राम मंदिर निर्माण समतलीकरण के दौरान मिली खंडित मूर्तियों के अवशेष से विवाद पैदा हो गया है। सोशल मीडिया से लेकर आमजन तक में मूर्तियों पर तरह-तरह की बयानबाजी जारी है। ट्विटर पर हैशटैग बौद्धस्थल अयोध्या ट्रेंड कर रहा है। जबकि कुछ लोगों का दावा है कि अवशेष सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान में बने बौद्ध बिहारों का है। ट्विटर यूजर ने यूनेस्को से रामजन्मभूमि परिसर की निष्पक्ष खुदाई की मांग की है। लोगों का कहना है कि यह शिवलिंग नहीं बल्कि बौद्ध स्तंभ हैं। ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव खालिक अहमद खान ने कहा है कि यह यह अवशेष बौद्ध धर्म से जुड़े हैं।
जिलानी बोले-चुनावी फायदा लेने की कोशिश :- समतलीकरण के दौरान मिले अवशेष को जहां राम मंदिर ट्रस्ट ने मंदिर के अवशेष और खंडित मूर्तियां बताया है। वहीं मुस्लिम पक्ष और अयोध्या विवाद में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि यह सब प्रोपगेंडा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि एएसआई के सबूतों से यह साबित नहीं होता है कि 13वीं शताब्दी में वहां कोई मंदिर था। उन्होंने कहा यह सब चुनावी फायदा लेने की कोशिश के तहत किया गया प्रचार है। अयोध्या के पुरातत्वविद केके मुहम्मद ने दावा किया था कि रामजन्मभूमि परिसर में समतलीकरण के बाद मिलीं प्रतिमाएं आठवीं शताब्दी की हैं। उनका दावा है कि यहां रामदरबार भी मिला। हालांकि, इसके मिलने का दावा ट्रस्ट ने नहीं किया है।
श्रीराम ट्रस्ट पर भ्रम फैलाने का आरोप :- बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों का कहना है कि यह पुरावशेष वास्तव में सम्राट अशोक के पौत्र बृहदत्त के काल के उन बौद्ध मंदिरों और स्तूपों के हैं जिन्हें बृहदत्त के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने धोखे से वध करने के बाद उन मंदिरों और स्तूपों का विध्वंस कर दिया था। भला इस मामले में अयोध्या के विनीत कुमार मौर्य ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की थी। जिसमें कहा गया था कि विवादित स्थल के नीचे कई अवशेष दबे हुए हैं जो अशोक काल के हैं और यह बौद्ध धर्म से जुड़े हैं। बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले उस जगह पर बौद्ध धर्म से जुड़ा ढांचा था। एएसआई की खुदाई से पता चला है कि वहां स्तूप, गोलाकार स्तूप, दीवार और खंभे थे जो किसी बौद्घ विहार की विशेषता होते हैं। दावा किया गया था, ‘जिन 50 गड्ढों की खुदाई हुई है, वहां किसी भी मंदिर या हिंदू ढांचे के अवशेष नहीं मिले हैं।