योगी सरकार ने हुए इन एनकाउंटर्स में 74 मामलों की जांच पूरी हो चुकी है। इन सभी में पुलिस को क्लीन चिट मिल चुकी है। जबकि, पुलिस ने 61 मामलों में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी है। इसको कोर्ट ने मंजूर कर लिया है। हालांकि, इन सबके बावजूद योगी सरकार पर एनकाउंटर में मानवाधिकार मामलों के हनन के आरोप भी लगे हैं। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट भी यूपी में हो रहे एनकाउंटर पर दखल दे चुका है। जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में एनकाउंटर को बेहद गंभीर मामला बताया था। इसी के साथ 1000 से ज्यादा एनकाउंटर और उनमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत के मामलों में कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल की गई है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी यूपी सरकार को 2017 से लेकर अब तक कम से कम तीन नोटिस जारी कर एनकाउंटर्स पर जवाब मांगे हैं, लेकिन सरकार ने सभी नोटिस में एक ही जवाब भेजा है, इससे केस आगे नहीं बढ़ सके।
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन सिटीजन्स अगेंस्ट हेट ने पिछले साल यूपी में हुई 16 मुठभेड़ों पर सवाल उठाते हुए इन्हें फर्जी बताया था। हालांकि, यूपी पुलिस ने आरोपों को ख़ारिज कर दिया था। संगठन के मुताबिक 16 मामलों में दर्ज दस्तावेज़ों में तकरीबन एक जैसी कहानियां थीं। एक ही तरह से पकडऩे का तरीका। और हर बार एक मुजरिम मारा जाता है और एक भाग जाता है। साथ ही मुठभेड़ में क्लोज रेंज से और कमर से ऊपर गोली मारने पर भी सवाल था। संगठन का आरोप था कि अमूमन गोली तब चलाई जाती है जब अपराधी भाग रहा होता है या पुलिस पर हमला करता है। ऐसे में क्लोज रेंज से गोली कैसे लग सकती है। संगठन ने इन मुठभेड़ों में खास समुदाय को निशाना बनाने की बात भी कही थी। आरोप था कि ज्यादातर ऐसे मुसलमान निशाना बने जो गऱीब तबके से थे।
एनकाउंटर के सभी मामलों पर सवाल उठाना सही नहीं है। हर मुठभेड़ को अलग जगहों पर अलग टीमें अंजाम देती हैं। मुठभेड़ उस वक्त के हालातों पर निर्भर करती है। अगर कोई अपराधी पुलिस पर हमला कर देता है तो पुलिस को अपना बचाव करना ही होगा। जो पुलिसवाला मौके पर होता है वो अपने अनुसार फैसला करता है।