गाजियाबाद में हुई दुर्घटना के बाद भले ही शासन सख्त है, लेकिन अभी भी प्रदेश में ऐसे तमाम स्कूल वाहन हैं, जो मानक विहीन हैं। लेकिन सड़कों पर धड़ल्ले से फराटा भर रहे हैं। इतना ही नहीं पैसा अधिक कमाने की चक्कर में सवारी बस की तरह बच्चों को भी ठूंस-ठूंस कर बैठाते हैं। खिड़की खुली होने के कारण बच्चों की जान को हमेशा खतरा बना रहता है। ऐसा ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में ही नहीं शहर के बड़े-बड़े स्कूलों की हालत है। सहायक संभागीय परिवहन विभाग से फिटनेस को लेकर जब सख्ती दिखाई गई तो पता चला 7 हजार से अधिक ऐसे वाहन जिनका मेंटीनेंस नही हैं। इसमें कानपुर, जालौन, मथुरा, प्रयागराज आदि तमाम शहरों के स्कूल हैं। इसमें 800 से अधिक अनफिट वाहन सड़कों पर दौड़ रही हैं। अधिकतर स्कूल संचालक अपने विद्यालय के छात्र-छात्राओं को आवागमन के लिए पुराने वाहनों को लगाए हुए हैं। जो वाहन फिट हैं भी तो इनमें किसी के पर्दे नहीं है तो बच्चों की सुरक्षा के लिए दरवाजे खिड़की के पास जाली नहीं लगी हैं। इससे बच्चे खिड़की से बाहर सिर निकालकर ताक झांक करते रहते हैं। लेकिन न तो स्कूल प्रशासन ही चेत रहा और नही अभिभावकों को ये समस्याएं नजर आ रही हैं।
यह भी पढ़े – प्रदेश में एक हजार से अधिक स्कूल होंगे बंद, एडमिशन लेने से पहले देंखे लिस्ट सबसे बुरी स्थिति में है कानपुर जिले में 189 स्कूली बसों की अब तक फिटनेस जांच नहीं हुई है। प्रवर्तन टीम ने इन सभी स्कूल संचालकों को नोटिस जारी किया है। शनिवार तक जांच कराकर सर्टिफिकेट नहीं लिए तो सोमवार को इनके पंजीकरण निरस्त किए जाएंगे। एआरटीओ सुनील दत्त ने बताया कि नोटिस के बावजूद अब तक एक भी स्कूल संचालक ने न तो फिटनेस का आवेदन किया है और न ही यह सूचना दी है कि उनका वाहन वजूद में नहीं है। करीब 90 वाहनों को चालान हो चुका है।
यह भी पढ़े – लखनऊ समेत प्रदेश में बढ़ रहा कोरोना, अगर दिखें ये लक्षण तो तुरंत कराए टेस्ट अब मेंटीनेंस का आया होश आरआई अजीत कुमार ने बताया कि रोजाना की तरह 30-32 वाहन ही फिटनेस को आ रहे हैं। इनमें 20 फीसदी अनफिट हो जाते हैं। प्रदेश में करीब 2 हजार वाहनों के स्कूली बसों के चालान स्कूली बसों के खिलाफ अभियान चलाकर किया जा चुका है। कुछ वाहनों को सीज कर दिया गया है।