लखनऊ

योगी के मंत्री ने कहा- थूक कर चाटना कोई ओपी राजभर से सीखे, क्या है पर्दे के पीछे की कहानी?

राजभर वोटरों को साधने के लिए योगी सरकार में मंत्री अनिल राजभर और SBSP चीफ ओमप्रकाश राजभर के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। ओपी को काउंटर करने के लिए बीजेपी ने अनिल को खुली छूट दे रखी है। क्या कहा अनिल ने? क्या है गाजी और महाराजा सुहेलदेव की दुश्मनी? किस करवट बैठेगा ओपी के राजनीतिक महत्वाकांक्षा का ऊंट ? नीचे स्टोरी में एक-एक करके बता रहे हैं…

लखनऊOct 22, 2022 / 10:27 am

Vikash Singh

2024 के लोकसभा चुनाव में राजभर वोटरों को साधने के लिए अनिल और ओपी ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है।


नाम: अनिल राजभर, पद: यूपी के श्रम एवं सेवायोजन तथा समन्वय विभाग में कैबिनेट मंत्री, विधानसभा क्षेत्र: शिवपुर, जिला: वाराणसी। कैबिनेट मंत्री 20 अक्टूबर को बस्ती पहुंचे। मौका था महाराजा सुहेलदेव के सम्मान समारोह का।
यहां अनिल ने भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी यानी SBSP के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर पर अपनी व्यंग के डिक्शनरी से कई शब्द भेदी बाण छोड़े। आइए आपको पर्दे के पीछे की कहानी बताते हैं। आखिर वो ऐसा क्यों कर रहे हैं?
अनिल ने कहा- ओम प्रकाश का नया नाम असलम राजभर है
अनिल ने कहा की ओम प्रकाश राजभर उर्फ असलम राजभर हैं। महाराजा सुहेलदेव के दुश्मन के मजार पर चादर चढ़ानेवाला बिरादरी का गद्दार है। असल में ओपी ने पिछले साल जुलाई में सैयद सालार मसूद गाजी को चादर चढ़ाई थी।
ओमप्रकाश को असलम क्यों बुलाते हैं अनिल? क्या है राजा सुहेलदेव और गाजी की दुश्मनी?

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, जिन्होंने अजमेर से चिश्तिया सिलसिले की शुरुआत की। सैयद सालार मसूद गाजी का इतिहास भी राजस्थान के इसी जिले से है। वो चिश्तिया सिलसिले से जुड़े थे। सालार मसूद का नाम तलवार की धार पर धर्म का प्रसार करने वाले के रूप में भी जाना जाता है।
अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में लिखा कि मसूद गाजी महमूद गजनवी का भांजा था। उसका जन्म 1024 ईसवी में हुआ था।

दक्षिणपंथ से प्रभावित एक रिसर्च पेपर The Forgotten Battle of Bahraich में दावा किया गया है कि 11वीं सदी में सालार मसूद का यूपी के बहराइच जिले में सुहेलदेव से लड़ाई हुई। सुहेलदेव ने या तो मसूद का सिर काट दिया या फिर उसके गले में तीर मारा था।
राजभर राजा सुहेलदेव और गाजी के दुश्मनी के बारे में जानने के बाद आइए अनिल के बयान पर वापस लौटते हैं…

 
सावधान यात्रा को बताया ठग यात्रा

अनिल राजभर ने कहा कि इन दिनों एक यात्रा निकली है। असलम राजभर की सावधान यात्रा। राजभर समाज की पीठ में किसी ने सबसे ज्यादा छूरा घोंपा है तो उसका नाम है असलम राजभर उर्फ ओपी राजभर। महाराजा सुहेलदेव के नाम पर पार्टी बना कर सबसे ज्यादा समाज को ठगने का काम ओपी ने ही किया है।
अनिल राजभर ने कहा कि इन दिनों एक यात्रा निकली है। असलम राजभर की सावधान यात्रा। राजभर समाज की पीठ में किसी ने सबसे ज्यादा छूरा घोंपा है तो उसका नाम है असलम राजभर उर्फ ओपी राजभर। महाराजा सुहेलदेव के नाम पर पार्टी बना कर सबसे ज्यादा समाज को ठगने का काम ओपी ने ही किया है।
अनिल का सवाल- 20 साल में एक भी राजभर को विधायक क्यों नहीं बना पाए ओपी?
सुभासपा चीफ पर हमला जारी रखते हुए अनिल ने कहा कि ओपी 20 साल पहले बोले कि अपनी पार्टी बना रहा हूं, आज उनका सपना बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का है। अनिल ने आगे कहा कि ओपी राजभर अपने समाज को बताएं कि वो 20 साल में एक भी राजभर को विधायक क्यों नहीं बना पाए?
अनिल का करारा निशाना- थूक कर कैसे चाटा जाता है, ओपी राजभर से सीखें
अनिल ने कहा कि ओपी चुनाव में तो बहुत घूम-घूम कर कह रहे थे कि सरकार नहीं बनने वाली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मठ में भेज रहे थे। आज खुद मंदिर में जा कर, पैर पर गिर कर, हाथ जोड़ कर, आधी रात में सबकी नजरों से बचते हुए हमारे नेताओं के घर जा रहे हैं।
अनिल के मुताबिक, ओपी बस एक ही बात कह रहे हैं कि हमसे गलती हो गई। हमको पार्टी में फिर ले लो। उन्होंने कुशीनगर में कहा था थूक कर कैसे चाटा जाता है, सीखना है तो ओपी राजभर से सीखें।
 
