विधायक की तिरंगा यात्रा में पेट्रोल से भरी बोतल लूटने के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं में भगदड़ मच गई। भाजपा कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए। छीना-झपटी में एक-दूसरे पर गिरने लगे। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। इस दौरान कोविड नियमों की धज्जियां तो उड़ी हीं, तिरंगा झंडा भी पैरों तले रौंदा गया। इस दौरान आग की एक छोटी सी चिन्गारी पल भर में सैकड़ों लोगों की जिंदगियां राख कर सकती थी।
बड़े आयोजन से तैयार रहा पुलिस-प्रशासन
पुलिस-प्रशासन की चूक कहें या फिर सत्ता की हनक जो स्वतंत्रता दिवस के दिन इतनी बड़ी लापरवाही सामने आई। ऐसा भी नहीं है कि यह सब अचानक हुआ, बल्कि बीजेपी विधायक ने स्वतंत्रता दिवस पर 40 किलोमीटर लंबी तिरंगा यात्रा की तैयारियां महीनों पहले शुरू कर दी थी। तिरंगा यात्रा में भीड़ की कमी न हो इसके लिए बोतलों में भरकर पेट्रोल जमा किया गया। लेकिन, इतने बड़े आयोजन से पुलिस-प्रशासन अनजान रहा।
पुलिस-प्रशासन की चूक कहें या फिर सत्ता की हनक जो स्वतंत्रता दिवस के दिन इतनी बड़ी लापरवाही सामने आई। ऐसा भी नहीं है कि यह सब अचानक हुआ, बल्कि बीजेपी विधायक ने स्वतंत्रता दिवस पर 40 किलोमीटर लंबी तिरंगा यात्रा की तैयारियां महीनों पहले शुरू कर दी थी। तिरंगा यात्रा में भीड़ की कमी न हो इसके लिए बोतलों में भरकर पेट्रोल जमा किया गया। लेकिन, इतने बड़े आयोजन से पुलिस-प्रशासन अनजान रहा।
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पहले भी दिये जाते रहे हैं प्रलोभन
पहली बार ऐसा नहीं है कि जब प्रलोभन देकर भीड़ जुटाई गई। इससे पहले भी अलग-अलग राजनीतिक दलों पर आरोप लगते रहे हैं। कहीं मौत की शराब बांटी जाती रही है तो कहीं रुपए-पैसे या फिर गिफ्ट। वर्ष 2004 में लखनऊ में बीजेपी नेता लालजी टंडन ने अपने जन्मदिन पर साड़ी बांटने का कार्यक्रम किया। इस दौरान साड़ियों की लूट के लिए मची भगदड़ में 21 महिलाओं की जान चली गई। मृतकों में काफी संख्या गरीब महिलाओं की थी, जो मामूली साड़ी के लिए अपनी जान गंवा बैठी थीं।
शासन-प्रशासन को रहना होगा चौकन्ना
दुखद यह है कि सार्वजनिक तौर पर आयोजित होने वाले ऐसे कार्यक्रमों के अगुआ भी वही लोग होते हैं, जिन पर क्षेत्र की जनता का दायित्व होता है। अब जब 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में चंद महीनों का वक्त शेष है। इस तरह के आयोजन आगे भी देखने को मिलेंगे। ऐसे में शासन-प्रशासन को अपने आंख-कान खुले रखने होंगे। चुनाव आयोग को चौकन्ना रहना होगा। नहीं तो किसी भी दिन बड़ा हादसा हो सकता है और तब हमारे पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं होगा।
दुखद यह है कि सार्वजनिक तौर पर आयोजित होने वाले ऐसे कार्यक्रमों के अगुआ भी वही लोग होते हैं, जिन पर क्षेत्र की जनता का दायित्व होता है। अब जब 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में चंद महीनों का वक्त शेष है। इस तरह के आयोजन आगे भी देखने को मिलेंगे। ऐसे में शासन-प्रशासन को अपने आंख-कान खुले रखने होंगे। चुनाव आयोग को चौकन्ना रहना होगा। नहीं तो किसी भी दिन बड़ा हादसा हो सकता है और तब हमारे पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं होगा।