लखनऊ। नया साल दस्तक दे चुका है, 2016 बीता वक्त हो चुका है। बीते वक्त की बातें अब यादें बन कर रह जाएंगी। बीता वर्ष उत्तर प्रदेश में काफी उठापठक वाला रहा। इस दौरान कई प्रशासनिक अधिकारी भी चर्चाओं में रहे। लखनऊ के डीएम राजशेखर हों या सत्ता से टकराने वाले आईपीएस अमिताभ ठाकुर या फिर पश्चिम उत्तर प्रदेश में तैनात आईएएस बी. चंद्रकला सभी ने जमकर सुर्खियां बटोरीं। आइए एक-एक ऐसे पांच अधिकारियों पर नजर डालते हैं जो पूरे साल सुर्खियों में छाए रहे। आईपीएस अमिताभ ठाकुर सत्ता से लोहा लेने वाले आईपीएस अमिताभ ठाकुर के लिए साल 2016 बेहद खास रहा। 2015 में एक ओर जहां पहले उन्हें कथित रूप से तत्कालीन सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की धमकी खानी पड़ी थी तो वहीं दूसरी ओर 11 जुलाई 2015 को उन्हें निलंबित भी कर दिया गया था। 2016 के अप्रैल महीने में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने अमिताभ का निलंबन रद्द कर दिया था। 25 मई को उन्होंने आईजी रूल्स एंड मैन्युअल के रूप में दोबारा पदभार ग्रहण किया। अगस्त 2016 में उन्हें मुलायम की कथित धमकी वाले मामले में सीजीएम कोर्ट से भी एक राहत मिली। सीजेएम लखनऊ कोर्ट ने मुलायम सिंह फोन धमकी मामले में अग्रिम विवेचना के आदेश दिए थे और वादी अर्थात मेरे और अभियुक्त (मुलायम सिंह यादव) के आवाज़ के मिलान हेतु वैज्ञानिक परीक्षण हेतु कहा था। आपको बता दें कि स्थानीय पुलिस ने यह कहते हुए मामले में अंतिम रिपोर्ट लगा दिया था कि कोई अपराध नहीं बनता है। इसके अलावा पूरे साल वे विभिन्न मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखते रहे। आईएएस बी. चंद्रकला अपने तेजतर्रार छवि के चलते खासी लोकप्रिय आईएएस बी. चंद्रकला की ख्याति साल 2016 ने काफी बढ़ाई। 2016 जाते-जाते इनको सबसे लोकप्रिय अधिकारी की ख्याति दे गया। एक निजी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे में उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारियों में सबसे जयादा वोट पाकर मेरठ की डीएम बी.चन्द्रकला टॉप पर रहीं। बी. चंद्रकला की लोकप्रियता बढ़नी तब शुुरु हुई जब उन्होंने बुलंदशहर में डीएम रहते ठेकेदारों के काम पर सवाल उठाते हुए फटकार लगाई थी। उसके बाद उन्होंने काम में शिथिलता को लेकर कई कार्रवाई भी की। जब वो मेरठ आई तो उन्होंने शहर में सफाई को लेकर बड़ा अभियान चलाया। उसके बाद पेटिंग के माध्यम से मेरठ का नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज करा दिया। आपको बता दें कि जनता की सुनवाई के लिये हमेशा तत्पर रहने वाली डीएम बी.