आठ साल पहले भी अखाड़ा परिषद में दो फाड़ की स्थिति देखने को मिली थी मगर उस वक्त दोनों ही अध्यक्ष हरिद्वार के नहीं थे। लेकिन इस बार स्थिति बिलकुल उलट है इस बार दोनों गुटों के अध्यक्ष हरिद्वार के ही हैं। 27 अक्तूबर को मनसा देवी ट्रस्ट अध्यक्ष और अखाड़ा परिषद के नवनियुक्त अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी हरिद्वार पहुंचेंगे।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष दिवंगत नरेंद्र गिरि श्री निरंजनी अखाड़े के श्रीमहंत थे। इसलिए परंपरा के मुताबिक उनके निधन के बाद अध्यक्ष की कुर्सी के लिए उसी अखाड़े के संत का ही पहला हक था। अखाड़े के सचिव रविंद्रपुरी ने अध्यक्ष के लिए दावेदारी की और सात अखाड़ों ने बैठक में पहुंचकर तो बैरागी अखाड़े के एक श्रीमहंत ने पत्र भेजकर रविंद्रपुरी को समर्थन दिया। आठ अखाड़ों के समर्थन से रविंद्रपुरी अध्यक्ष चुने गए।
गहरा रहा है विवाद अखाड़ों में अंदरखाने संतों के बीच विवाद भी गहरा रहा है। समर्थन और विरोध को लेकर चिंगारियां भी सुलगने लगी हैं। अखाड़ा परिषद के दोनों ही गुट अखाड़ों के संतों को अपने अपने पक्ष में करने के लिए दाव खेलने लगे हैं। निरंजनी अखाड़े के सचिव को कुल आठ अखाड़ों के संतों का समर्थन मिल गया। वहीं महानिर्वाणी के सचिव को सात अखाड़ों का समर्थन है।
2013 में सामने आया था ऐसा ही मामला 2013 के प्रयागराज कुंभ से पहले भी अखाड़ा परिषद में दो फाड़ हुए। उस वक्त अयोध्या के श्रीमहंत ज्ञानदास परिषद के अध्यक्ष थे। परिषद में दो फाड़ होने के बाद निर्मल अखाड़े के बलवंत सिंह दूसरे गुट के अध्यक्ष बन गए। कुछ महीनों में ही आपसी सुलह हो गई।
क्या होता है अखाड़ा परिषद का काम? अखाड़ा परिषद बनाया इसलिए गया था ताकि अव्यवस्थाओं को दूर किया जा सके। अखाड़ा परिषद किसी अखाड़े के कामकाज में दखल नहीं देता लेकिन उन पर पैनी नजर रखता है। अखाड़ा परिषद के ये तीन काम प्रमुख माने जाते हैं –
1. कुंभ मेलों को लेकर सभी तरह की व्यवस्थाओं में अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष ही फैसला लेता है। उनके सहयोग से ही मेले में अलग-अलग अखाड़ों को जगह और स्नान की व्यवस्था की जाती है।
2. फर्जी बाबाओं पर कार्रवाई करने का काम भी होता है। 2017 में 14 ऐसे फर्जी बाबाओं की लिस्ट जारी की थी। इसमें गुरमीत राम रहीम, आसाराम बापू और संत रामपाल का नाम भी शामिल था।
3. किसी नए अखाड़े को मान्यता देना या किसी की मान्यता रद्द करने का काम भी अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का ही होता है।