कौन नहीं जानता कि प्रदेश के कई जिलों में अवैध शराब का सिंडिकेट चल रहा है। लेकिन, जब तक कोई बड़ा हादसा नहीं होता, पुलिस-प्रशासन के कानों पर जूं नहीं रेंगती। ज्यादा दिन भी नहीं हुए। इसी साल जनवरी महीने में बाराबंकी में ऐसी ही एक ह्दय विदारक घटना हुई थी, जहां जहरीली शराब पीने से 11 लोगों की मौत हो गई थी। तब आबकारी विभाग ने अपने दामन पर लगे दाग को छुपाने के लिए ग्रामीणों से झूठ बुलवाए थे। परिजनों ने कहा था कि मौत स्प्रिट पीने और ठंड की वजह से हुई है। यानी विभाग जिम्मेदार नहीं। लेकिन कानपुर सहित अन्य जिलों में हो रही मौतें सरकारी सिस्टम की पोल खोलती हैं। ये घटनाएं साबित करती हैं कि प्रशासन की कार्रवाई के बावजूद राज्य में शराब माफिया बेखौफ हैं। यहां अवैध शराब का धंधा न तो कभी बंद हुआ है और न ही जहरीली शराब से मौत का तांडव थमा है।
मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ भले ही जहरीली शराब से मौत के मामले में दोषियों के लिए फांसी की सजा देने की बात करते हों लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि शराब बिकवाने का ज्यादा से ज्यादा लक्ष्य भी तो उन्हीं का विभाग मुकर्रर करता है। जब लक्ष्य के अनुरूप शराब बिकवानी है तो नियमों में ठील तो देनी ही होगी। शायद यही वजह है ज्यादातर मौतें सरकारी ठेके की दुकानों से शराब पीकर हुई हैं। ऐसे में अवैध शराब माफियाओं को प्रश्रय देने वाले अफसरों-नेताओं के खिलाफ जब तक कठोर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक लोगों की जिंदगी यूं ही जहरीली शराब की भेंट चढ़ती रहेगी।
शराब से होनी वाली मौतों को रोकना है तो इन मौतों पर होने वाली राजनीति को भी बंद करना होगा। अवैध शराब माफिया मौत के सौदागर हैं बस। जब तक यह समझकर कार्रवाई नहीं होगी तब तब तक मौतों का सिलसिला इसी तरह जारी रहेगा। कानपुर हादसे में दोषी सपा सरकार में पूर्व मंत्री था। इस मामले को तूल देने के बजाय कार्रवाई तय होनी चाहिए। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सजा देने की व्यवस्था करनी होगी। आबकारी विभाग को चाहिए कि वे मौत के सौदागरों के खिलाफ पुख्ता सुबूत एकत्र करें। ताकि कोर्ट की कार्रवाई में वे बच न जाएं। अन्यथा निलंबन और दुुकान का लाइसेंस निरस्त कर देने भर से बात नहीं बनने वाली।