बहुजन समाज पार्टी (BSP) गठित होने के बाद से दलित बसपा के साथ है। लेकिन, 2014 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Chunav) के बाद से दलित वोटर्स अलग-अलग दलों में बंटते गये। हाल ही में दलितों का भाजपा की ओर रुझान मायावती की हार का बड़ा कारण है। इसे देखते हुए कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी भी इस बार दलितों को रिझाने की पूरी कोशिश कर रही है। उत्तर प्रदेश में करीब 22 फीसदी दलित मतदाता हैं। इनमें एक जाटव और दूसरे गैर जाटव हैं। जानकारों का मानना है कि 14 फीसदी जाटव में बड़ी तादात अभी भी बसपा के साथ है, लेकिन 8 फीसदी गैर जाटव दलितों का बसपा से मोहभंग हो रहा है। इन्हीं दलितों को अपने खेमे में लाने के लिए सभी दल पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, जिसकी शुरुआत आंबेडकर जयंती से हो रही है।
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कांशीराम विचार यात्रा
डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर मायावती (Mayawati) के पैतृक गांव बादलपुर (गौतमबुद्धनगर जिला) से कांशीराम विचार यात्रा शुरू की जा रही है। इस यात्रा का मकसद मायावती के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में पांचवीं बार बसपा की सरकार बनाना है। इसके लिए भव्य रथ बनकर तैयार है। रथ पर डॉ. भीमराव अंबेडकर, चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, रानी लक्ष्मीबाई जैसे कई महापुरुषों के तस्वीरें लगी हैं। दूसरी तरफ कांशीराम और मायावती की बड़ी सी तस्वीर है। रथ पर बड़े-बड़े अक्षरों में कांशीराम विचार यात्रा और उसके नीचे ‘पांचवी बार बसपा सरकार’ लिखा है। रथ की तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। इस बाबत कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। इसके अलावा आंबेडकर जयंती पर बसपाई कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए प्रदेश भर में कार्यक्रम करेंगे। मायावती भी 14 अप्रैल को सुबह प्रेसवार्ता कर पार्टी की रणनीति का खुलासा करेंगी।
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‘संविधान निर्माता’ भीमराव आंबेडकर के बारे में
भारत के संविधान को तैयार करने में डॉ. भीमराव आंबेडकर Bhimrao Ambedkar) ने अहम भूमिका निभाई थी। उन्हें ‘संविधान का निर्माता’ भी कहा जाता है। बाबा साहेब ने अपनी सारी जिंदगी जाति-व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष में बिता दी। मरणोपरांत वर्ष 1990 में उनको भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। आंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। एक ब्राह्मण टीचर के ही कहने पर उन्होंने अपने नाम से सकपाल हटाकर आंबेडकर जोड़ लिया, जो उनके गांव ‘अंबावडे’ के नाम से मिलता-जुलता था। आंबेडकर ने कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही लॉ, इकोनॉमिक्स और पॉलिटिकल साइंस काफी स्टडी और रिसर्च की। इसके अलावा कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उन्होंने कई डॉक्टरेट डिग्रियां भी लीं। बौद्ध भिक्षुओं ने उन्हें बोधिसत्व की उपाधि दी है। बीमारी के चलते अंबेडकर की मृत्यु 06 दिसंबर 1956 को हुई थी।