क्या है मधुमिता हत्याकांड 19 साल पहले 9 मार्च, 2003 को एक ऐसी बड़ी घटना हुई थी जिसने इस बाहुबली का पूरा करियर चौपट कर दिया। लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में 24 वर्षीय कवियत्री मधुमिता ने उस दिन जब दरवाजा खोला तो सामने संतोष राय और प्रकाश पांडे खड़े थे। मधुमिता ने अंदर बुलाकर नौकर देशराज को चाय बनाने के लिए कहा। अभी चाय बन ही रही थी कि अचानक गोली चलने की आवाज आई। देशराज भागते हुए कमरे में पहुंचा तो मधुमिता खून से लथपथ पड़ी मिलीं। हादसे के वक्त मधुमिता सात माह की गर्भवती थीं। इस हादसे के बाद छह महीने के भीतर देहरादून फास्ट्रैक ने अमरमणि उनकी पत्नी मधुमिता समेत चार दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।
मधुमिता पर दिल हार बैठे थे शादीशुदा अमरमणि मधुमिता उन दिनों वीर रस की ओजपूर्ण कवियत्री हुआ करती थीं। लखीमपुर खीरी जिले की रहने वालीं मधुमिता 16-17 साल में चर्चित हो गई थीं। अपने तेज तर्रार अंदाज के लिए मशहूर मधुमिता देश के प्रधानमंत्री समेत कई बड़े नेताओं को अपने निशाने पर रखती थीं। इसी प्रसिद्धी के चलते उनकी मुलाकात अमरमणि त्रिपाठी से हुई। दोनों में नजदीकियां बढ़ीं और शादीशुदा अमरमणि, मधुमिता पर दिल हार बैठे। मधुमिता का नाम उस दौर के और भी कई सियासतदानों के साथ जुड़ने लगा। सब कुछ सही चल रहा था कि एक दिन अचानक ही उनकी हत्या की खबरें फैल गईं जो पूर्वांचल के बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी के पतन का कारण बन गया।
मधुमिता की मौत के बाद उनके कमरे से एक पत्र मिला जो उन्होंने 2002 में लिखा था। उसमें उन्होंने लिखा था, 4 महीने से मैं मां बनने का सपना देखती रही हूं, तुम इस बच्चे को स्वीकार करने से मना कर सकते हो पर मैं नहीं, क्या में महीनों इसे अपनी कोख में रखकर हत्या कर दूं? तुमने सिर्फ मुझे उपभोग की वस्तु समझा है।’ हत्या के बाद मधुमिता की कोख में मर चुके बच्चे का डीएनए टेस्ट किया गया। उसका मिलान अमरमणि त्रिपाठी के डीएनए से हुआ तो दोनों एक मिले। इस हत्याकांड के बाद तो जैसे अमरमणि का राजनीतिक करियर खत्म ही हो गया। मायावती ने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया तो सपा में चले गए। 2007 में जेल के अंदर से ही चुनाव लड़ा और लक्ष्मीपुर सीट से जीत गए। लेकिन सात महीने बाद ही मधुमिता हत्याकांड में उम्रकैद की सजा मिली और राजनीतिक करियर पूरी तरह से खत्म हो गया।
चुनाव मैदान में बेटे को उतारा पिता को जेल के बाद 2012 के चुनाव में सपा ने बेटे अमनमणि को प्रत्याशी बनाया। लेकिन कौशल किशोर ने उन्हें 7,837 वोटों से हरा दिया। 2017 के चुनाव में सपा ने अमनमणि को टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय उतर गए और कौशल किशोर को 32,256 वोटों से हराकर पहली बार विधायक बन गए। इस बार अमन बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन पिता की ही तरह बेटे पर फभी हत्या का आरोप है। आरोप है कि 2015 में अमनमणि स्विफ्ट डिजायर कार से नौतनवा से दिल्ली जा रहे थे, फिरोजाबाद में कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई और इनकी पत्नी की मौत हो गई लेकिन अमनमणि को एक खरोंच तक नहीं आई। सीबीआई जांच में अमनमणि त्रिपाठी के खिलाफ चार्जशीट दायर हो चुकी है।
वर्तमान में क्या हाल वर्तमान समय में अमनमणि जमानत पर बाहर हैं। उन्हें बसपा ने महाराजगंज की नौतनवा से प्रत्याशी बनाया है। फिलहाल 3 मार्च को वोट पड़ चुके हैं। 10 मार्च को नतीजों की घोषणा होगी।