अखिलेश यादव ने इतना भाषण देने के बावजूद कहीं भी कहीं अपनी दुखती हुई नस यानि मायावती से टूटे गठबंधन पर कुछ नहीं कहा। क्योंकि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी बेहतर प्रदर्शन के लिए ओबीसी और एसटी वोटर को एकजुट करना चाहती है। लोहियावादी और अंबेडकरवादी लोगों को एक साथ लाकर ही 2024 में सत्ता हासिल हो सकती है। रमाबाई मैदान से अपने पिता के जैसे पुराने अंदाज से अखिलेश यादव ने कहा कि, सत्ता हासिल करने के लिए पिछड़ो, दलितों और हाशिये पर गए लोगों की मजबूत भागीदारी जरूरी है।
यह भी पढे: मुस्कुराते हुए Yogi आदित्यनाथ बोले- हमारे मंत्री कहते हैं शराब वाला डिपार्टमेन्ट बदनाम होता है, लेकिन मैं कहूँगा… मुस्लिम वोटर्स को जोड़ने के मकसद से अधिवेशन के समय अखिलेश यादव की बातों का समर्थन करते हुए सपा नेता मौलाना इकबाल कादरी ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा कि, मदरसों से बहुत सारे बड़े नेता समाज सुधारक और अधिकारी बनते हैं। मदरसों में पढ़ने वाले तमाम लोगों को दूसरों के बहकावे में आने की जरूरत नहीं है। सपा ने ये तय किया है कि निकाय चुनाव में संगठन में दलित और मुसलमानों को तवज्जो दी जाएगी। तो हमें इंका साथ देना होगा।
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आपको बताते चलें कि, समाजवादी पार्टी में तीसरी बार अखिलेश यादव अध्यक्ष के तौर पर चुने गए हैं। 2012 में मुख्यमंत्री बनने वाले अखिलेश यादव अब तक तीन बड़े चुनाव हार चुके हैं। जिसमें 2014 लोकसभा, 2017 यूपी विधानसभा चुनाव, 2019 लोकसभा चुनाव, 2022 विधानसभा चुनाव इनके अलावा यूपी के पिछले निकाय चुनावों में अखिलेश यादव ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। लेकिन अब दलित, पिछड़ा और मुस्लिमों की रणनीति पर अखिलेश यादव ने काम शुरू कर दिया है। जिसमें उनके पास पहली चुनौती यूपी में निकाय चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव 2024 होंगे।
आपको बताते चलें कि, समाजवादी पार्टी में तीसरी बार अखिलेश यादव अध्यक्ष के तौर पर चुने गए हैं। 2012 में मुख्यमंत्री बनने वाले अखिलेश यादव अब तक तीन बड़े चुनाव हार चुके हैं। जिसमें 2014 लोकसभा, 2017 यूपी विधानसभा चुनाव, 2019 लोकसभा चुनाव, 2022 विधानसभा चुनाव इनके अलावा यूपी के पिछले निकाय चुनावों में अखिलेश यादव ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। लेकिन अब दलित, पिछड़ा और मुस्लिमों की रणनीति पर अखिलेश यादव ने काम शुरू कर दिया है। जिसमें उनके पास पहली चुनौती यूपी में निकाय चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव 2024 होंगे।