गठबंधन का फीका असर चुनाव में देख मायावती ने पहले ही अपने रास्ते साफ कर लिए, जिसे देख अखिलेश ने भी ‘बुआजी’ के पदचिन्हों पर चलकर यूपी विधानसभा उपचुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया। हालांकि, मायावती ने ये साफ किया कि वे गठबंधन पर ब्रेक लगा रही हैं। उन्होंने कहा कि अखिलेश और डिंपल से रिश्ते बने रहेंगे। लेकिन समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में सुधार की बहुत जरूरत है। इसलिए अभी के हालातों को देखते हुए बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
मायावती के कड़े रुख को देखते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश ने भी अकेले चुनाव लड़ने का मन बनाया। अब इसके बाद राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) भी अपने रास्ते अलग कर सकती है। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद ने कहा कि पार्टी प्रमुख अजीत चौधरी और जयंत चौधरी तय करेंगे कि पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बता दें कि प्रदेश में 11 विधायक इस चुनाव में सांसद चुने गए हैं। यूपी विधानसभा उपचुनाव 11 सीटों पर होना है।
गठबंधन को बढ़ाना चाहिए अपना कुनबा मसूद अहमद ने कहा कि गठबंधन को अपना कुनबा बढ़ाना चाहिए। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन में कांग्रेस को भी शामिल किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने से फायदा होता कि भाजपा के विरोध में हम ताकतवर होकर उभर सकें। बता दें कि गठबंधन के तहत सपा-बसपा में 37-38 सीटों का बंटवारा हुआ था। वहीं रालोद को इसमें तीन सीटें दी गई थीँ। इनमें मुजफ्फरनगर, बागपत और मथुरा शामिल थीं। मुजफ्फरनगर से भाजपा प्रत्याशी संजीव कुमार बलयान ने अजीत सिंह, बागपत लोकसभा सीट से बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने जयंत चौधरी और मथुरा से हेमा मालिनी ने कुवंर नरेंद्र सिंह को हराया।
2017 में भी हारे थे चुनाव 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में रालोद के 277 में से 276 उम्मीदवार हार गए थे। केवन एक उम्मीदवार छपरौली से सहेंद्र सिंह रमाला ने चुनाव जीता था। लेकिन 2018 में उन्होंने रालोद छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। यूपी विधान परिषद में भी रालोद का कोई एमएलसी नहीं है।
चुनाव में हार के जिम्मेदार सपा लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद मायावती ने गठबंधन की हार का ठीकर अखिलेश के सिर फोड़ा। उन्होंने कहा कि यादव वोट न मिलने से गठबंधन की हार हुई। यहां तक कि अखिलेश अपनी पत्नी डिंपल को भी नहीं जीता सके। जब सपा को ही यादव का वोट बैंक नहीं मिला, तो बसपा को कैसे मिलता। उन्होंने दिल्ली में पार्टी पदाधिकारियों संग बैठक में कहा कि चुनाव में यादव वोट ट्रांसफर न होने के कारण हार मिली। मायावती ने कहा कि उन्हें जाटों के वोट भी नहीं मिले। इसलिए गठबंधन से खास फायदा न देखते हुए उन्होंने यूपी विधानसभा उपचुनाव बसपा के अकेले लड़ने की घोषणा की।
गेस्ट हाउस कांड के 25 साल बाद साथ आए थे सपा-बसपा सपा के साथ 1993 में बसपा ने गठबंधन किया था। बसपा संस्थापक कांशीराम और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने यूपी की राजनीति में नब्बे की दशक में ऐसा गठबंधन बनाया कि अन्य दलों के पसीने छूट गए। पिछड़ों और एससी-एसटी वोटबैंक को केंद्रित इस गठबंधन ने यूपी की राजनीति में हलचल मचा दिया। सपा-बसपा का यह गठबंधन सत्ता में आया तो जरूर, लेकिन दो साल बाद ही 1995 में स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद यह गठबंधन टूट गया। इसके बाद मायावती ने सपा के साथ कभी काम न करने की कसम खाई। लेकिन राजनीति में कोई किसी का दोस्त या दुश्मन नहीं होता। इसलिए अरसों बाद बसपा प्रमुख मायावती ने सपा से सारे गिले शिकवे दूर कर भाजपा के विरूद्ध लड़ने का फैसला किया।