अनिल की ओपी राजभर से सियासी नफरत क्यों?

अनिल और ओमप्रकाश दोनों राजभर समाज से आते हैं। इसकी आबादी उत्तर प्रदेश में कुल 4% है। पूर्वांचल के 100 सीटों पर इस जाति के वोटबैंक का असर है। सारा खेल इसी का है।
ओम प्रकाश राजभर भी पूर्वांचल के गाजीपुर जिले के जहूराबाद विधानसभा से विधायक हैं। यहीं उनका घर भी है।
अनिल राजभर का घर पूर्वांचल के चंदौली में हैं। चंदौली वाराणसी से सटा हुआ जिला है। इसी जिले से भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री व यहां से सांसद महेंद्र नाथ पांडेय भी आते हैं।
ओमप्रकाश अपने आप को राजभर समाज का सबसे बड़ा नेता मानते हैं, लेकिन सिर्फ इसी जाति के वोट से वो पार्टी के विधायक नहीं जितवा सकते हैं। इसीलिए उनको किसी बड़ी पार्टी का साथ चाहिए, जिसका वोट उनको ट्रांसफर हो पाए और उनको वोट उस पार्टी को।
राजनीतक परिपक्वता के कमी के कारण ओपी की पार्टी सुभासपा का किसी भी बड़े दल के साथ गठबंधन ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाया है। उनकी राजनीतिक महात्वाकांक्षा ने उनको हमेशा बड़े दलों से गठबंधन तुड़वाया है।
ओपी ने 1981 में बसपा के संस्थापक कांशीराम के साथ राजनीति शुरू की। 2001 में बसपा सुप्रीमो मायावती से विवाद के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
2002 में उन्होंने अपनी पार्टी बनाई। 2004 से सुभासपा ने चुनाव लड़ना शुरू किया। यूपी और बिहार के चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े किए, मगर ज्यादातर मौकों पर जीतने से ज्यादा खेल बिगाड़ने वाले बने रहे।

2017 में भाजपा के साथ गठबंधन करके सत्ता में जगह पाई। योगी सरकार में ओपी को पिछड़ा कल्याण विभाग में मंत्री बनाया गया। 2019 में ठीक 2 साल बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
2022 विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश सपा के साथ मिलकर 18 सीटों पर चुनाव लड़े और 6 में जीत दर्ज की। चुनाव के 4 महीने बाद ही जुलाई में उन्होंने सपा से गठबंधन तोड़ लिया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ओमप्रकाश 2024 के लोकसभा के चुनाव में किस पार्टी के साथ मिलकर मैदान में उतरते हैं।

बीजेपी ने राजभर वोटरों को साधने के लिए अनिल राजभर को वाराणसी के शिवपुर विधानसभा सीट से मैदान में उतारा। इसी सीट से ओमप्रकाश ने भी अपने बेटे अरविन्द राजभर को सपा गठबंधन की सीट से चुनाव लड़वाया।
अनिल ने पार्टी नेतृत्व के फैसले को सही साबित करते हुए 25 हजार वोटों से जीत दर्ज की। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में अनिल ने सपा के आनंद मोहन यादव को 54 हजार वोटों के बड़े अंतर से हराया था।
सारा टसन 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर है
लोकसभा चुनाव 2024 में मात्र डेढ़ साल बच है। राजभर वोटरों को साधने के लिए ये दोनों एक दूसरे पर हमलावर हो रहे हैं। पूर्वांचल की लगभग दो दर्जन लोकसभा सीटों पर राजभर वोट 50 हजार से ढाई लाख तक हैं। जिसमें घोसी, बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही शामिल है। इन सीटों पर राजभर वोटरों की तादाद किसी भी पार्टी को जिताने और हराने की ताकत रखती है।

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