लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राजनितिक गलियारों में चर्चा है कि इससे भाजपा को एक और संजीवनी मिल गई है। आखिरकार भाजपा के लिए राममंदिर का आलाप हर बार चुनावी तान बना है। राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो राम मंदिर मुद्दे के जरिए शुन्य से शिखर तक पहुंची भाजपा को इस फैसले से आने वाले वक्त में भी फायदा मिल सकता है। राजनीतिक विश्लेशकों का मानना है कि भाजपा सरकार में यह फैसला आना कहीं न कहीं पार्टी को एक और संजीवनी देगा। वहीं सपा व कांग्रेस के लिए फिर से संघर्ष और कठिन हो सकता है। कुछ ऐसे ही हालत मुस्लिम मतों के लिए हाथ-पैर मारने की कवायद में जुटी मायावयी की बहुजन समाज पार्टी की भी है।
ये भी पढ़ें- अयोध्या फैसला: धमकीभरी पोस्ट करने पर लखनऊ पुलिस ने इसे किया गिरफ्तार, एसएसपी ने दिया बड़ा बयानभाजपा के लिए एक बार फिर नफे की जमीन तैयार हो रही- 1980 में भाजपा पार्टी बनी और 1984 में पहले चुनाव में पार्टी केवल दो सीटों पर ही सीमित रही। लेकिन राम मंदिर की धुन गाकर 1989 में लोकसभा में पार्टी की सीटें अस्सी के पार हो गईं। उसके बाद से हर बार भाजपा के घोषणा पत्र में राम मंदिर का मुद्दा रहा। 1996 में पहली बार भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 1992 में बाबरी मस्जिद गिराई गई जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शर्मनाक भी करार दिया। यह बात गौर करने लायक है कि वक्त के साथ भाजपा के एजेंडे में राममंदिर मुद्दा मुखर रूप से शामिल नहीं रहा, लेकिन संघ व उसके आनुषंगिक संगठन इसे लगातार गरमाते रहे और पार्टी इस पर सधी हुई रणनीति अपनाती रही। ऐसे में हिंदुओं का भाजपा के प्रति लगाव बढ़ता गया। और अब आखिरकार भाजपा ने जो वायदा किया था वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ पूरा हुआ। भाजपा ने इससे पहले ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक, धारा 370 को हटाने जैसे एतिहासिक फैसले भी लिए हैं।
सपा को बनानी होगी रणनीति- भाजपा के बाद अगर राम मंदिर मुद्दे पर किसी दल को फायदा मिला है तो वहा सपा। जहां भाजपा अयोध्या आंदोलन को बढ़ावा दे रही थी, तो वहीं मुलायम सिंह यादव की सरकार उसकी धुर विरोधी थी। उसी दौरान समय की नजाकत को देखते हुए आंदलकर्ताओं व कारसेवकों पर गोली चलाई गई थी। इसी प्रकरण के बाद राज्य में सपा की चार बार सरकार भी आई। चुनाव में मुस्लिम मत उसके साथ था। लेकिन अब जब फैसला राम मंदिर के पक्ष में चला गया है तो राजनीतिक विश्लेषक ऐसे कयास लगा रहे है कि सपा को एक बार नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ सकती है। सपा वैसे ही 2017 में कांग्रेस तो 2019 में बसपा से गठबंधन कर पछता रही है और अकेले लड़ने की रणनीति बना रही है। लेकिन अब इस फैसले के बाद अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ेगा।
कांग्रेस में जागी उम्मीद- इस फैसले के बाद कांग्रेस को उम्मीद जगी है कि वह अब दोबारा स्थानीय मुद्दों के साथ भाजपा को पटखनी दे सकती हैं। कांग्रेस का मानना है कि कोर्ट के फैसले के साथ अब भाजपा के पास से राजनीति करने का मुख्य मुद्दा दूर हो गया है। जिसके बाद वह अब किसान, रोजगार जैसे मुद्दों के ही तव्वजों देगी। हालांकि इतिहास के गर्भ में जाए तो ठीक 30 साल पहले 9 नवंबर 1989 को केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने अयोध्या में शिलान्यास कराया था जो यूपी में कांग्रेस की विदाई की वजह बना। उसके बाद से कांग्रेस प्रदेश में लगातार हाशिए पर है और मौजूदा समय में भी चौथे नंबर की पार्टी है।
Hindi News / Lucknow / Ayodhya Verdict के बाद यूपी में बदलेंगे सियासी समीकरण, भाजपा को फायदा, तो सपा कांग्रेस का संघर्ष होगा और कठिन !