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लखनऊ

योगी सरकार में अब तक हुए 119 एनकाउंटर, कोर्ट ने कहा- यूपी में एनकाउंटर गंभीर मामला, फिर भी जारी है ठोको अभियान

– 74 में प्रदेश पुलिस को क्लीन चिट, 61 में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल
– अपराधियों के खिलाफ 6145 ऑपरेशन, 119 आरोपित मारे गए

लखनऊJul 11, 2020 / 10:02 pm

Mahendra Pratap

UP police

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. कानपुर के हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के खात्मे के बाद यूपी में अपराधियों के सफाये के लिए पुलिस का ऑपरेशन क्लीन जारी है। कानपुर शूटआउट का आरोपी विकास दुबे योगी सरकार में पुलिस की गोली से मारा गया 119वां अपराधी था। जब से योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है तब से अब तक कुल 118 अपराधियों की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो चुकी है। इनमें 5 विकास की गैंग से जुड़े थे। जबकि, पुलिस अपराधियों के खिलाफ अब तक 6,145 ऑपरेशन चला चुकी है। जिसमें 2258 अपराधी घायल हुए। इन अभियानों ने यूपी पुलिस ने अपने 13 जवानों की शहादत भी दी। इनमें 8 पुलिसकर्मी बीती चार जुलाई को शहीद हुए। हालांकि, योगी सरकार में हुए तमाम एनकाउंटर पर मानवाधिकार आयोग,विभिन्न संगठन और सुप्रीम कोर्ट तक सवाल उठा चुका है। बावजूद इसके योगी का ठोकों अभियान जारी है।
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एनकाउंटर्स पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर
योगी सरकार ने हुए इन एनकाउंटर्स में 74 मामलों की जांच पूरी हो चुकी है। इन सभी में पुलिस को क्लीन चिट मिल चुकी है। जबकि, पुलिस ने 61 मामलों में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी है। इसको कोर्ट ने मंजूर कर लिया है। हालांकि, इन सबके बावजूद योगी सरकार पर एनकाउंटर में मानवाधिकार मामलों के हनन के आरोप भी लगे हैं। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट भी यूपी में हो रहे एनकाउंटर पर दखल दे चुका है। जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में एनकाउंटर को बेहद गंभीर मामला बताया था। इसी के साथ 1000 से ज्यादा एनकाउंटर और उनमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत के मामलों में कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल की गई है।
मानवाधिकार ने भी भेजी नोटिस
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी यूपी सरकार को 2017 से लेकर अब तक कम से कम तीन नोटिस जारी कर एनकाउंटर्स पर जवाब मांगे हैं, लेकिन सरकार ने सभी नोटिस में एक ही जवाब भेजा है, इससे केस आगे नहीं बढ़ सके।
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16 एनकाउंटर पर उठे सवाल
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन सिटीजन्स अगेंस्ट हेट ने पिछले साल यूपी में हुई 16 मुठभेड़ों पर सवाल उठाते हुए इन्हें फर्जी बताया था। हालांकि, यूपी पुलिस ने आरोपों को ख़ारिज कर दिया था। संगठन के मुताबिक 16 मामलों में दर्ज दस्तावेज़ों में तकरीबन एक जैसी कहानियां थीं। एक ही तरह से पकडऩे का तरीका। और हर बार एक मुजरिम मारा जाता है और एक भाग जाता है। साथ ही मुठभेड़ में क्लोज रेंज से और कमर से ऊपर गोली मारने पर भी सवाल था। संगठन का आरोप था कि अमूमन गोली तब चलाई जाती है जब अपराधी भाग रहा होता है या पुलिस पर हमला करता है। ऐसे में क्लोज रेंज से गोली कैसे लग सकती है। संगठन ने इन मुठभेड़ों में खास समुदाय को निशाना बनाने की बात भी कही थी। आरोप था कि ज्यादातर ऐसे मुसलमान निशाना बने जो गऱीब तबके से थे।
क्या कहती है पुलिस
एनकाउंटर के सभी मामलों पर सवाल उठाना सही नहीं है। हर मुठभेड़ को अलग जगहों पर अलग टीमें अंजाम देती हैं। मुठभेड़ उस वक्त के हालातों पर निर्भर करती है। अगर कोई अपराधी पुलिस पर हमला कर देता है तो पुलिस को अपना बचाव करना ही होगा। जो पुलिसवाला मौके पर होता है वो अपने अनुसार फैसला करता है।

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