इंदिरा गांधी की वापसी से विपक्ष का टूटा आत्मबल 1975 में लगे आपातकाल के बाद देश में एक बड़ी राजनीतिक क्रांति हुई, जिसका नेतृत्व जयप्रकाश नारायण कर रहे थे। जनता ने इमरजेंसी का विरोध अपने वोट के रूप में किया और 1977 में केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। किंतु वैचारिक और सैद्धांतिक एकरूपता के अभाव में यह सरकार ज्यादा समय तक न चल सकी। 1980 में इंदिरा गांधी ने वापसी करते हुए एक बार फिर पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। इंदिरा की वापसी ने विपक्षी दलों के हौसले और आत्मबल को तोड़ दिया।
ऐसे में कुछ ऐसे भी राजनेता थे जो इस संकट के समय में भी अपनी राजनीतिक सृजन शक्ति से विपक्ष को एकजुट करना चाहते थे। यह दोनों राजनेता और कोई नहीं बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी थे। इनको नई ऊर्जा तब मिली जब दक्षिण भारत से 1983 में कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े और आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव ने गैर कांग्रेसी सरकार बनाई और मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
गोमांस के विरोध में अटल और चौधरी चरण सिंह ने दिया था धरना 26 अक्टूबर 1983 को गोमांस के विरोध में अटल बिहारी वाजपेयी और चौधरी चरण सिंह ने वोट क्लब में एक साथ धरना देकर देश की राजनीति में एक बवंडर खड़ा कर दिया। यह एक तरीके से दो ध्रुवों के एक साथ मिलने की भी घटना थी। जब दोनों एक साथ धरने पर बैठे तो भविष्य की राजनीतिक एकता को एक नई दिशा मिली।
रालोद के राष्ट्रीय महासचिव अनुपम मिश्रा बताते हैं कि दोनों भारत रत्नों ने 1983 में देश की उस वक्त बंजर होती विपक्षी एकता की पथरीली ज़मीन पर राजनीतिक एकता के बीज रोप दिए थे। इसी गठबंधन की समन्वय समिति के अध्यक्ष और नेता सदन चौधरी चरण सिंह को बनाए जाने की सिफारिश अटल ने की थी। अटल को संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव चौधरी चरण सिंह ने दिया था। यही वो ऐतिहासिक पल था जब पार्लियामेंट हाउस में एनडीए के गठन की घोषणा की गई।