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Akshaya Tritiya 2021 : कोरोना काल में अक्षय तृतीया पर ऐसे करें व्रत और पूजा, जानें- महत्व व खास बातें

Akshaya Tritiya 2021 14 मई को है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन सतयुग समाप्त होकर त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ, ऐसा माना जाता है

लखनऊMay 11, 2021 / 10:01 pm

Hariom Dwivedi

उत्तर भारत में अक्षय तृतीया को ‘आखा तीज’ भी कहा जाता है

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. Akshaya Tritiya 2021 : 14 मई को अक्षय तृतीया है। वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। इसे उत्तर भारत में ‘आखा तीज’ भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया व्रत के साथ त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है। अनेक कारणों से अक्षय तृतीया का महत्त्व है। साढ़े तीन मुहूर्तों में से एक पूर्ण मुहूर्त ‘अक्षय तृतीया’ पर तिलतर्पण करना, उदकुंभदान (उदककुंभदान) करना, मृत्तिका पूजन तथा दान इत्यादि किया जाता है। पुराणकालीन ‘मदनरत्न’ नामक संस्कृत ग्रंथ में बताए अनुसार, ‘अक्षय तृतीया’ कृतयुग अथवा त्रेतायुगका आरंभ दिन है। अक्षय तृतीया की संपूर्ण अवधि, शुभ मुहूर्त ही होती है, इसलिए, इस तिथि पर धार्मिक कार्य करने के लिए मुहूर्त नहीं देखना पड़ता।
अक्षय तृतीया की तिथि पर हयग्रीव अवतार, नरनारायण प्रकटीकरण तथा परशुराम अवतार हुए हैं। इस तिथि पर ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु की मिश्र तरंगें उच्च देवता लोकों से पृथ्वी पर आती हैं। इससे पृथ्वी पर सात्त्विकता की मात्रा 10 प्रतिशत बढ़ जाती है। इस काल महिमा के कारण इस तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान, दान आदि धार्मिक कृत्य करने से अधिक आध्यात्मिक लाभ होते हैं। इस तिथि पर देवता-पितर के निमित्त जो कर्म किए जाते हैं, वे संपूर्णतः अक्षय (अविनाशी) होते हैं। सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख में अक्षय तृतीया का महत्त्व और उसे मनाने का शास्त्रीय आधार बताया गया है। इस वर्ष कोरोना की पृष्‍ठभूमि पर अनेक स्‍थानों पर यह त्योहार सदैव की भांति करने में मर्यादाएं हो सकती हैं।
अक्षय तृतीया का महत्त्व
‘अक्षय फल प्रदान करने वाला दिन’
पुराणकालीन ‘मदनरत्न’ नामक संस्कृत ग्रंथ में बताए अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व बताया है। वे कहते हैं…
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं।
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिश्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः ।
तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥ – मदनरत्न
अर्थात, इस तिथि को दिए हुए दान तथा किए गए हवन का क्षय नहीं होता। इसलिए मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है। देवों तथा पितरों के लिए इस तिथि पर जो कर्म किया जाता है, वह अक्षय; अर्थात अविनाशी होता है।
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साढ़े तीन मुहूर्तों में से एक
अक्षय तृतीया की तिथि को साढ़े तीन मूहूर्तों में से एक मुहूर्त माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन सत्ययुग समाप्त होकर त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ, ऐसा माना जाता है। इस कारण भी यह संधिकाल ही हुआ। संधिकाल अर्थात मुहूर्त कुछ ही क्षणों का होता है, परंतु अक्षय तृतीया के दिन उसका परिणाम 24 घंटे तक रहता है, इसलिए यह पूरा दिन ही अच्छे कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया मनाने की पद्धति
कालविभाग कोई भी प्रारंभ दिन भारतीय पवित्र मानते हैं। इस तिथि को विविध धर्मकृत्य बताये हैं। इस दिन का विधी ऐसा है – पवित्र जल में स्नान, श्रीविष्णु पूजा, जप, होम, दान एवं पितृतर्पण। इस दिन अपिंडक श्राद्ध करें अथवा तिलतर्पण करें।
अक्षय तृतीया पर करने योग्य धर्मकृत्य
इस तिथि पर श्रीविष्णुपूजा, जप एवं होम यह धर्मकृत्य करने से आध्यात्मिक लाभ होता है। अक्षय तृतीया के दिन सातत्य से सुख-समृद्धि देनेवाले देवताओं के प्रति कृतज्ञता भाव रखकर उनकी उपासना करने से हम पर उन देवताओं की होनेवाली कृपा का कभी भी क्षय नहीं होता। इस दिन कृतज्ञता भाव से श्रीविष्णु सहित वैभवलक्ष्मी की प्रतिमा का पूजन करें। इस दिन होमहवन एवं जप-जाप करने में समय व्यतीत करें।
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अक्षय तृतीया के दिन दिए गए दान का महत्त्व
अक्षय तृतीया के दिन दिए गए दान का कभी क्षय नहीं होता। हिन्दू धर्म बताता है, ‘सत्पात्र दान करना, प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है।’ सत्पात्र दान का अर्थ सत् के कार्य हेतु दानधर्म करना! दान देने से मनुष्य का पुण्यबल बढ़ता है, तो ‘सत्पात्र दान’ देने सेपुण्यसंचयसहित व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ भी मिलता है। संत, धार्मिक कार्य करने वाले व्यक्ति, समाज में धर्मप्रसार करनेवाली आध्यात्मिक संस्था तथा राष्ट्र एवं धर्म जागृति करनेवाले धर्माभिमानी को दान करें, कालानुरूप यही सत्पात्रे दान है।
कोरोना काल में कैसे करें पूजा
कोरोना काल में बाहर आने-जाने पर प्रतिबंध है, इसलिए घर पर रहकर ही अक्षय तृतीया का पर्व मनाएं।
– घर में ही गंगा का स्मरण कर स्नान करें, तो गंगा स्नान का हमें लाभ होगा। बस इस श्‍लोक का उच्चारण कर स्नान करें..
गंगेच यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरु।।
सत्पात्र को दान
वर्तमान में विविध ऑनलाइन सुविधाएं उपलब्ध हैं। अतः अध्यात्म प्रसार करने वाले संतों अथवा ऐसी संस्थाओं को हम ऑनलाइन अर्पण कर सकते हैं। घर से ही अर्पण दिया जा सकता है।

उदकुंभ का दान : शास्त्र कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन उदकुंभ दान करें। इस दिन यह दान करने के लिए बाहर जाना संभव न होने के कारण अक्षय तृतीया के दिन दान का संकल्प करें एवं शासकीय नियमों के अनुसार जब बाहर जाना संभव होगा, तब दान करें।
पितृ तर्पण
पितरों से प्रार्थना कर घर से ही पितृ तर्पण कर सकते हैं।


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