराज के बमरौली में मध्य वायु कमान का मुख्यालय है। उप्र का यह सबसे बड़ा एयरबेस है। बमरौली एयरफोर्स स्टेशन पर मिलिट्री इंटेलिजेंस की अत्याधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।