लखनऊ

शिवजी के अपमान पर ब्रह्मा जी को मिली थी ये सजा, कम लोग ही जानते हैं अनोखा राज

बाबा भैरव भगवान शिव के अंश माने जाते हैं। इनकी उत्पत्ति भगवान शिव से हुई है।

लखनऊNov 07, 2017 / 12:52 pm

आकांक्षा सिंह

लखनऊ. बाबा भैरव भगवान शिव के अंश माने जाते हैं। इनकी उत्पत्ति भगवान शिव से हुई है। इनका जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी 10 नवंबर को है। इस दिन बाबा भैरव के रूप में भगवान शिव प्रकट हुए थे।

शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति

हिन्दू धर्म में लोगों में बाबा बैरनाथ की अपनी अलग ही श्रद्धा है। शिवपुराण के अनुसार इस दिन मध्याह्न में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। इसीलिए इसे काल भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। काशी में स्थित भैरव मंदिर, वैष्णव माता के पास स्थित भैरव मंदिर और उज्जैन में स्थित मंदिर इनके विश्वविख्यात मंदिर हैं। सभी महत्वपूर्ण शक्तिपीठों के पास भैरव मंदिरों की मौजूदगी है।

कैसे हुई भैरव की उत्पत्ति

मान्यता यह है कि शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। भगवान ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को अपशब्द कहे थे लेकिन उस समय भगवान शंकर ने इन बातों का ध्यान नहीं दिया लेकिन बाद में उनके शरीर से उसी समय विशाल दंडधारी प्रचंड काया प्रकट हुई। उसने ब्रह्मा जी का संहार करने का प्रयास किया, पर शिव जी ने बचाव किया। इन्हीं को भैरव का नाम मिला और शिव जी ने इन्हें प्रिय काशी का नगर कोतवाल बना दिया। भैरव अष्टमी भय का नाश करने के लिए मनाई जाती है। भैरव का प्रभाव इसी बात से पता चलता है कि मंत्र के जाप से पूर्व उनकी आज्ञा ली जाती है।

ये है कथा

यह माना जाता है कि ब्रह्मा जी जब पांचवें वेद की रचना करने को उत्सुक थे। तब देवताओं के कहने पर शिव जी ने उन्हें समझाया। न मानने पर शिव जी से प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए। उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी का पांचवां मुख काट दिया। तब भैरव पर ब्रह्मा हत्या का पाप भी लगा था।

इनके हैं दो रूप

इनके दो रूप- बटुक भैरव तथा काल भैरव बहुत प्रसिद्ध हैं। बटुक भैरव भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं तो वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचंड दंडनायक हैं। इनके अष्टभैरव- असितांग भैरव, रुद्रभैरव, चंद्रभैरव, क्रोधभैरव, उन्मत्त भैरव, कपालीभैरव, भीषणभैरव और संहार भैरव हैं। कालिका पुराण में भैरव का वाहन कुत्ता बताया गया है। काले कुत्ते को मीठा खिलाना शुभ माना जाता है।

कैसे होती है पूजा

भैरव की तांत्रिकों द्वारा विधि विधान से पूजा की जाती है। शिवपुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताया गया है। व्रत रखने वालों को प्रत्येक प्रहर यानी आठों पहर (24 घंटे में आठ प्रहर होते हैं) में इन तीन मंत्रों से तीन बार अघ्र्य दें। और भैरव अष्टमी के दिन रात्रि में जागरण कर शिवकथा सुनें तो पापों से मुक्ति मिलती है। गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान की पूजा करनी चाहिए।

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