चन्द्रकला विभागीय कार्यों में शिथिलता को बर्दाश्त नही करतीं तथा सार्वजनिक रूप से वह फटकार लगाने में भी माहिर मानी जाती है। आईएएस राजशेखर प्रदेश के लोकप्रिय आईएएस में दूसरे नंबर पर आते हैं राजधानी लखनऊ के डीएम रह चुके राजशेखर। राजशेखर अपने कई कामों के चलते विभिन्न प्रकार के सम्मान अर्जित कर चुके हैं। आपको बता दें कि राजशेखर ने राजधानी की ट्रैफिक व्यवस्था को बेहतर करने के लिए कई प्रयोग किए। लखनऊ को क्लीन और ग्रीन करने का श्रेय भी राजशेखर को जाता है। राजशेखर मीडिया फ्रेंडली तो थे ही आमजन भी उनसे काफी आसानी से मिल सकता था। राजशेखर ने राजधानी में 925 दिन काम किया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि गंजिंग कार्निवाल थी। आपको बता दें कि राजशेखर के काम से खुश होकर इलेक्शन कमीशन ने उन्हें देश के तीसरे बेस्ट ऑफिसर का अवार्ड दिया था। राजशेखर की लोकप्रियता का अंदाजा आप सिर्फ इस बात से लगा सकते हैं कि 24 घंटे के भीतर उनका स्थानांतरण रोकना पड़ गया था। बरेली डीएम के तौर पर उनके आदेश को रोक प्रदेश सरकार ने उन्हें मंडी परिषद का निदेशक नियुक्त कर दिया था। आईएएस किंजल सिंह 2008 में आईएएस बनीं किंजल सिंह पूरे साल सुर्खियों में रहीं। सबसे पहले किंजल सिंह चर्चा में आईं लखीमपुर खीरी के दुधवा नेशनल पार्क में मनमाने तरीके से आधी रात को घूमने के कारण। वन विभाग के अधिकारियों और जिलाधिकारी में इस बात को लेकर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगे। 27 मार्च को अंतत: प्रदेश सरकार ने उनका स्थानांतरण फैजाबाद कर दिया था। फैजाबाद पहुंचते ही उनका एक बयान सुर्खियों में छा गया था। उन्होंने फैजाबाद में चार्ज संभालने के एक घंटे बाद ही उन्होंने मीडिया से कहा कि इतने बड़े जिले को चलाने का उनको अनुभव नहीं है और यह एक धार्मिक जनपद है, जो उनके स्वभाव से अलग है। आपको बता दें कि किंजल की पहचान एक तेज-तर्रार अफसर के रूप में होती है। उनके काम करने के तरीके से जिले में अपराध करने वालों के पसीने छूटते हैं। लेकिन उनके लिए इस मुकाम तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नहीं था। किंजल सिंह मात्र 6 महीने की थीं जब उनके पुलिस अफसर पिता की हत्या पुलिस वालों ने ही कर दी थी। डीएम सतेंद्र सिंह लखनऊ के मौजूदा जिलाधिकारी सतेंद्र सिंह उस वक्त सुर्खियों में आए थे जब एलडीए वीसी के अहम पद पर रहते हुए उन्होंने गोमतीनगर एक्सटेंशन के 3400 करोड़ के 42 प्लॉटों को समायोजन के नाम पर रसूखदारों को कुल 120 करोड़ में दिए थे। खुद एलडीए कर्मचारी संघ भी इनपर घोटाले का आरोप लगा चुका है। अपने घर में मोबाइल टावर और बैंक चलाने जैसे आरोप लग चुके हैं। मीडिया की नज़र पड़ने के बाद बैंक बन्द हुआ तो रिहायशी क्षेत्रों में प्लॉटों का लैंडयूज बदल कर कमर्शियल करने तक का प्रस्ताव इन्हीं के कार्यकाल में एलडीए बोर्ड पहुंचा। आपको बता दें कि सतेंद्र सिंह डीएम पद से पहले एलडीए के वीसी थे। उस दौरान भी उनपर कई सवाल उठे थे। समाजवादी पार्टी से विधायक रामपाल यादव का लखनऊ में अवैध निर्माण तुड़ाने के लिए जब एलडीए का दस्ता पहुंचा था तो विधायक के गुर्गों ने एलडीए दस्ते को रोक दिया था, उस समय भी सत्येंद्र सिंह अपने तत्कालीन सचिव श्रीश चंद्र वर्मा को छोड़़कर भाग गए थे। हालांकि सत्ताधारी पार्टी के करीबी होने के चलते उन्हें एक नहीं दो अहम पदों (डीएम और लखनऊ विकास प्राधिकरण का वीसी) की जिम्मेदारी दी गई है।