दागी विधायकों पर संगीन आरोप एडीआर 2017 रिपोर्ट के अनुसार, इस रिपोर्ट में सबसे अधिक विधायक सत्ताधारी दल के हैं। भाजपा के 32, सपा के पांच, बसपा व अपना दल के 3-3 और कांग्रेस व अन्य दल के एक-एक विधायक शामिल है। इन विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित रहने की औसत संख्या 13 वर्ष है। 32 विधायकों के खिलाफ दस साल या उससे अधिक समय से कुल 63 आपराधिक मामले लंबित हैं।
मुख्तार अंसारी सेकेंड पर रिपोर्ट 2017 में दूसरे स्थान पर बसपा के मऊ से मुख्तार अंसारी हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का नाम भी इस सूची में शामिल है।
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27 साल से मुकदमा पर अभी तक तय नहीं हुआ था आरोप रिपोर्ट में बताया गया है कि रमा शंकर सिंह पर 27 साल से मुकदमा चल रहा है पर आज तक आरोप तय नहीं हो पाए। इसकी वजह सूचनाओं को छिपाया भी जाता था मसलन किसी कोर्ट में अपराध तय भी हो गया तो उम्मीदवार उसे छुपा लेते थे। हालांकि, 2017 के बाद से अब तक तमाम विधायकों के उपर से आपराधिक मामले हट चुके हैं। एमपी-एमएलए कोर्ट ने मामले में निर्दोष पाया है।
एमपी एमएलए कोर्ट में निर्दोष पाए गए अशोक कुमार राणा धामपुर से भाजपा के विधायक अशोक कुमार राणा का कहना है कि उन पर भी कई फर्जी मुकदमे दर्ज थे। इस आधार पर एडीआर 2017 की रिपोर्ट में उनका भी नाम था। लेकिन एमपी एमएलए कोर्ट में सुनवाई के बाद एक भी मामले सही नहीं पाए गए। और वह कोर्ट के द्वारा निर्दोष साबित हुए। राणा का कहना है कि राजनीतिक प्रतिद्वंदिता वश विरोधी पार्टियों द्वारा नेताओं पर तमाम मामले दर्ज करा दिए जाते हैं। उनके साथ भी ऐसा ही हुआ था। जो जांच के बाद फर्जी पाए गए। अब उन पर कोई मामले नहीं हैं।
वर्ष 2018 में हुई एमपी-एमएलए कोर्ट की स्थापना विधायकों के कारनामों का खुलासा करने और उस पर ऐक्शन लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाया। वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एमपी-एमएलए कोर्ट की स्थापना हुई और यहां तीन साल की अवधि में ही इन विधायकों पर आरोप तय कर लिए गए।
यह भी पढ़ें: चुनाव आयोग एक्शन में, बढ़ते कोरोना और विधानसभा चुनाव को लेकर स्वास्थ्य सचिव संग 27 दिसंबर को बड़ी बैठक आर.पी अधिनियम क्या है, जाने 1951 की धारा 8(1) (2) और (3) दरअसल, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 में राज्य में, संसद के किसी भी सदन के सदस्य के साथ-साथ विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य के रूप में होने और चुने के लिए व्यक्तियों की अयोग्यता का प्रावधान है। अधिनियम की धारा 8 की उप-धाराएं (1), (2) और (3) में प्रावधान है कि इनमें से किसी भी उपधारा में उल्लेखित अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्य घोषित किया जाएगा और उसकी रिहाई के छह साल बाद तक की अवधि के लिए वह अयोग्य बना रहेगा। इसमें हत्या से बलात्कार, डकैती से लेकर अपहरण और रिश्वत जैसे अपराध भी शामिल हैं।