इसके बाद अब सभी की नजर आगामी 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव पर है। हालांकि भाजपा का उपचुनावों में रिकॉर्ड कुछ खास नहीं रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी बेहद मजबूत स्थिति में दिख रही है। सपा के लिए भाजपा बड़ी चुनौती है। इसके तहत ओमप्रकाश राजभर और अखिलेश यादव की मुलाकात बेहद अहम मानी जा रही है। दोनों पार्टी में गठबंधन संभव है। वहीं राजभर पहले ही दो सीटों (अम्बेडकरनगर की जलालपुर और बहराइच की बलहा) पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। वैसे सपा कई अन्य छोटे दलों से भी गठबंधन करने की तैयारी में हैं। वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगे या कुछ पर यह देखना भी दिलचस्प होगा।
अखिलेश यादव गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव की तर्ज पर अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं। उन सीटों पर चुनावों में सपा ने निषाद पार्टी और पीस पार्टी से गठबंधन कर प्रत्याशियों को अपने सिंबल पर चुनाव लड़ाया, जिन्हें जीत भी मिली। आखिरी समय पर बसपा ने भी सपा प्रत्याशी को समर्थन दे दिया था जिससे जीत हासिल हुई। कैराना उपचुनाव में भी सपा-बसपा गठबंधन का जादू चला, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में यह फॉर्मूला विफल हो गया था। लेकिन इसके बाद अखिलेश ने हार नहीं मानी है और गठबंधन के लिए उन्होंने नए साथियों की तलाश शुरू कर दी है।